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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यदि इंसानों ने ग्रीन हाउस गैसों (Greenhouse gases) का उत्सर्जन (Emission) कल से ही बंद कर दिया तो भी पृथ्वी (Earth) आने वाली कई शताब्दियों तक गर्म (Warming) होती रहेगी और महासागरों की जलस्तर कई मीटर तक बढ़ता रहेगा. हाल ही में प्रकाशित अध्ययन में यह कहा गया है. इस विवादास्पद मॉडलिंग अध्ययन में कहा गया है कि जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के प्राकृतिक कारक हावी होते जा रहे हैं, उससे यही लगता है कि अब हमारे ग्रह के तापमान को कम करने के इंसानी प्रयास बेअसर हो जाएंगे.
कौन से कारक
इस अध्ययन में ग्लोबल वार्मिंग के प्राकृतिक कारक जैसे और ज्यादा ऊष्मा पकड़े रखने वाले बादल, अति जमाव के बाद विघलन, घटती समुद्री बर्फ आदि पहले से ही प्रदूषण के कारण सक्रिय हो चुके है. अब वे अपनी गति से चलेंगे औ वापस नहीं लौटेंगे. नॉर्वे के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन नेचर जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है.
न लौट सकने वाला बिंदु
इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता जोर्गन रैंडर्स का कहना है कि उनकी मॉडल्स के मुताबिक इंसान के लिए बर्फ के पिघलने को ग्रीन हाउस गैसों की कटौती के दम पर अब यह न लौट सकने वाला बिंदु है. रैंडर्स ने बताया, "यदि हम यह पिघलाव की प्रक्रिया को रोकना चाहते हैं तो हमें वायुमंडल से ही कार्बन डाइऑक्साइड खींचकर बाहर निकाल कर जमीन में स्टोर करने जैसा कुछ अतिरिक्त करना होगा."
दो तरह की स्थितियां
रैंडर्स और उनकेसाथी उलरिच गोलुके ने एक क्लाइमेट मॉडल का उपयोग करते हुए साल 2500 का दो स्थितियों में हाल बताया. पहले में उत्सर्जन फौरन रुक जाएगा और दूसरा साल 2100 तक धीरे धीरे हमारे ग्रह पर गर्मी बढ़ाने वाली गैसें शून्य के स्तर तक साल 2100 तक पहुंच जाएं.
कितना होगा बुरा हाल
इस मॉडल के अनुसार अगर कार्बन प्रदूषण एक बटन की तरह रुकजाए तो भी हमारा ग्रह अगले 50 साल में पूर्व औद्योगिक स्तरों से 2.3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होगी. यह 2015 के पेरिस समझौते के लक्ष्य से करीब आधा डिग्री ज्यादा है. लेकिन यह मॉडल कहता है कि इसके बाद पृथ्वी ठंडी होने लगेगी.
दूसरी स्थिति में भी कमोबेश यही हाल
आज पृथ्वी की सतह 19वीं सदी के मध्य के स्तर से 1.2 डिग्री सेंटीग्रेड ज्यादा गर्म है जब से वैश्विक तापमान बढ़ना शुरू हुआ था. इस मॉडल के अनुसार साल 2150 से पृथ्वी फिर से धीरे धीर गर्म होने लगेगी. जिसमें वह अलगे 350 सालों तक औसत तापमान एक डिग्री बढ़ेगा. इसके साथ ही समुद्री जलस्तर कम से कम तीन मीटर तक बढ़ जाएगा. दूसरे हालात पृथ्वी लगातार गर्म होती रहेगी और साल 2500 के समय तक स्तर तक पहुंच जाएगी.
ऑटोमैटिक होती ग्लोबल वार्मिंग
इस अध्ययन में बताया गया है कि बहुत सारे न लौट सकने वाले बिंदु पृथ्वी की जलवायु सिस्टम पहले ही पार कर चुके हैं. इसकी वजह से वार्मिंग प्रक्रिया अब अपने आप बढ़ने लगी है. जैसा कि लाखों साल पहले हो चुका है.
प्रभावी कारक
इनमें से एक कारक आर्कटिक की समुद्री बर्फ का पीछे हटना है पिछली सदी के अंत से लाखों वर्ग किलोमीटर की बर्फ जिसपर पड़ने वाली 80 प्रतिशत सूर्य की किरणें वापस प्रतिबिंबित होजाती थीं, खुले महासागर में बदल गई है. जो उतनी ही सूर्य की किरणें अब अवशोषित कर लेता है. इसके अलावा बर्फ का पिघलना, हवा में वाष्प के बढ़ने जैसे कई कारक हैं जो ग्लोबल वार्मिंग को जारी रखे हुए हैं.
इस शोध पर वैज्ञानिकों की मिली जुली प्रतिक्रया हो रही है. बहुत से वैज्ञानिकों ने इस मॉडल की की खामियां निकाली है. जो भी हो यह सच है कि ग्लोबल वार्मिंग की कई प्रक्रियाएं इंसानी प्रयास के नियंत्रण से बाहर होती जा रही हैं