विज्ञान

वैज्ञानिकों का मानना- महामारियों से बचा सकती है जंगलों से दूरी

Gulabi
2 Nov 2020 12:42 PM GMT
वैज्ञानिकों का मानना- महामारियों से बचा सकती है जंगलों से दूरी
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साल 2020 को एक डरावने समय में बदल देने वाले कोविड -19 के लिए चीनियों के चमगादड़ सेवन को भी एक कारण माना जा रहा है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।साल 2020 को एक डरावने समय में बदल देने वाले कोविड -19 के लिए चीनियों के चमगादड़ सेवन को भी एक कारण माना जा रहा है. वैज्ञानिकों के बड़े खेमे का मानना है कि वायरस की संरचना चमगादड़ों में मिलने वाले वायरस के लगभग समान है. चूंकि चीन के वुहान में चमगादड़ों को खाना आम है, और वहीं से वायरस फैला, लिहाजा विशेषज्ञों का संदेह और गहरा गया. अब ताजी रिपोर्ट कहती है कि चमगादड़ या दूसरे जंगली पशु-पक्षियों से दूरी रखने के लिए जरूरी है जंगल के कटाव पर रोक लगाना. इससे दूसरी महामारी से बचा जा सकता है.

आज का नुकसान कल जान बचाएगा

न्यू साइंटिस्ट में छपी एक रिपोर्ट इस बारे में बात करती है. इसमें माना गया है हालांकि कल-कारखाने तैयार करने के लिए जंगलों को काटा जाता है और इसे रोकने से शुरुआत में आर्थिक नुकसान भी दिखेगा लेकिन ये भविष्य में होने वाले बड़े नुकसान से बचाएगा. मिसाल के तौर पर कोरोना को ही लें तो इसके कारण लॉकडाउन में कामकाज बंद हो गए. लाखों-करोड़ों बेरोजगार हुए. इसके अलावा मेडिकल सुविधाएं भी चरमरा गईं.

जंगल न काटने पर क्या होगा

ये सारा नुकसान उससे काफी ज्यादा है, जो जंगल काटना रोकने से होगा. जंगल काटना बंद करने पर लगभग 40-58 बिलियन डॉलर का सालाना नुकसान हो सकता है. वहीं महामारियों जैसे एड्स और इंफ्यूएंजा की वजह से सालाना 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होता है.

कोविड के कारण हुआ कितना घाटा

कोरोना वायरस के कारण हुए नुकसान का पूरा अनुमान भी नहीं लगाया जा सका है. एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने मई में कहा था कि कोरोना वायरस महामारी के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को 5,800 अरब डॉलर से 8,800 अरब डॉलर तक नुकसान हो सकता है. यह वैश्विक जीडीपी के 6.4 प्रतिशत से 9.7 प्रतिशत के बराबर है. यह 1930 की महामंदी के बाद सबसे अधिक गिरावट होगी.

महामारियों का जंगल से क्या ताल्लुक है

दरअसल लगभग सारी ही महामारियां जानवरों से इंसानों में फैली हैं. कोरोना वायरस के बारे में कहा जा रहा है कि अन्य कोरोना वायरस की तरह यह भी जानवरों से इंसानों में आया. साइंस डेली में प्रकाशित स्टैनफोर्ड अध्ययन के अनुसार इस तरह के वायरसों का इंसानों में फैलना आम हो जाएगा अगर इंसान ऐसे है प्राकृतिक जंगलों को साफ करता रहा. इस अध्ययन में यह बताया गयाहै कि कैसे यूगांडा में उष्णकटिबंधीय (Tropical) वन के कम होने से वहां के लोगों का उन जानवरों से संपर्क ज्यादा हो गया है जो वायरस इंसानों में फैला सकते हैं.

कैसे होता है इंसानों और जंगली जानवरों में संपर्क

कई देशों में जंगली जानवरों का सेवन एग्जोटिक फूड की श्रेणी में रखा जाता है और उन्हें चाव से खाया जाता है. चीन, इंडोनेशिया और कई अफ्रीकी देशों में सांप, चमगादड़ और बंदर खाए जाते हैं. इन सबमें काफी ज्यादा वायरस होते हैं, जो खुद इनके लिए तो खतरनाक नहीं होते लेकिन खाने की प्रक्रिया में इंसानों के लिए जानलेवा हो सकते हैं. एक और वजह ये भी है कि इंसान और जानवर दोनों ही अपना खाना साझा कर रहे हैं. जैसे एक ही पेड़ के फल दो अलग समय पर दोनों खाते हैं, ऐसे में संक्रमण की आशंका बढ़ती है.


शोध में पाया गया कि जंगलों में काम करने वाले या जंगलों-पहाड़ों के आसपास रहने वालों में जानवरों से संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है. ये भी पाया गया कि जंगलों में कृषि गतिविधियों का होना संक्रमण का ज्यादा बड़ा कारण है.

पालतू पशुओं से भी संक्रमण

जंगली जानवरों के अलावा पालतू पशुओं से भी कई तरह का संक्रमण होता है, जिनमें से कई खतरनाक हो सकते हैं. जैसे टीबी की बीमारी पालतू भेड़-बकरियों से भी इंसानों में फैल सकती है. जानवरों की छींक, बगलम या स्किन-टू-स्किन कॉन्टेक्ट से भी ये बीमारी फैलती है.

गायों से भी होती है बीमारी

एक और बीमारी है मैड काऊ डिसीज. ये एक बेहद खतरनाक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जो मरीज की जान भी ले सकती है. ये prion नामक वायरस से फैलती है. बीमार गाय, भेड़ या बकरी का गोश्त खाने पर ये बीमारी होती है. मैड काऊ डिसीज के साथ सबसे खतरनाक बात ये है कि इसके लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं, तब तक मस्तिष्क की कोशिकाओं का नुकसान हो चुका होता है और आखिरकार मरीज की मौत हो जाती है.

इस बीमारी से सालाना होती है 50 हजार मौतें

रेबीज को पालतू जानवरों से होने वाली सबसे खतरनाक बीमारियों में गिना जाता है. वायरस से फैलने वाली ये बीमारी पालतू जानवरों में आसपास रहने वाले जंगली जानवरों से आती है और जानवरों की सफाई के दौरान इंसानों में इसके वायरस प्रवेश कर जाते हैं. फ्लू की तरह लक्षणों से बीमारी की शुरुआत होती है, जो जल्द ही मतिभ्रम, बेहोशी या पैरालिसिस में बदल जाती है. पूरी दुनिया में हर साल लगभग 50 हजार मौतें इसी बीमारी की वजह से होती हैं. मॉर्डन चिकित्सा में इसका इलाज तो है लेकिन हर जगह उपलब्ध नहीं.

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