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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ब्रह्माण्ड में तारों (Stars) और उनसे दूसरे पिंडों का निर्माण कैसे हुआ यह एक बहुत ही जटिल प्रश्न है. इसी से जुड़ा सवाल है कि हमारी पृथ्वी का निर्माण (Formation of Earth) कैसे हुआ था. सदियों से चल रहे वैज्ञानिक अध्ययनों और अंतरिक्ष अवलोकनों के आधार पर विज्ञान ने कुछ हद तक इसगुत्थी को सुलझाने का प्रयास किया है. पृथ्वी का निर्माण का इतिहास हमारे सौरमंडल (Solar System) के इतिहास से अलग नहीं हैं. लेकिन क्या हम पूरी तरह से जानसके हैं कि पृथ्वी कैसे बनी थी और उसे बनाने में किन किन प्रक्रियाओं और कारकों का योगदान था. आइए जानते हैं कि इस बारे में क्या कहता है विज्ञान?
गैस और धूल के कणों से शुरुआत
अरबों साल पहले मिल्की वे गैलेक्सी के एक कोने में गैस और धूल का बादल घूम रहा था. इसमें किसी पुराने तारे के अवशेष भी थे जिसमें बहुत पहले सुपरनोवा विस्फोट हुआ था. गैस और धूल के कण तैरते रहे लेकिन वे शुरू में दूर दूर ही थे. लेकिन तभी पास के एक तारे में भी सुपरनोवा विस्फोट हुआ जिससे अंतरिक्ष में प्रकाश और ऊर्जा के झटके वाली तरंगे चारों ओर फैल गईं इससे इस बादल में गैस और धूल के कण पास पास आ गए.
सूर्य और चक्रिका का निर्माण
जल्दी ही गैस और धूल का बादल एक विशाल गेंद में बदल गया और गुरुत्व के प्रभाव से यह और बड़ा होता गया. गैस और धूल के कणों के बीच अंतरक्रिया होने लगी और गेंद के अंदर शक्तिशाली नाभकीय प्रतिक्रिया होने लगी और बादल की गेंद सूर्य जैसे तारे में तब्दील हो गई. जबकि धूल और गैस का बहुत सारा हिस्सा सूर्य का चक्कर लगाने लगा जिसे ग्रह निर्माण करने वाली चक्रिका (Protoplanetary Disk) कहते है.
शिशु ग्रहों का निर्माण
कालांतर गैस और धूल कण फिर पासपास आने लगे और ग्रह निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई. जल्दी ही ये गैस और धूल के कण मिलकर एक बड़ा आकार लेने लगे जबकि गैस और धूल के कण अब भी सूर्य का चक्कर लगा रहे थे. इन पिंडों से धूल और गैसे के कण और ज्यादा मात्रा मे जुड़न लगे और उनमें से एक पिंड आगे चल कर हमारी पृथ्वी बन गई.
विशाल होते ग्रह
वहीं दूसरे हिस्सों से बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून ग्रह और उनके चंद्रमा भी बने. सभी शिशु ग्रह घूर्णन कर रहे थे और अपने आसपास का पदार्थ अपनी ओर खींच भी रहे थे और अपना आकार बढ़ा रहे थे. हमारी पृथ्वी से भी कई पत्थर टकरा रहे थे और उसके अंदर गिर रहे थे. इस पूरी प्रक्रिया में उसका पदार्थ गर्म होता गया और वह पिघली हुई चट्टान की एक विशालकाय गेंद बन गई.
और चंद्रमा बनने की प्रक्रिया
इसी बीच एक और बड़ी घटना हुई. और पृथ्वी एक और विशाल पिंड टकरा गया जिससे पृथ्वी तो और ज्यादा बड़ी हो भी गई लेकिन इससे एक टुकड़ा भी दूर अंतरिक्ष में तैरने लगा जो बाद में हमारे ग्रह का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा बन गया. इस अवधारणा पर कुछ वैज्ञानिकों को आपत्ति भी है, लेकिन अभी यही धारणा सबसे मजबूत है. उस समय की पृथ्वी में ज्वालामुखी बहुत ज्यादा थे.
पृथ्वी का ठंडा होना
धीरे धीरे पृथ्वी ठंडी होने लगी लेकिन इसमें बहुत समय लगा. इस बीच कई बर्फ कीचट्टानें और गैस पृथ्वी पर आई और बर्फ के पिघलने से यहां समुद्रों और महासागरों का निर्माण होने लगा. पृथ्वी के ठंडा होने की प्रक्रिया लंबे समय तक जारी रही और पृथ्वी की ऊपरी परत ठंडी होकर ठोस हो गई जबकी गहराई में पिघली चट्टानें गर्म ही रहीं.
इसी के बाद पृथ्वी पर जीवन के अनुकूल हालात बन गए. वायुमंडल, महासागर, धरती पर पेड़ पौधे आदि से जानवरों और अन्य जीवों का विकास हुआ. इस दौरान पृथ्वी में महाविनाश की घटनाएं और कुछ चरम मौसमी बदलाव की घटनाएं भी हुई जिससे कई तरह के नई प्रजातियां का आगमन हुआ. इस बीच डायनासोर आए और खत्म भी हो गए. इस बाद कुछ लाख साल पहले ही इंसानों का धरती पर विकास हुआ और कुछ सौ साल पहले ही सभ्यताओं ने विज्ञान के विकास के बाद कुछ ही दशकों पहले तकनीकी विकास देख जिससे अंतरिक्ष यात्राएं, गगनचुंबी इमारतें, आदि देखने को मिले.
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