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जनता से रिश्ता वेबडेस्क| हाल ही 'ब्रॉड बैन्ड च्वॉइसेस डॉट कॉम' की ओर से 'द साइंस ऑफ स्केयर प्रोजेक्ट' के तहत दुनिया की 10 सबसे डरावनी भुतहा फिल्मों का चयन किया गया है। ब्रॉड बैन्ड च्वॉइसेस की ओर से किए गए इस अध्ययन में दरअसल, मोबाइल, टीवी और इंटरनेट पर हॉरर फिल्में (Horror Movies) देखने के शौक़ीन के 50 विशेषज्ञों ने सबसे डरावनी हॉरर फिल्म की खोज में फिल्म समीक्षकों की समीक्षाओं के आधार पर अपने-अपने समय की सभी शीर्ष हॉरर फिल्मों में से 50 को देखने के लिए 120 घंटे से अधिक समय बिताया। इन फिल्मों को देखने के पूरे अनुभव के दौरान, इन सभी प्रतिभागियों की हृदय गति की निगरानी की गई और रीडिंग ली गई। सभी फिल्मों को देखने के बाद प्रतिभागियों की हृदय गति को देखने के बाद उच्चतम दर नापी गई जो सिनिस्टर (Sinister) मूवी को देखे जाने के वक्त औसतन 86 से 131 बीपीएम तक पहुंच गई थी। यह औसत हृदय गति यानी दिल के धड़कने की सामान्य औसत गति 65 बीपीएम से कहीं ज्यादा थी। हालांकि 2012 में आई इस हॉरर मूवी को समीक्षकों की औसत रेटिंग मिली लेकिन इसका 'द साइंस ऑफ स्केयर प्रोजेक्ट' की सबसे डरावनी सूची में शीर्ष पर जगह बनाना बहुत से लोगों को हैरान कर सकता है।
लेकिन सिनिस्टर को टक्कर देने वाली और सूची में दूसरे स्थान पर रहने वाली फिल्म है 2010 की सुपरनेचुरल घटनाओं पर आधारित फिल्म 'इंसीडियस' (Insidious) जिसे देखते समय इन 50 विशेषज्ञों की दिल की धड़कनों की गति औसतन 85 से 133 बीपीएम तक पहुंच गई थी। हालांकि ब्रॉड बैंड च्वॉइसेज ने जिन 50 फिल्मों की दोबारा समीक्षा की है उसकी पूरी सूची जारी नहीं की है। लेकिन टॉप 10 में शामिल होने वाली और औसत हृदय गति के आधार पर इन फिल्मों को चुना है।
ये फिल्मे टॉप 10 में शामिल
01. सिनिस्टर (86 बीपीएम)
02. इंसीडियस (85 बीपीएम)
03. द कन्ज्यूरिंग (84 बीपीएम)
04. हेरेडिएट्री (83 बीपीएम)
05. पैरानॉर्मल एक्टिविटी (82 बीपीएम)
06. इट फॉलोज (81 बीपीएम)
07. द कन्ज्यूरिंग-2 (80 बीपीएम)
08. द बाबाडुक(80 बीपीएम)
09. द डिसेंट (79 बीपीएम)
10. द विजिट (79बीपीएम)
क्यों डराती हैं हॉरर फिल्में
दरअसल डरावनी फिल्में हमारे दिल-ओ-दिमाग पर गहरी और स्थायी छवि बनाती हैं, जो दर्शकों को घर जाने के बाद भी उनके साथ उनके दिमाग में रहती हैं। कभी-कभी, दृश्य वास्तव में इतने इंटेंस होते हैं कि लोग अभी भी उन्हें दिन, सालों यहां तक कि जीवन भर याद रखते हैं। डरावने दृश्य हमेशा चौंकाने वाले, अजीब-ओ-गरीब, परेशान करने वाले यहां तक की हमारी कल्पना से भी परे होते हैं। यह वैज्ञानिक सच है किजो बातें हमें आश्चर्यचकित करने के साथ ही समझ में भी न आए हम उसे लंबे समय तक याद रखते हैं। एक और बात अंजान चीज का अहसास। हम जिसे देख नहीं पाते या जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते उससे हमें डर लगता है। ऐसे ही पात्रों का घटनाक्रम के अनुसार हाव-भाव दिखाना भी हमें डराता है। मसलन जब व्यक्ति फर्श पर गिरा हुआ रेंग रहा होता तो हमें सिरहन सी चढ़ जाती है कि कुछ डरावना होने वाला है।
वहीं हॉरर फिल्मों में दिखाई जाने वाली लोकेशन भी हमारे लिए डरने की वजह बन जाती है। क्योंकि ऐसी फिल्मों में यह सिर्फ एक लोकेशन या जगह न होकर हॉरर फिल्म का ही एक डरावना पात्र बन जाता है। कुछ लोग अलग-अलग फोबिया से पीडि़त होते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक विकार है जिसमें एक विशेष स्थिति या चीज से हमें डर लगता है। जो कई बार बड़ा बेतुका और तर्कहीन भी हो सकता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा उस फोबिया से बचने का प्रयास करता रहता है। लेकिन डरावनी फिल्मों में ऐसे फोबिया ने दर्शकों को सीधे प्रभावित किया है। सबसे ज्यादा कॉमन फोबिया को फिल्म में दिखाने का मतलब है कि हॉल में बैठे दर्शकों के एक बड़े वर्ग को आसानी से डराया जा सकता है।
एक और फैक्ट है पीछा किया जाना। डरवानी फिल्मों में एक साइको किलर या किसी प्रेत द्वारा पीछा किए जाने का विचार दर्शकों को तुरंत डराने का काम करता है। क्योंकि यह उनके अस्तित्व की प्रवृत्ति के साथ-साथ उनकी जिज्ञासा को भी भड़काता है कि कोई जब पीछा करता है तो कैसा महसूस होता है। आखिर में सबसे महत्वपूर्ण पात्र वह बुरी ताकत, मोन्स्टर या साइको किलर, एक विक्षिप्त हत्यारा, भूत, दानव या परग्रही जो किसी भी डरावनी फिल्म में कहानी की रूपरेखा की प्रभावशीलता को कल्पना की हद तक डरावना बना सकते हैं।