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- वैज्ञानिक हिमालय में...
भारत सहित कुछ यूरोपीय देशों में भी दवाओं में इस्तेमाल होने वाली हींग की पहली खेप हिमाचल प्रदेश की लाहौल वादी में पिछले हफ्ते रोपी जा चुकी है. वैज्ञानिक इस तरह का बीड़ा क्यों उठा रहे हैं? इसके साथ ही हींग के उत्पादन और कारोबार से जुड़े कुछ और ज़रूरी फैक्ट्स भी आपको जानने चाहिए.
क्या और क्यों है ये हींग मिशन?
भरपूर पोषण से युक्त औषधीय गुणों वाली हींग मुख्यत: अफगानिस्तान, ईरान और उज़बेकिस्तान से भारत आती है. सरकारी डेटा की मानें तो भारत हर साल 1200 टन कच्ची हींग का आयात करता है. साल 1963 से 1989 के बीच भी भारत ने एक बार हींग उगाने की कोशिश की थी, लेकिन कोई सकारात्मक नतीजे नहीं मिले थे. इसके बाद 2017 में वैज्ञानिकों ने एक नये आइडिया के साथ दोबारा यह प्रस्ताव रखा.
क्या भारत में हींग के मुफीद स्थितियां हैं?
बीते 15 अक्टूबर को लाहौल के क्वारिंग गांव में हींग की पहली खेप उगाने की कोशिश की गई है. कृषि विज्ञान के विशेषज्ञों के मुताबिक एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हींग उत्पादन के अनुकूल परिस्थितियां मिलने की उम्मीद है. इसकी शुरूआत जांच परख के बाद लाहौल स्पिति वैली से की गई है. यहां चार लोकेशनों फाइनल करने के बाद क्षेत्र के 7 किसानों को हींग के बीज मुहैया कराए गए हैं.
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि 35 से 40 डिग्री और सर्दियों में -4 डिग्री तापमान के बीच हींग का पौधा पनप सकता है, लेकिन इससे अलग स्थितियों में यह पौधा खत्म हो जाता है. ठंडे और सूखे मौसम के आदी इस पौधे के लिए मौसम देखकर ही ये स्थान चुने गए हैं. इससे पहले कुछ प्रयोग मंडी, किन्नौर, कुल्लू, मनाली और पालमपुर में किए गए थे और अब रिसर्चर लद्दाख व उत्तराखंड में प्रयोगों के विस्तार को लेकर सोच रहे हैं
ईरान से हींग के बीज मंगाए जाने के बाद उनके बारे में अध्ययन किया गया. कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से तमाम मंज़ूरियां मिलने के बाद IHBT ने पालमपुर में रिसर्च आदि को अंजाम दिया. चूंकि यह पौधा रेगिस्तानी स्थितियों में फलता फूलता है इसलिए वैज्ञानिकों ने इसे नियंत्रित लैब कंडीशन में खास केमिकल ट्रीटमेंट दिया. इसके बाद हिमाचल के कृषि मंत्रालय के साथ एक समझौते के तहत अगले पांच साल तक हींग उगाने का यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया.