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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इंसान केवल 200 सालों में ही दूसरे ग्रहों पर रहना शुरू कर देगा. ये खुलासा किया है अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के जेट प्रोपल्शन लेबोरेट्री (NASA's Jet Propulsion Laboratory) के साइंटिस्ट जोनाथन जियांग (Jonathan Jiang) ने. उनका कहना है कि पृथ्वी अंधेरे से घिरा एक छोटा सी जगह है. Physics की हमारी वर्तमान समझ हमें बताती है कि हम सीमित संसाधनों के साथ इस छोटी सी चट्टान पर फंसे हैं.
अपने ग्रह को छोड़ने के लिए मनुष्यों को परमाणु और नवीकरणीय ऊर्जा (Nuclear and Renewable energy) के इस्तेमाल में तेजी लाने की ज़रूरत है. साथ ही, उन ऊर्जा स्रोतों के गलत इस्तमाल से बचाना चाहिए. करीब 60 साल पहले एक सोवियत एस्ट्रोनॉमर ने कार्दाशेव स्केल के बारे में बताया गया था. जिसमें वो किसी भी बुद्धिमान प्रजाति की तकनीकी क्षमता का मेजरमेंट किया जा सकता है.
क्या है कार्दाशेव स्केल?
साल 1964 में सोवियत खगोलशास्त्री निकोलाई कार्दाशेव (Astronomer Nikolai Kardashev) ने एक बुद्धिमान प्रजाति की तकनीकी क्षमता का अनुमान लगाने के लिए एक मेज़रमेंट स्कीम की बात कही थी. इसके बाद इसे कार्ल सागन (Carl Sagan) ने संशोधित किया था.
इंसान कार्दाशेव पैमाने के पहले पायदान पर भी नहीं पहुंचे हैं
बुद्धिमान सभ्यता के तीन टाइप्स होते हैं, इंसान टाइप-1 से भी नीचे
इनके मुताबिक, कार्दाशेव टाइप-I सभ्यता अपने ग्रह पर उपलब्ध सभी ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकती है, जिसमें जमीन में ऊर्जा के सभी स्रोत (जैसे जीवाश्म ईंधन और न्यूक्लियर फिशन के लिए इस्तामल किए जा सकने वाली चीजें) और अपने मूल तारे से उस ग्रह पर आने वाली ऊर्जा शामिल हैं. टाइप-II सभ्यताएं ऊर्जा की मात्रा का 10 गुना इस्तेमाल करती हैं. जबकि, टाइप-III प्रजातियां पूरी आकाशगंगा (Galaxy) की ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकती हैं. साफ है कि मानव प्रजाति टाइप-I से काफी नीचे है, लेकिन हमारी ऊर्जा की खपत हर साल बढ़ रही है.
गैलेक्सी अरबों साल पुरानी है, कहीं न कहीं कोई तो होगा इंसानों से बेहतर
जियांग का कहना है कि ऊर्जा की बढ़ती खपत से बने खतरे से समझ आता है कि वैज्ञानिकों को अब तक एलियन सभ्यताओं का कोई सबूत क्यों नहीं मिला है. अगर पृथ्वी बहुत खास नहीं है और जीवन और बुद्धि का विकास इतना अनोखा नहीं है, तो गैलैक्सी को बुद्धिमान प्रजातियों से भरा होना चाहिए. हम भले ही खगोलीय रूप से बहुत लंबे समय से नहीं रह रहे हैं, लेकिन आकाशगंगा अरबों सालों पुरानी है. निश्चित रूप से अब तक किसी न किसी को तो टाइप III स्टेज में पहुंचना चाहिए था. गंभीरता से गैलैक्सी की खोज शुरू कर देनी चाहए थी.
दूसरी दुनिया तक पहुंचने के लिए बहुत ऊर्जा चाहिए
हम अकेले हैं
लेकिन जहां तक हमारा मानना है, हम अकेले हैं. जीवन और विशेष रूप से बुद्धिमान जीवन, बेहद दुर्लभ लगता है. तो किसी सभ्यता के विकास के उच्च चरणों तक पहुंचने से पहले, शायद कुछ प्रक्रियाएं बुद्धिमान जीवन को हटा देती हैं. एक प्रजाति के रूप में हम पहले ही आत्म-विनाश में सक्षम हैं और हम तो कार्दाशेव पैमाने के पहले पायदान पर भी नहीं पहुंचे हैं. मुट्ठी भर देशों के पास इस ग्रह के हर एक इंसान का सफाया करने की परमाणु क्षमता है.
जियांग का कहना है कि आत्म-विनाश से बचने का यही तरीका है कि हम अपनी ऊर्जा के इस्तेमाल को उस बिंदु तक बढ़ाएं, जहां हम एक साथ कई दुनिया में मौजूद हो सकते हैं, भले ही वह सोलर सिस्टम में ही क्यों न हो. एक से ज्यादा ग्रहों पर मानव की उपस्थिति होना, आत्म-विनाश के खिलाफ एक मजबूत सुरक्षा कवच होगा. लेकिन इस स्टेटस को पाने के लिए, भारी मात्रा में ऊर्जा की जरूरत होती है.
हाल ही में जर्नल प्रीप्रिंट सर्वर arXiv (Preprint Server arXiv) पर पब्लिश किए गए पेपर में जियांग और उनकी टीम ने टाइप I स्थिति तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका खोजा. उनका कहना है कि जब तक इंसान तेजी से ऊर्जा आपूर्ति को परमाणु और नवीकरणीय विकल्पों में नहीं बदलेगा, तब तक हम अपने जीवमंडल (Biosphere) को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते रहेंगे. शोध में पाया गया कि अगले 20 से 30 सालों में ऊर्जा के इस्तेमाल के नए तरीके लगातार जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को कम करेंगे. टीम का कहना है कि अगर हम वर्तमान दर से ऊर्जा की खपत जारी रखते हैं, तो हम साल 2371 में टाइप I स्टेज तक पहुंच जाएंगे
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