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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) पृथ्वी पर तेजी से बदलाव ला रहे हैं. लेकिन ये बदलाव कब तक प्रभावी रहेंगे और किन किन जलवायु घटकों को पूरी तरह से खत्म कर देंगे इसका आंकलन नहीं हुआ है. आर्कटिक भी उन क्षेत्रों में शामिल है जिस पर जलवायु परिवर्तन का बड़ा असर देखने को मिल रहा है. साइबेरिया के जंगलों की वृक्षरेखा भी लागातार लेकिन धीरे धीरे उत्तर की ओर खिसक रही है. नए अध्ययन में पता चला है कि अगर लगातार प्रयास नहीं किए तो इस सहस्राब्दी के मध्य तक पूरा का पूरा साइबेरियाई टुण्ड्रा (Siberian Tundra) ही गायब हो जाएगा.
कोशिशों के बाद केवल 30 प्रतिशत ही
टुंण्ड्रा जलवायु क्षेत्र एक विशेष पेड़ो पौधों और वन्यजीवों से समृद्ध इलाका है. अल्फ्रेड वेगनर इस्टीट्यूट के विशेषज्ञों ने एक कम्प्यूटर सिम्यूलेशन तैयार किया है जो बता रहा है कि टुण्ड्रा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने के लिए लगातार प्रयास भी किए, तो भी, हम इस सहस्राब्दि के मध्य तक केवल 30 प्रतिशत साइबेरियाई टुण्ड्रा ही बचा पाएंगे.
पूरी तरह से गायब भी हो सकता है
इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि अगर हमें बचाव के उपायों पर काम नहीं किया तो यह पूरा का पूरा आवास ही पूरी तरह से गायब हो सकता है. इस अध्ययन के नतीजे हाल ही में ईलाइफ जर्लन में प्रकशित हुए हैं. आज जलवायु परिवर्तन का प्रभाव साइबेरिया, टुण्ड्रा और आर्कटिक में विशेष तौर से देखा जा सकता है.
उत्सर्जन काबू किया तो भी
पिछले 50 सालों में उत्तरी उच्च अक्षांश का औसत तापमान अन्यकिसी भी जगह की तुलना में दो डिग्री सेल्सियस ज्यादा बढ़ा है और यह चलन जारी ही रहेगा. यादि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए एमिशन सिनारियो RCP2.6 जैसे महत्वाकांक्षी उपाय भी अपनाए गए तब भी इस सदी के अंत तक यह वार्मिंग केवल दो डिग्री के ही नीचे कायम कर सकेगी.
Environment, Climate, Climate Change, Global Warming, Arctic, Siberia, Tundra, Siberian Tundra, Arctic, North America, साइबरियाई टुण्ड्रा (Siberian Tundra) के वनों में वृक्षरेखा उत्तर की ओर खिसक रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
उत्तरी उच्चअक्षांशों में भारी प्रभाव
प्रतिमानों पर आधारित अनुमानों के अनुसार यदि उत्सर्जन ज्यादा ही रहे तो साल 2100 तक आर्कटिक के ग्रीष्म औसत तापमान में 14 डिग्री सेल्सियस की नाटकीय वृद्धि देखने को मिलेगी. शोधकर्ताओं का मानना है कि आर्कटिक महासागर और समुद्री बर्फ के लिहाजसे वर्तमान और भावी तापन के गंभीर नतीजे होंगे. लेकिन इसके साथ ही जमीन के पर्यावरण में भी भारी बदलाव आएंगे.
तेजी से कम होने लगेंगे वन
साइबरिया और उत्तरी अमेरिका में फैले टुण्ड्रा वन भारी मात्रा में कम हो जाएंगें क्योंकि इनवनों की वृक्षरेखा पहले से ही बदलने लगी है और भविष्य में यह तेजी से उत्तर की ओर जाने वाली है. बुरे से बुरे हाल में इस सहस्राब्दी के मध्य में ये पूरी तरह से गायब भी हो जाएंगे हैं. शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन रूस के उत्तर पूर्व के टुण्ड्रा इलाके की प्रक्रिया का सिम्यूलेशन किया.
Environment, Climate, Climate Change, Global Warming, Arctic, Siberia, Tundra, Siberian Tundra, Arctic, North America, आने वाले सालों में साइबरियाई टुण्ड्रा (Siberian Tundra) के वन ग्लोबल वार्मिंग से पिछड़ने लगेंगे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
एक प्रमुख सवाल
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जिस प्रमुख प्रश्न पर ध्यान केंद्रित किया वह था, मानवों द्वारा किस तरह के उत्सर्जन पथ को अपनाने से टुंण्ड्रा के वनस्पति और प्राणि जगत संरक्षित रह सकते हैं और साथ ही स्थानीय लोगों को पर्यावरण के प्रित सांस्कृतिक संबंध भी कायम रह सकते हैं. टुण्ड्रा वनस्पति के 5 प्रतिशत हिस्सा विलुप्त होने के खतरे में हैं और वह आर्कटिक में ही पाए जाते हैं.
अध्ययन में पाया गया कि वनस्पति पहले तो ग्लोबल वार्मिंग के हिसाब से बदलाव नहीं कर पाएगी तेजी से खत्म होने लगेगी. लेकिन बाद में इसमें सुधार देखने को मिलने लगेगा. सहस्राब्दी के मध्य तक इसकाहिस्सा केवल 6 प्रतिशत तक रह जाएगा और अगर सही तरह से ग्रीन हाउस उत्सर्जन पर लगाम कसी गई तो यह प्रतिशत 30 प्रतिशत तक हो जाएगा. यह कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसा टुण्ड्रा के वन्य जीवों को भी अस्तित्व संबंधी कई तरह के खतरे देखने पड़ेंगे.