विज्ञान

प्लाज्मा जेट के बारे में वैज्ञानिकों ने अहम जानकारी जुटाई

Nilmani Pal
10 March 2022 11:31 AM GMT
प्लाज्मा जेट के बारे में वैज्ञानिकों ने अहम जानकारी जुटाई
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नई दिल्ली: वैज्ञानिकों ने सूरज की सतह से लगातार निकलने वाले प्लाज्मा जेट (Sun Plasma Jet) के विज्ञान का पता लगा लिया है। ये प्लाज्मा के जेट या स्पिक्यूल्स (Solar Spicule), पतली घास जैसी प्लाज्मा संरचनाओं के रूप में दिखाई देते हैं जो सतह से लगातार ऊपर उठते रहते हैं और फिर गुरुत्वाकर्षण द्वारा नीचे आते हैं। इन स्पिक्यूल्स के साथ निकल रही ऊर्जा की मात्रा और गति में सौर एवं प्‍लाज्‍मा खगोल विज्ञान की रूचि है। भारत और यूके के शोधकर्ताओं की एक टीम ने इसी रहस्य से परदा उठाया है।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान में खगोलविदों के नेतृत्व में भारत और इंग्‍लैंड के शोधकर्ताओं की टीम ने सूर्य के 'स्पिक्यूल्स' की उत्पत्ति की व्याख्या की है। टीम ने भारत से तीन सुपरकंप्यूटरों का भी इस्तेमाल किया जिससे व्यापक समानांतर वैज्ञानिक कोड को चलाया जा सके। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने एक बयान में बताया कि जिन प्रक्रियाओं के जरिए सौर हवा को प्लाज्मा की आपूर्ति की जाती है और सौर वायुमंडल एक मिलियन डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है, यह अब भी पहेली बना हुआ है।

प्लाज्मा पदार्थ की चौथी अवस्था होती है, जिसमें विद्युत रूप से आवेशित कण मौजूद होते हैं और सूर्य के क्रोमोस्फीयर (Chromosphere) में हर जगह रहते हैं। क्रोमोस्फीयर वह परत होती है, जो सूर्य की दिखाई देने वाली सतह के ठीक ऊपर होती है। सूरज के वातावरण की तीन प्रमुख लेयर में दूसरी क्रोमोस्फीयर होती है। यह 3,000 से 5,000 किमी गहरी होती हैं। यह रेड कलर की दिखाई देती हैं।
स्पिक्यूल डायनेमिक्स को समझते समय टीम ने एक ऑडियो स्पीकर का सहारा लिया। एक Bass स्पीकर फिल्मों में सुनाई देने वाली गड़गड़ाहट की आवाज की तरह कम आवृत्तियों पर पैदा होने वाली विक्षोभ या उद्दीपन (Excitation) पर प्रतिक्रिया देते हैं। ऐसे स्पीकर पर जब कोई तरल पदार्थ रखा जाता है और संगीत चालू किया जाता है, तो तरल की मुक्त सतह अस्थिर हो जाती है और कंपन करना शुरू कर देती है। 'फैराडे उद्दीपन' (Faraday Excitation) का शानदार उदाहरण है, जो समागम के दौरान आंशिक रूप से जलमग्न नर घड़ियाल की पीठ पर गिरने वाली पानी की बूंदों के समान लगता है। हालांकि पेंट या शैंपू जैसा तरल पदार्थ स्पीकर पर उद्दीपन होने पर बिना टूटे हुए जेट में परिवर्तित हो पाएगा क्‍योंकि इसकी लंबी पोलिमर श्रृंखला इसे दिशा प्रदान करती है।
लेखकों ने महसूस किया कि इन पेंट जेट में अंतर्निहित भौतिकी सौर प्लाज्मा जेट के अनुरूप होनी चाहिए। उन्होंने समझा कि प्लाज्मा में ऐसे जेट का बनना कैसे संभव होता होगा? इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) के सहेल डे और अध्ययन के पहले लेखक ने समझाया कि सौर प्लाज्मा को चुंबकीय क्षेत्र लाइनों के जरिए पिरोया जा सकता है और यह पोलिमर घोल में लंबी श्रृंखलाओं की तरह है
सौर स्पिक्यूल्स और स्पीकर पर पेंट के जेट के बीच दृश्य समानता से उत्‍साहित होकर वैज्ञानिकों ने सौर प्लाज्मा के अत्याधुनिक संख्यात्मक सिमुलेशन का उपयोग कर सूर्य पर चुंबकीय क्षेत्र की भूमिकाओं की जांच की। इसके समानांतर पॉलिमरिक समाधानों में फैराडे तरंगों पर धीमी गति की वीडियोग्राफी का उपयोग करके पोलिमर श्रृंखलाओं की भूमिका का भी पता लगाया गया।
वैज्ञानिकों ने बताया कि दिखाई देने वाली सौर सतह (फोटोस्फीयर) के ठीक नीचे प्लाज्मा संवहन (convection) की स्थिति में होता है और निचली सतह पर किसी बर्तन में उबलते हुए गर्म पानी की तरह लगता है। यह गर्म-घने कोर में परमाणु ऊर्जा द्वारा संचालित होता है। यह संवहन नियत समय के लिए होता है, लेकिन यह सौर क्रोमोस्फीयर में प्लाज्मा को मजबूती से आगे करता है। यह क्रोमोस्‍फीयर दृश्यमान सौर डिस्क के ठीक ऊपर अर्ध-पारदर्शी परत है। फोटोस्फीयर में प्लाज्मा की तुलना में क्रोमोस्फीयर 500 गुना हल्का है इसलिए तल से उठने वाले ये मजबूत झटके पतले कॉलम या स्पिक्यूल्स के रूप में अल्ट्रासोनिक गति से क्रोमोस्फेरिक प्लाज्मा को बाहर की ओर शूट करते हैं। स्पिक्यूल्स सभी आकारों और गति में आते हैं।
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