विज्ञान

अध्ययनकर्ताओं ने खोजी, एंटीबॉडी की मौजूदगी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की राह

Tara Tandi
8 Aug 2021 1:51 PM GMT
अध्ययनकर्ताओं ने खोजी, एंटीबॉडी की मौजूदगी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की राह
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कोरोना वायरस का प्रभावी इलाज खोजने के लिए विज्ञानी दिन-रात काम कर रहे हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| कोरोना वायरस का प्रभावी इलाज खोजने के लिए विज्ञानी दिन-रात काम कर रहे हैं।कोरोना वायरस का प्रभावी इलाज खोजने के लिए विज्ञानी दिन-रात काम कर रहे हैं।कोरोना वायरस का प्रभावी इलाज खोजने के लिए विज्ञानी दिन-रात काम कर रहे हैं।इन शोध कार्यो में बड़ी सफलता भी मिल रही हैं। हाल ही में विज्ञानियों ने मानव शरीर में ही ऐसी एंटीबाडी को पहचाना है, जो कोरोना वायरस के हर वैरिएंट पर कारगर हो सकती है। अब इस एंटीबाडी से वैक्सीन बनाने पर अध्ययन किया जा रहा है, जो कोरोना के इलाज में सौ फीसद कारगर हो सके। ये एंटीबाडी उन लोगों के शरीर में मिली है, जो कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद ठीक हो चुके हैं।

यूनिवर्सिटी आफ वाशिंगटन का यह अध्ययन जर्नल साइंस में प्रकाशित किया गया है। अध्ययन के अनुसार शोधकर्ताओं ने कोरोना से ठीक हुए लोगों में पांच तरह के मोनोक्लोनल एंटीबाडी की पहचान की है, जो कई तरह के कोरोना वायरस वैरिएंट के साथ क्रास रिएक्शन कर उन्हें निष्‍क्र‍िय करने में सक्षम हैं। कोरोना से ठीक हुए लोगों में मिलीं ये पांच तरह की एंटीबाडी सभी वैरिएंट को खत्म करने में कारगर होने पर विज्ञानी उत्साहित हैं।

इस अध्ययन को आगे बढ़ाते हुए विज्ञानी एंटीबाडी से वैक्सीन बनाने की संभावना तलाश रहे हैं। अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि इस खोज के आधार पर ऐसी वैक्सीन तैयार हो सकती है, जो कोरोना के इलाज के लिए शत-प्रतिशत कारगर होगी। किसी नए वैरिएंट पर कारगर न होने की आशंका भी नहीं रहेगी। उल्‍लेखनीय है कि कोरोना संक्रमण से बचाव में शरीर में मौजूद एंटीबॉडी का महत्‍वपूर्ण योगदान है।

एंटीबॉडी की मौजूदगी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। यह एक प्रकार का ब्लड प्रोटीन है जिसकी अहमियत कोरोना संक्रमण से बचाव में जाहिर हुई है। इससे पहले अमेरिका की ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी (ओएचएसयू) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्‍ययन के अनुसार एंटीबॉडी युवाओं की तुलना में बुजुर्गों के शरीर में कम विकसित होती हैं। अध्‍ययन में पाया गया था कि कोविड रोधी वैक्‍सीन लेने के बावजूद हमारे बुजुर्ग कोरोना के नए वैरिएंट के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो सकते हैं।

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