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हमारे सौरमंडल (Solar System) में दूर के ग्रहों का अध्ययन आसान काम नहीं हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हमारे सौरमंडल (Solar System) में दूर के ग्रहों का अध्ययन आसान काम नहीं हैं. खासतौर पर सूर्य के पास बुध ग्रह (Mercury) के अध्ययन में कई अड़चने हैं. वैसे तो पृथ्वी पर मौजूद टेलीस्कोप से बुध ग्रह के बारे में काफी जानकारी मिल चुकी है. लेकिन ताजा अध्ययन ने बुध के बारे में चली आ रही वैज्ञानिकों की धारणा को तोड़ी हैं. वैज्ञानिक बुध ग्रह के आंतरिक भाग में मौजूद बड़े क्रोड़ को होने का नया कारण बताया है. दशकों तक वैज्ञानिक दूसरे पिंडों से टकराव होते रहने कारण बुध ग्रह का मैंटल पथरीला था और उसकी क्रोड़ (Core) बड़ी, घनी और धातु वाली थी. लेकिन नए शोध का कहना है कि इसके लिए सूर्य का चुंबकत्व जिम्मेदार है.
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैड में जियोलॉजी के प्रोफेसर विलियम मैकडोनो और तोहोकू यूनिवर्सिटी के ताकाशी योशीजाकी ने मिलकर ऐसा मॉडल बनाया है जो दर्शाता है कि सूर्य (Sun) के सबसे पास स्थित यह पथरीले ग्रह (Rocky Planet) के क्रोड़ का धनत्व, भार और उसमें लोहे की मात्रा सूर्य के मैग्नेटिक फील्ड (Magnetic Field) से दूरी से प्रभावित होते हैं. मैकडोनो का कहना है बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल अलग अनुपातों की धातुओं और पत्थर से बने हैं. जैसे ग्रह सूर्य से दूर जाता है क्रोड़ में धातु की मात्रा कम होती जाती है.
शोधकर्ताओं ने अपने शोधपत्र में यह दर्शाया कि सौरमंडल के निर्माण (Formation of solar System) के समय पदार्थ के वितरण कैसे सूर्य के मेग्नेटिक फील्ड (Magnetic field) से नियंत्रित हुआ करता था. मैकडोनो ने इससे पहले पृथ्वी (Earth) की संरचना का मॉडल विकसित किया था जिसे आज ग्रह विज्ञानियों द्वारा बाह्यग्रहों की संरचना का पता लगाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. उनका नया मॉडल दर्शाता है कि सौरमंडल के निर्माण के शुरुआत में युवा सूर्य आसपास घूमते हुए धूल के बादलों और गैस से घिरा था. और लोहे के टुकड़े सूर्य के मैग्नेटिक फील्ड के केंद्र की ओर खिंची चली गई थी.
जब ग्रह (Planets) बनने लगे तो धूल और बादल के गुच्छे बनना शुरू हो गए थे. इससे सूर्य (Sun) के पास के ग्रहों में ज्यादा लोहा आता गया. शोधकर्ताओं ने पाया कि पथरीले ग्रहों (Rocky planets) की क्रोड़ में लोहे के घनत्व और अनुपात का सूर्य के आसपास के मैग्नेटिक फील्ड की शक्ति से संबंधित होता है. अध्ययन में सुझाया गया है कि मैग्नेटिज्म को भविष्य में हमारे सौरमंडल के बाहर के पथरीले ग्रह की संरचना की व्याख्या करने के कारक के तौर पर शामिल किया जाना चाहिए.
किसी ग्रह (Planet) की क्रोड़ की उस पर जीवन को समर्थन करने में अहम भूमिका होती है. पृथ्वी (Earth) पर पिघले हुए क्रोड़ से मैग्नेटोस्फियर बनता है जो कॉस्मिक किरणों से हमारे ग्रह और उसके जीवन को बचाता है. क्रोड़ में किसी ग्रह का सबसे ज्यादा फॉस्फोरस भी होता है जो कार्बन आधारित जीवन को कायम रखने के लिए बहुत हम पोषक तत्वों का निर्माण करता है. शोधकर्ताओं ने अपने मॉडल से गैस और धूल की उस गति का पता लगा है जो हमारा सौरमंडल (Solar System) अपने निर्माण के दौरान अपने केंद्र खींच रहा था. उन्होंने इन लोहे की मात्रा की गणना जो धूल और बादलों से खिंच कर आया होगा.
जैसे ही हमारा शुरुआती सौरमंडल (Solar System) ठंडा होना शुरू हुआ, धूल और गैस सूर्य की ओर नहीं खिंचे, सूर्य के पास आने पर उनका सामना तेज मैग्नेटिक फील्ड (Magnetic Field) से हुआ होगा. सूर्य के पास इन गुच्छों में ज्यादा लोहा रहा होगा. और ये ही गुच्छे ठंडे होकर घूमते हुए ग्रह (Planet) बन गए जिनके क्रोड़ में लोहा चला गया होगा. मैक्डोनो ने पाया कि ग्रहों के निर्माण के समय क्रोड़ धातु की मात्रा जो गणना उनके माडल ने की वह बिलकुल वैसी है जो हमारे वैज्ञानिक पहले से बताते हैं. बुध की धातु वाली क्रोड़ उसके भार का केवल एक तिहाई हिस्सा बनाते हैं. बाहरी ग्रहों के क्रोड़ अपने भार का केवल एक चौथाई भार बनाते हैं.
ग्रह निर्माण (Planet formation) में मैग्नेटिज्म की नई भूमिका बाह्यग्रहों (Exoplanet) के अध्ययन के लिए बहुत उपयोगी है क्योंकि फिलहाल किसी भी तारे के बारे में पृथ्वी आधारित अवलोकनों से चुंबकीय (Magnetism) विशेषताओं के बारे में पता लगाने का कोई तरीका नहीं है. फिलहाल बाह्यग्रहों के तारे के स्पैक्ट्रम के अध्ययन से ही उसके ग्रहों के बारे में पता चलता है. लेकिन अब सूर्य से उनकी दूरी और घनत्व से काफी कुछ पता चल पाएगा
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