विज्ञान

वैज्ञानिकों ने माना- मानव निर्मित नहर और ब्रिज की इंजीनियरिंग है दोषी

Gulabi Jagat
29 March 2022 11:15 AM GMT
वैज्ञानिकों ने माना- मानव निर्मित नहर और ब्रिज की इंजीनियरिंग है दोषी
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वाराणसी में मछुआरे गंगा के बीचो-बीच जमी रेत पर नाव लगाकर मछली पकड़ रहे हैं
वाराणसी में मछुआरे गंगा के बीचो-बीच जमी रेत पर नाव लगाकर मछली पकड़ रहे हैं। कोई इसे रेत का टीला, तो कोई मड आइलैंड का नाम दे रहा है। मगर, नजदीक से देखने में यह रेत का टीला नजर आता है। वाराणसी में ऐसा पहली बार हो रहा है कि मां गंगा अपने रेत घाटों पर जमा कर रही हैं। वहीं सामने घाट पर गंगा के बीचो-बीच रेत उभर आई है, जबकि पहले यह रेत रामनगर किले के सामने जमा होती थी।
गंगा वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने चिंता जताई है कि पानी का रेत हर बार पश्चिम के बजाय पूरब की तरफ शिफ्ट होने लगा है। वहीं रेत का जमाव भी अब आगे और गंगा के बीचो-बीच शिफ्ट हो रहा है। यह विचित्र चित्र देखकर काशी के लोग हैरान हैं। गंगा में बनाई गई पांच किलोमीटर लंबी मानव निर्मित नहर और रामनगर पुल के इंजीनियरिंग में ही दोष बताया जा रहा है।
वैज्ञानिकों ने कहा-गंगाजल की हरकतें सामान्य नहीं हैं
शुरूआती तौर पर वैज्ञानिकों ने इस स्थिति के पीछे दो वजहें बताईं हैं। पहला यह कि सामनेघाट और रामनगर पुल और दूसरा पिछले साल बनाई गई रेत की नहर। इन वजहों से पानी के बहाव में कुछ फर्क आया है। IIT-BHU में सिविल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ रह चुके प्रोफेसर यूके चौधरी बताते हैं कि जहां पर पुल बनाया गया है, वहां पर गंगा हल्का सा पश्चिम की ओर मुड़ती हैं। वहीं पर पुल के पिलर भी हैं, जिससे पानी के बहाव में रूकावट पैदा हो रही है।
इससे गंगा द्वारा बहाकर लाया गया बालू वहां पर जमने लगा है। इसके अलावा रेत की नहर जब बनाई गई थी, वहां पर गड्ढा खोद दिया गया। जहां पर तल उथला होना चाहिए था, वहां पर गहराई हो गई है और रेत अब घाटों की ओर शिफ्ट होने लगा है। इसके पहले अभी तक रेत जमने का स्थान रामनगर किले के सामने होता था। गर्मी बढ़ती है पानी का बहाव कम होता है और गंगा के आगे बढ़ते ही रेत का जमाव पूरब की ओर होने लगता था। यह गंगा की नॉर्मल कंडीशन है।
गंगा का पानी जा रहा है दिल्ली
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन और प्रख्यात गंगा विज्ञानी प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी बताते हैं कि उत्तराखंड में गंगा का पानी रोका गया है। इससे पानी का बहाव कम हुआ और सिल्ट्रेशन रेट बढ़ गया। जिस वजह से संकट की यह स्थिति खड़ी हुई है। वहीं गंगा के पानी की कुछ मात्रा हरिद्वार और भीमगौड़ा कैनाल से दिल्ली की ओर तरफ छोड़ा जा रहा है। वहीं काफी हद तक गंगा के पानी को सिंचाई के लिए नहरों में मोड़ दिया गया है। इससे गंगा की मुख्य धारा दिनों-दिन छोटी होती जा रही है। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि भारत को अपनी वाटर पॉलिसी बनाने की जरूरत है। इससे ग्राउंड वाटर के दोहन पर रोक लगेगी।
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