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पिछले साल एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में शुक्र ग्रह (Venus) के वायुमंडल में फॉस्फीन गैस (Phosphine) के पाए जाने की बात की थी
पिछले साल एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में शुक्र ग्रह (Venus) के वायुमंडल में फॉस्फीन गैस (Phosphine) के पाए जाने की बात की थी. इस अनोखे और रहस्यमी रसायन के बारे में कहा गया था कि यह केवल सूक्ष्मजीव ही बना सकते हैं जिससे शुक्र ग्रह पर जीवन की संभावनाओं को लेकर खासी चर्चाएं निकल पड़ी थी. बाद में वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि फॉस्फीन मिलने का मतलब यह नहीं हैं कि शुक्र पर जीवन निश्चित रूप से हो. हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है कि यह रसायन शुक्र के ज्वालामुखियों (Volcano) से आया है.
जीवन के बहुत प्रतिकूल हाल हैं शुक्र पर
दरअसल शुक्र ग्रह की सतह और वायुमंडल दोनों में ही जीवन के बहुत ही प्रतिकूल हालात हैं. दोनों ही जगह पर तापमान कम से कम 400 डिग्री सेल्सियस का तापमान होता है. वायुमंडल में सल्फ्यूरिक एसिड बहुत ही घने वाष्प रूप में विद्यमान है. ऐसे में फास्फीन वहां के वायुमंडल में पाई गई.
फॉस्फीन को इतनी अहमियत क्यों
फॉस्फीन पृथ्वी पर केवल सूक्ष्मजीवन से ही पैदा हो सकती है इसी तथ्य ने शुक्र ग्रह पर जीवन की संभावनाओं की अटकलों को हवा दे दी. फॉस्फीन एक हानिकारक गैस है. यह एक फोसफोरस के परमाणु के साथ तीन हाइड्रोजन परमाणु के साथ जुड़ने पर बनती है. लेकिन यह पृथ्वी जैसे ऑक्सीजन समृद्ध वातावरण में तेजी से टूट जाती है. लेकिन सौरमंडल में यह गैस कई ऐसी जगहों पर भी पाई जाती है जहां जीवन नहीं है.
फॉस्फीन गैस का शुक्र के वायुमंडल (Venus Atmoshpere) में पाया जाना लोगों में कौतूहल पैदा कर गया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: NASA)
शुक्र पर फॉस्फीन का अजैविक स्रोत
हाल में हुआ अध्ययन प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसमें दलील दी गई है कि शुक्र ग्रह पर ज्वालामुखी प्रस्फुटन से निकला फॉस्फाइड ही फॉस्फीन का अजैविक स्रोत है. वैज्ञानिक पिछले अवलोकनों में ही शुक्र पर बड़ी मात्रा में ज्वालामुखी गतिविधियों की सक्रिय मौजूदगी पा चुके हैं.
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वायुमंडल में कैसे आई फॉस्फीन
शोधकर्ताओं का कहना है कि शुक्र की सतह पर हुए ज्वालामुखी उत्सर्जन से बहुत सारे फॉस्फोरस से भरे यौगिक ग्रह के वायुमडंल में चले गए होंगे. ये फॉस्फाइड शुक्र ग्रह के वायुमंडल में पहले से मौजूद सल्फ्यूरिक एसिड से प्रतिक्रिया कर फॉस्फीन में बदल गए होंगे. शोधकर्ताओं का कहना है कि फॉस्फीन बनने के लिए बहुत ही विशाल मात्रा में उत्सर्जन होना जरूरी है.
ऐसे बनी होगी फॉस्फीन
वैज्ञानिकों ने अपनी दावे की पुष्टि के लिए इंडोनेशिया के क्राकोताओ द्वीप में हुए पृथ्वी पर अब तक के सबसे विनाशकारी ज्वालामुखी विस्फोट की मिसाल दी जो साल 1883 में हुआ था. शोधकर्ताओं का कहना है कि फॉस्फोरस ऑक्सीकृत होकर फॉस्फेट के रूपों में बदल गया होगा. और अजैविक स्रोत के रूप में कुछ मात्रा में फॉस्फाइड में बदल गया होगा जिसके बाद हाइड्रोजन फॉस्फाइड में बदला होगा जिसे फॉस्फीन कहते हैं.
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शुक्र का होगा अध्ययन
फॉस्फीन की बहस ने आम लोग ही नहीं बल्कि वैज्ञानिकों तक में इस ग्रह पर गहरी रुचि जगा दी है. नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी दोनों ने शुक्र ग्रह के अध्ययन के लिए अपने अपने अभियान भेजने का ऐलान किया है. वैसे भी शुक्र के बादलों में जीवन के होने का विचार नया नहीं है. इसे सबसे पहले खगोलविद कार्ल सैगन और बायोफिजिसिस्ट हरोल्ड मौरोविट्ज ने 1967 में और उसके बाद मार्क बुलॉक और डेविड ग्रिन्स्पून ने सुझाया था.
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