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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इंसान चंद्रमा (Moon) पर भी कदम रख चुका है और अंतरिक्ष में जाना वैज्ञानिकों के लिए आम सा होगा गया. मंगल ग्रह (Mars) पर जाने की बातों के साथ वहां इंसानों के बसने के लिए शोधों पर काम तक शुरू हो चुका है. लेकिन इन जगहों पर इंसान कैसे जिंदा रह सकेगा यह बड़ा सवाल है.पृथ्वी पर जीवन के समर्थन के लिए वातावरण पानी, ऑक्सीजन, विकरणों से बचाने के लिए वायुमंडल की परतें तक हैं. रेडियो सुरक्षा सूट में इंसान रह भी ले, लेकिन भोजन (Food) एक बड़ी चुनौती है जिसमें पौधों (Plants) की चुनौती शामिल है. इसी सिलसिले में अंतरिक्ष के विकिरण (Radiation) का सामना करने वाले माहौल में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) में एक शोधकर्ताओं ने EXPOSE नाम का एक खास जगह पर प्रयोग किया जिसमें बीजों (Seeds) को विकिरणों के खतरनाक माहौल का सामना कराया.
हानिकारक विकिरणों (Harmful Radiatons) का अंतरिक्ष में बीजों (Seeds) पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसके लिए एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट डेविड टेप्फर और सिडनी लीच ने ISS के बाहर बीजों को रखा. इससे पहले बहुत से बीजों से संबंधित प्रयोग ISS के अंदर रखे गए थे जहां वे बाहरी अंतरिक्षीय विकरणों से पूरी तरह से सुरक्षित थे. शोधकर्ता इस बीजों पर लंबे समय पर विकिरणों पर होने वाले प्रभाव को अणुओं के स्तर (Molecular levels) तक को जानना चाहते थे.
ये बीज भी आम बीज (Seeds) नहीं थे. पृथ्वी (Earth) पर भी इन्हें विपरीत स्थितियों में जांचा गया था. इन बीजों के डीएनए (DNA) में सूखे, जानवरों के हमले, जैसी स्थितियों का अनुभव और रक्षा प्रणाली (Defence system) मौजूद थी. इंसान की तरह बीज के डीएनए में भी प्रमुख जीन्स (Genes) की प्रतियों की जानकारी रहती हैं. कुछ हिस्सा खत्म हो जाने पर भी बीजों में काफी जीन्स की जानकारी खास तौर पर अस्तित्व के संघर्ष की जानकारी गायब नहीं होती. इसके अलावा इसन बीजों की ऊपरी परत एक यौगिक फ्लावोनॉइड की बनी होती है जो अपने अंदरूनी हिस्सों को पराबैंगनी विकिरणों (Ultra violet Rays) से बचाने के लिए प्राकृतिक सनस्क्रीन की तरह काम करता है.
इन गुणों के कारण एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट इन बीजों (Seeds) को अंतरिक्ष की यात्रा के लिए आदर्श (Ideal space travellers) मानते हैं. लेकिन ये पृथ्वी (Earth) की प्रक्रियाओं में अपना अस्तित्व बचाने में सफल रहे थे. वैज्ञानिक जानना चाहते थे कि क्या इन बीजों की प्रक्रियाएं बाहरी अंतरिक्ष में भी काम कर सकती हो सकती हैं या नहीं. शोधकर्ताओं ने ऐसे बहुत से प्रयोग ISS के अंदर-बाहर और पृथ्वी पर तंबाखू, अरेबिडॉप्सिस और मॉर्निंग ग्लोरी सीड्स पर बहुत से प्रयोग किए हैं.
एक्सपोज-ई (EXPOSE-E) प्रयोग साल 2008 में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में पहुंचा था और वहां एक साल से ज्यादा के समय तक वहां रहा. इसमें दो सेट बनाए गए थे. एक को कांच की सुरक्षा में रखा गया था, जिसमें कुछ ही पराबैंगनी किरणें (Ultra Violet Rays) अंदर आ सकती थी. जबकि दूसरा हिस्सा विकिरण से पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया था. दूसरे मिशन एक्पोज-आर में बीजों को दो गुने पराबैंगनी किरणों के सामने खुला छोड़ा गया है. वहीं नियंत्रित लैब माहौल में बीजों को उच्च पराबैंगनी किरणों के सामने एक महीने तक रखा गया था.
जब ये बीज (Seeds) पृथ्वी (Earth) पर वापस लाए गए थे तो 90 प्रतिशत अच्छी तरह से अंकुरित (Germinate) होने में सफल रहे. वहीं जिन्हें पराबैंगनी किरणों (Ultra Violet Rays) के सामने एक महीने तक रखा गया था उनमें से 80 प्रतिशत बीज अंकुरित हो गए. कांच के आवरण में रखे गए 60 प्रतिशत बीज अंकुरित होने में सफल रहे. वहीं जो पूरी तरह से विकिरणों के सामने रखे गए थे, उनमें से केवल तीन प्रतिशत ही बचे रहे और अंकुरित हो सके.
एक बार अरेबिडॉप्सिस को मिट्टी मे बोया गया था और उनमें से एक भी अंकुरित (Germinate) नहीं हो सकता था. तंबाखू के बीज थोड़े बेहतर थे. अंतरिक्ष (Space) में भेजे गए बहुत से बीज (Seeds) अंकुरित होने में सफल रहे. तमाम अध्ययनों के बाद शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि विकिरण से डीएनए (DNA) खराब नहीं होते हैं बल्कि वृद्धि में रुकावट प्रोटीन (Protien) में गड़बड़ी की वजह से होती है.
बहुत कम ही लोगों को पता है कि सबसे अंतरिक्ष (Space) की यात्रा बीजों (Seeds) ने की है. साल 1946 में नासा (NASA) ने V2 रॉकेट प्रक्षेपित किया था जिसमें मक्के (Maize) के बीज भेजे गए थे. इन बीजों से यह जानने का प्रयास किया गया था कि उनपर विकिरण का क्या प्रभाव पड़ता है. तब से वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष के वातावरण का बीजों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में काफी कुछ जानकारी मिल चुकी है जिसमें अंकुरण, मेटॉबॉलिज्म, जेनेटिक, बायोकेमेस्ट्री और बीज उत्पादन सभी शामिल है.