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समय के साथ हर प्राणी में बदलाव होता है और इंसान (Humans) इसका अपवाद नहीं हैं.
समय के साथ हर प्राणी में बदलाव होता है और इंसान (Humans) इसका अपवाद नहीं हैं. अपने उद्भवकाल में इंसान में बहुत से बदालव आए हैं. आधुनिक मानव जिसे होमो सेपियन्स (Homo sapiens) कहा जाता है उसमें भी बदलाव हो रहे हैं. यह अलग बात है कि हाल में हुए बदलावों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है. लेकिन फिर भी हमारे वैज्ञानकों की इस पर पूरी नजर रहती है कि हममें क्या बदलाव आ रहे हैं और किस वजह से आ रहे हैं. इन बदलावों में प्रमुख है हमारे शरीर आकार आकार और मस्तिष्क. नए अध्ययन के अनुसार शोधकर्ताओं का कहना है कि इनकी वजह हमारी जलवायु (Climate) है.
मानव विकास के पीछे कारक
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और जर्मनी की ट्यूबिनजेन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने होमो वंश के 300 जीवाश्म का अध्ययन किया और उस आंकड़ों के साथ क्लाइमेट मॉडल्स के साथ जोड़कर मानव विकास में उसकी भूमिका की पहचान की. यह अध्ययन नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसमें कहा गया है कि बहुत से मत बताते हैं कि मानव विकास के पीछे पर्यावरण, जनसांख्यकीय, सामाजिक, खुराक औक तकनीक कारकों की भूमिका है.
तापमान की भूमिका
शोधकर्ताओं ने पाया है कि होमोसेपियन्स में पिछले दस लाख सालों में उनके शरीर के आकार के निर्धारण के पीछे तापमान के प्रमुख भूमिका रही है. उन्होंने यह जानने का प्रयास किया कि जीवाश्म को अपने काल में किसी तरह के तापमान, वर्षण और जलवायु संबंधी हालात का समाना करना पड़ा जब वे जीवित थे.
दो प्रमुख लक्षण
इस अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं का कहना ह कि शरीर और मस्तिष्क का आकार किसी प्रजाति की अनुकूलन रणनीति के दो प्रमुख जैविक लक्षण हैं. हाल के अध्ययनों ने शरीर और मस्तिष्क के आकार में विविधता के आंकलन को बेहतर और विस्तृत किया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि पिछले 40 लाख सालों में मानव विकास मोटे तौर पर लगातार अपने भार और संरचना में वृद्धि का चलन दिखा रहा है.
जलवायु के प्रभाव की भूमिका
पाया गया है कि मानव मस्तिष्क का आकार बढ़ने के साथ बर्ताव से जुड़े बदालव, खुराक और जनसांख्यिकीय विस्तार भी हो रहे हैं. लेकिन पिछले बीस लाख सालों में होमोसेपियन्स के आकार के औसत में 50 से 70 किलोग्राम तक की वृद्धि हो चुकी है. इस पर जलवायु के प्रभाव को जानने के लिए शोधकर्तां ने लंबे समय के ग्लेशियर और अंतरग्लेशिर जलवायु विविधताओं का अपने अध्ययन में शामिल किया जो पृथ्वी की सूर्य का चक्कर लगाने वाली कक्षा एवं ग्रीन हाउस गैसों जैसे कारकों को शामिल किया.
ये विशेष प्रभाव
मानवशरीर का भार ठंडे वातावरण में ज्यादा पाया गया जबकि गर्म वातारवरण में कम भार होता है. ऐसा ही अवलोकन ध्रुवीय भालू अन्य जानवरों में भी पाया गया. अपने अवलोकनों के आधार पर शोधकर्ता दिमाग के आकार का जलवायु के हालात से संबंध स्थापित करने में सफल रहे. उन्होंने कहा कि वे लंबी अवधि तक वर्षा में विविधता के साथ संबंध का पता लगा सके जिसमें उन्होंने पाया कि मस्तिष्क का आकार लंबी वर्षा अवधि के स्तर बढ़ने से छोटा होता गया.
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