विज्ञान

शोध: मंगल ग्रह के वायुमंडल की चौंकाने वाली खोज, जल्द सुलझेगा लाल ग्रह का एक रहस्य

Gulabi
15 Nov 2020 10:26 AM GMT
शोध: मंगल ग्रह के वायुमंडल की चौंकाने वाली खोज, जल्द सुलझेगा लाल ग्रह का एक रहस्य
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शोधों ने यह सिद्ध किया है कि मंगल ग्रह (Mars) के निर्माण के समय के बाद से ही करोड़ों साल तक पानी वहां मौजूद था.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हाल ही में हुए कई शोधों ने यह सिद्ध किया है कि मंगल ग्रह (Mars) के निर्माण के समय के बाद से ही करोड़ों साल तक पानी (Water) वहां मौजूद था. लेकिन बाद में मंगल ग्रह से पानी गायब हो गया था. कभी महासागरों (Ocean) से भरा यह ग्रह आज सूखा है जिसने कई लोगों को हैरान कर रखा है कि ऐसा कैसे हो गया. अब एरिजोना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इसका कारण पता लगा लिया है. शोधकर्ताओ ने मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंल में पानी की विशाल मात्रा का पता लगाया है जहा वह तेजी से खत्म हो रहा है. इससे मंगल के एक रहस्य सुलझता दिख रहा है.

नासा के MAVEN मिशन से मिली मदद

एरीजोना यूनिवर्सिटी के लूनार एंड प्लैनेटरी लैबोरेटरी के स्नातक छात्र और इस शोध के प्रमुख लेखक शेन स्टोन हैं. शेन ने साल 2014 में से नासा के मार्स एट्मॉस्फियर एंड वोलेटाइल इवोल्यूशन यानि MAVEN मिशन में काम किया है. MAVEN स्पेसक्राफ्ट साल 2014 से मंगल ग्रह का चक्कर लगा रहा है. इस दौरान उनसे मंगल के ऊपरी वायुमंडल की संरचना के आंकड़े जमा किए हैं.

मंगल पर पानी का गायब होना

स्टोन ने बताया, "हम जानते हैं कि अरबों साल पहले मंगल की सतह पर पानी था, उस समय वहां जरूरी मोटा वायुमंडल रहा होगा. लेकिन हम जानते है कि हमें किसी तरह मंगल का अधिकांश वायुमंडल खो गया है. MAVEN इसके लिए जिम्मेदार प्रक्रियाओं को जानने की कोशिश कर रहा है. इनमें से एक यह जानना है कि मंगल से वास्तव में पानी कैसे गायब हुआ.


NIGIMS ने जुटाई जानकारी

मंगल का चक्कर लगाते समय MAVEN उसके वायुमंडल में हर 4.30 घंटों में एक बार अंदर जाता है. इसका उपकरण, नेचुरल गैस एंड आयन मास स्पेक्ट्रोमीटर NIGIMS मंगल के ऊपरी वायुमंडल में आयनीकृत पानी के अणुओं का मापन कर रहा है. यह मंगल की सतह से 100 मील की ऊंचाई पर है. इस जानकारी से वैज्ञानिक यह पता लगा पाए कि मंगल के वायुमंडल में कितना पानी मौजूद है.


MAVEN और हबल टेलीस्कोप

MAVEN और हबल टेलीस्कोप के पिछले अवलोकनों ने दर्शाया है कि मंगल के ऊपरी वायुमंडल में पानी की मात्रा का कम होना भी कम ज्यादा होता है. पृथ्वी की तुलना में मंगल की सूर्य की परिक्रमा ज्यादा अंडाकार है और मंगल के दक्षिणी गोलार्द्ध के गर्मी के मौसम में यह सूर्य के सबसे निकट होता है.

मंगल पर ये गतिविधियां

स्टोन और उनकी टीम ने पाया कि जब मंगल सूर्य के पास होता है तो यह ग्रह गर्म हो जाता है और ज्यादा पानी जो मंगल की सतह पर बर्फ के रूप में हैं यह ऊपरी वायुमंडल में आ जाता है जहां से वह अंतरिक्ष में खो जाता है. ऐसा मंगल पर उसके साल में एक बार होता है यानि पृथ्वी के दो साल में एक बार होता है. क्षेत्रीय धूल के तूफान मंगल पर उसके हर साल में आते हैं जबकि वहां ग्लोबल स्टॉर्म हर दस साल में एक बार जिससे वहां का वायुमंडल और ज्यादा गर्म हो जाता है. इससे पानी और ऊपर उठता जाता है.

मंगल पर ये गतिविधियां

स्टोन और उनकी टीम ने पाया कि जब मंगल सूर्य के पास होता है तो यह ग्रह गर्म हो जाता है और ज्यादा पानी जो मंगल की सतह पर बर्फ के रूप में हैं यह ऊपरी वायुमंडल में आ जाता है जहां से वह अंतरिक्ष में खो जाता है. ऐसा मंगल पर उसके साल में एक बार होता है यानि पृथ्वी के दो साल में एक बार होता है. क्षेत्रीय धूल के तूफान मंगल पर उसके हर साल में आते हैं जबकि वहां ग्लोबल स्टॉर्म हर दस साल में एक बार जिससे वहां का वायुमंडल और ज्यादा गर्म हो जाता है. इससे पानी और ऊपर उठता जाता है.

अंतरिक्ष मे खो जाना

आमतौरपर मंगल की बर्फ पानी में बदल कर गैस बनती है और फिर सूर्य की किरणों के कारण निचले वायुंडल में ही ये टूटने लगते हैं और फिर और ऊपर की ओर आने लगते हैं जबकि पृथ्वी पर ये ज्यादा ऊपर नहीं आ पाते और ठंडे होकर वर्षण के जरिए सतह पर नीचे आ जाते हैं. एक बार ऊपरी वायुमंडल मे पहुंचने पर पानी के वाष्प टूटने लगते हैं और अंततः अंतरिक्ष में चले जाते हैं.

शोधकर्ताओं ने गणना कर पता लगाया कि यह प्रक्रिया ही मंगल ग्रह के महासागरों का पानी अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए जिम्मेदार रही होगी जो आज भी जारी है. फिर भी शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसा करने के लिए केवल यही प्रक्रिया जिम्मेदार होगी ऐसा नहीं है. और वजह का पता लगाने की जरूरत है.

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