विज्ञान

रिसर्च में हुआ खुलासा, माँ की गर्भ में ही चिलाना सिख लेते है ये बंदर

Tulsi Rao
16 May 2022 7:29 AM GMT
रिसर्च में हुआ खुलासा, माँ की गर्भ में ही चिलाना सिख लेते है ये बंदर
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इंसान का बच्चा जब पैदा होता है, वह सबसे पहले रोता है. पैदा होते ही उसने सबसे पहले रोना सीखा. लेकिन मर्मोसेट बंदर (Marmoset Monkeys) गर्भ में ही रोने की प्रैक्टिस करते हैं.

बायोरेक्सिव (BioRxiv) पर पोस्ट किए गए एक प्रीप्रिंट में कहा गया है कि मर्मोसेट भ्रूण (Marmoset Fetuses) के अल्ट्रासाउंड से पता चलता है कि वे गर्भ में, बोलने के लिए इस्तेमाल किए गए खास पैटर्न की नकल या मिमिक्री (mimicry) कर रहे हैं. ये गर्भ में उस वक्त हो रहा है, जब वे आवाज निकालना भी नहीं जानते.
मर्मोसेट बंदर एकदूसरे से संपर्क करने के लिए अलग तरह की आवाजें निकालते हैं, जिन्हें संपर्क कॉल (Contact calls) कहते हैं. यह सीटी जैसी आवाज निकालते हैं. शिशुओं के प्रारंभिक व्यवहार (Early Behaviors) को आमतौर पर इननेट (Innate) कहा जाता है. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी (Princeton University) की एक टीम ने पता लगाने की कोशिश की कि ऐसा क्यों होता है. एक बच्चा पैदा होते ही रोना कैसे जान लेता है?
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में शोध करने वाले व्यवहारिक न्यूरोसाइंटिस्ट (Behavioral Neuroscientist) दर्शन नारायणन और उनके सहयोगियों ने मर्मोसेट बंदरों पर ध्यान दिया, क्योंकि बंदरों में स्वरों का विकास इंसानों की तरह होता है. वैज्ञानिकों ने दो मर्मोसेट बंदरो का चार अलग-अलग प्रगनेंसी के दौरान, रोजाना अल्ट्रासाउंड किया.
गर्भावस्था के करीब 95 दिनों में, पहली बार किसी भ्रूण का चेहरा दिखाई दिया. शोधकर्ताओं ने देखा कि हर युवा भ्रूण अपने मुंह और चेहरे के अन्य हिस्सों को अपने सिर के साथ हिलाता है. जैसे-जैसे गर्भावस्था आगे बढ़ती है, चेहरे की भाव और सिर स्वतंत्र रूप से हिलने लगते हैं. ये साफ जाहिर था कि ऐसा करके भ्रूण, खाने या बोलने जैसे कामों के लिए खुद को तैयार कर रहा है.
शोधकर्ताओं ने जल्द ही यह समझ लिया था कि भ्रूण के मुंह के मूवमेंट्स ठीक एक मर्मोस्ट बंदर की तरह ही थे, जिसे वे एक दूसरे से संपर्क करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के जीवविज्ञानी आसिफ गज़नफर (Asif Ghazanfar) कहते हैं कि यह कॉन्टैक्ट कॉल इतने अनोखे हैं कि आप वास्तव इसे पहचानने में गलती नहीं कर सकते.
लेकिन पुष्टि करने के लिए, गज़नफर, नारायणन और उनकी टीम ने उनकी अवधि निर्धारित करने के लिए भ्रूण के जबड़े की मूवमेंट को फ्रेम-दर-फ्रेम ट्रैक किया. उन्होंने भ्रूण के 'सिलेबल्स' (Syllables) की संख्या को भी मापा. इसके बाद भ्रूण के मूवमेंट की तुलना जन्म के बाद, बेबी मर्मोसेट की आवाज से की. जैसे-जैसे भ्रूण जन्म के करीब पहुंचता है, उसके चेहरे और मुंह की हरकतें शिशु कॉन्टैक्ट कॉल की तरह ही होती जाती हैं.
ऐसा करके शोधकरर्ताओं ने अपनी बात को सिद्ध भी कर दिया. शोधकर्ताओं का कहना है कि भ्रूण जन्म के बाद यह कॉल करने की क्षमता विकसित कर रहा है. नारायणन कहते हैं कि यह इस विचार का समर्थन करता है कि शुरुआती रोना जादुई या चमत्कारी नहीं होता, बल्कि ये विकास काफी लंबा है, जो गर्भ में होता है.


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