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2006 में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) ने इसे बौना ग्रह मानते हुए कहा था की ग्रह होने की तीन ज़रूरी शर्तों में से प्लूटो एक शर्त पूरी नहीं करता
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| 2006 में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) ने इसे बौना ग्रह मानते हुए कहा था की ग्रह होने की तीन ज़रूरी शर्तों में से प्लूटो एक शर्त पूरी नहीं करता इसलिए इसे सम्पूर्ण ग्रहः नहीं माना जा सकता। इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) ने इसे सौरमंडल से बाहर कर दिया।
विज्ञान और तकनीक
91 साल पहले आज ही के दिन वैज्ञानिकों ने ढूंढा था 'यमराज का घर'
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बचपन से हम स्कूली किताबों में सौरमंडल के 9 ग्रहों के बारे में पढ़ते आ रहे हैं। हमारे ग्रह पृथ्वी के अलावा जिन 8 खगोलीय पिंडों का इस परिवार में नाम शामिल है उनमें एक नाम है प्लूटो ग्रह का। इसे हिंदी में यम ग्रह भी कहते हैं। इसलिए हमारे यहां इसे यमराज का घर (हिन्दू माइथोलॉजी में मृत्यु) भी कहते हैं। यह साल 2006 तक सौर परिवार का सबसे छोटा ग्रह हुआ करता था। लेकिन 2006 में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) ने इसे ग्रह मानते हुए सौरमंडल से बाहर कर दिया।
91 साल पहले गलती से हुई खोज
1930 में एक जिज्ञासु अमेरिकी वैज्ञानिक क्लाइड टॉमबा ने एक बौने खगोलीय पिंड की खोज की थी। 18 फरवरी 1930 को खगोल विज्ञानी क्लीड डब्ल्यू. टॉमबॉघ ने प्लूटो को गलती से खोज लिया था। असल में वे यूरेनस और नेपच्यून की गति के आधार पर गणना कर 'प्लैनेट एक्स' नामक एक अज्ञात ग्रह की तलाश कर रहे थे, जो यूरेनस (अरुण ग्रह) और नेपच्यून (वरुण ग्रह) की कक्षाओं में गड़बड़ी पैदा कर रहा था। वैज्ञानिक क्लायड टामबाग़ (Clyde Tombaugh) ने आकाश का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया और प्लूटो ग्रह को 18 फरवरी 1930 को खोज निकाला था। जब इसका नाम रखने के लिए सुझाव मांगे गए, तो 11वीं में पढ़ने वाली एक लड़की ने इसे प्लूटो नाम दिया। रोम में अंधेरे के देवता को प्लूटो कहते हैं। प्लूटो पर भी हमेशा अंधेरा रहता है। लंबे वक्त तक प्लूटो हमारे सौरमंडल का नौवां ग्रहग्रह मान लिया गया था, लेकिन 2006 के बाद इसे इस सूची से हटा दिया गया और इसे बौने ग्रहों की सूची में डाल दिया गया।
248 साल में काटता है सूर्य का चक्र
प्लूटो को सूरज का एक चक्कर लगाने में 248 साल लग जाते हैं। वहीं जिस तरह से हमारे यहां एक दिन 24 घंटे का होता है, ठीक उसी तरह से प्लूटों में यह 24 घंटे 153.36 घंटों के बराबर होता है। यानी यहां दिन रात के बदलने में करीब 6 दिन लगते हैं। प्लूटो (यम) ग्रह सूर्य मंडल का दूसरा सबसे बौना ग्रह है। आकार और द्रव्यमान में यह काफी छोटा है। पृथ्वी के उपग्रह चंद्रमा के आकार का सिर्फ एक तिहाई है। वर्तमान में प्लूटो ग्रह को एक संपूर्ण ग्रह नहीं माना जाता है। बल्कि सौरमंडल के बाहरी घेरे जिसे "काइपर घेरा" कहते हैं। उसमें स्थित एक बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। प्लूटो ग्रह का सूर्य की परिक्रमा करने का ढंग अनियमित है।
472 रुपए में पड़ा था प्लूटो नाम
प्लूटो ग्रह का नाम ऑक्सफॉर्ड स्कूल ऑफ लंदन में पढ़ने वाली एक 11वीं कक्षा की छात्रा वेनेशिया बर्ने ने रखा था। इस बच्ची का कहना था कि रोम में अंधेरे के देवता को प्लूटो कहा जाता है और इस ग्रह पर भी लगभग हमेशा अंधेरा ही रहता है, इसलिए इसका नाम प्लूटो रखा जाए। इस बच्ची को उस समय इनाम के तौर पांच पाउंड दिए गए थे, जो आज के हिसाब से करीब 472 रुपये होते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, प्लूटो ग्रह पर बर्फ के रूप में मौजूद है और इस पानी की मात्रा पृथ्वी के सभी महासागरों में आरक्षित पानी से लगभग तीन गुना अधिक है। इसके अलावा कहा जाता है कि इसकी सतह पर बड़े-बड़े गड्ढे भी हैं।
इंसानों के रहने लायक नहीं
प्लूटो और सूर्य के बीच बहुत अधिक दूरी होने के कारण सूर्य की रोशनी को प्लूटो ग्रह तक पहुंचने में लगभग पांच घंटे लगते हैं, जबकि सूरज की रोशनी को पृथ्वी तक पहुंचने में आठ मिनट और 20 सेकेंड लगते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्लूटो ग्रह पर जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है, क्योंकि यहां का तापमान बेहद कम है इंसानों के नहीं है। इसकी सतह का तापमान अमूमन माइनस 233 से माइनस 223 डिग्री सेल्सियस बना रहता है, जो किसी भी इंसान को पल भर में जमा दे। अभी तक प्लूटो ग्रह पर सिर्फ एक अंतरिक्ष यान न्यू हरिजन (New Horizons) पहुंचा है जिसे 19 जनवरी 2006 को लांच किया गया था। 14 जुलाई 2015 को यह प्लूटो के निकट से गुजरा था। इसने प्लूटो ग्रह की अनेक तस्वीरें ली थी और गणना की थी। तस्वीरों को देखकर यह पता चलता है कि प्लूटो पर कई बर्फीले पर्वत हैं। इसके साथ ही प्लूटो का आकार उससे बड़ा है जितना इसका अनुमान लगाया गया था।
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