विज्ञान

शोधकर्ता ने किया सीधा अवलोकन, पहली बार देखा गुरू ग्रह के चंद्रमा लो पर ज्वालामुखी का प्रभाव

Gulabi
23 Oct 2020 3:16 AM GMT
शोधकर्ता ने किया सीधा अवलोकन, पहली बार देखा गुरू ग्रह के चंद्रमा लो पर ज्वालामुखी का प्रभाव
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गुरू ग्रह के चंद्रमा लो सौरमंडल के चंद्रमाओं से सबसे सक्रिय ज्वालामुखियों वाला चंद्रमा है चार सौ से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गुरू ग्रह (Jupiter) के चंद्रमा (Moon) लो (lo) हमारे सौरमंडल (Solar System) के चंद्रमाओं से सबसे सक्रिय ज्वालामुखियों (Volcano) वाला चंद्रमा है. इसमें चार सौ से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं. ये ज्वालामुखी सल्फर (Sulphur) की गैसें बाहर निकालते हैं जिसकी वजह से लो के रंगों में पीला, सफेद, नारंगी और लाल रंग का मिश्रण दिखाई देता है जब ये गैसें इस उपग्रह की सतह पर जम जाती हैं.

बहुत ही पतला वायुमंडल है लो का

लो का वायुमंडल पृथ्वी के वायुमंडल की तुलना में बहुत ही पतला है. फिर भी वैज्ञानिकों को लगता है कि इससे काफी कुछ सीखा जा सकता है. लो की ज्वालामुखी गतिविधि से हमें इस चंद्रमा के आंतरिक भाग के बारे में जानकारी मिल सकती है. और साथ ही हमें यह भी पता चल सकता है कि इसकी रंगीन पर्पटी (crust) के नीचे क्या है.

सल्फर डाइऑक्साइड की प्रमुखता

इससे पहले के शोध से पता चला था कि लो का वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड प्रमुख तौर पर मौजूद है. जिसका मूल स्रोत ज्वालामुखी गतिविधि है. बर्केले की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के इमके डि पैटर ने बताया, "हम यह नहीं जानते थे कि लो के वायुमंडल में गतिविधियों को संचालित करने के पीछे कौन से कारक हैं. क्या ये ज्वालामुखी गतिविधियां हैं, या सूर्य की रोशनी से बर्फीली सतह से बनने वाली गैस है."

चंद्र ग्रहण की स्थिति में अध्ययन

लो के वायुमंडल के विभिन्न प्रक्रियाओं में अंतर करने के लिए खगोलविदों की एक टीम ने ALMA टेलीस्कोप का उपोयग किया और लो की तब तस्वीरें लीं जब वह गुरू ग्रह की छाया से अंदर और बाहर निकलकर आता था. यह चंद्र ग्रहण की स्थिति होती है.

चंद्र ग्रहण ही क्यों

न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी की स्टेशिया लोजेच कुक ने बताया, "जब लो गुरू ग्रह की छाया में जाता है और सीधे सूर्य की किरणें उस पर नहीं पड़ती हैं, तब उसकी सतह सल्फर डाइ ऑक्साइड के लिए बहुत ही ठंडी होती हैं और वह सतह पर जम जाती है. ऐसे में हम यह देख सकते हैं कि ज्वालामुखी गतिविधि का वायुमंडल पर वास्तव में कितना असर हुआ है.

क्या नई बात पता लगी

आल्मा के खास रिजोल्यूशन और संवेदनशीलता की वजह से खगोलविद पहली बार सल्फर डाइ ऑक्साइड और सल्फर मोनो ऑक्साइड के बादल ज्वालामुखी से ऊपर उठते हुए देखे. उनकी तस्वीरों को देखकर खगोलविदों ने पता लगाया कि सक्रिय ज्वालामुखी केवल 30 से 50 प्रतिशत की मात्रा में ही इन्हें निकाल रहे हैं.

और एक गैस ये भी

शोधकर्ताओं ने ALMA की तस्वीरों से यह भी पता लगाया कि ज्वलामुखियों से एक और गैस निकल रही है वह है पौटेशियम क्लोराइड, इसमें भी खास बात यह रही है कि यह पौटेशियम क्लोराइड उन इलाकों में दिखाई दे रहा था जहां सल्फर डाइ ऑक्साइड या सल्फर मोनो ऑक्साइड नहीं निकल रहे थे. इससे साफ पता चलता है कि अलग ज्वालामुखियों के अलग मैग्मा भंडार हैं.

टाइडल हीटींग

लो पर ज्वलामुखी सक्रियता टाइडल हीटिंग के कारण होती है. गुरू ग्रह का चक्कर लगाने वाली लो की कक्षा पूरी तरह वृत्ताकार नहीं है. और हमारी पृथ्वी के चंद्रमा की तरह उसका भी एक हिस्सा हमेशा ही गुरू ग्रह की ओर रहता है.

ऐसे में गुरू और उसके अन्य चंद्रमा यूरोपा और गैनीमीड के गुरुत्व प्रभाव के कारण इसमें आंतरिक घर्षण और गर्मी पैदा होती है. जिसके कारण वहां 200 किलोमीटर चौड़े लोकी पटेरा नाम के ज्वालामुखी बन जाते हैं. शोधकर्ताओं को लो की सतह के तापमान जानकारी के लिए और शक्तिशाली रिजोल्यूशन की जरूरत है जिससे उन्हें अन्य सवालों के जवाब मिल सकते हैं.

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