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हाल के कुछ सालों में हुए शोध बताते हैं कि पृथ्वी से बाहर जीवन (Life Beyond Earth) और उसके संकेत हमें अपने सौरमंडल में ही दिखाई दे सकते हैं.
हाल के कुछ सालों में हुए शोध बताते हैं कि पृथ्वी से बाहर जीवन (Life Beyond Earth) और उसके संकेत हमें अपने सौरमंडल में ही दिखाई दे सकते हैं. जहां एक तरफ बाकी ग्रहों से हमें बहुत उत्साहजनक संकेत नहीं मिल रहे हैं. कम से कम गुरु और शनि के चंद्रमा उम्मीद जगा रहे हैं. इसमें गुरु ग्रह (Jupiter) का चंद्रमा यूरोपा (Europa) बहुत ही अजीब सा पिंड साबित होता दिख रहा है. अभी तक वैज्ञानिकों को यूरोपा की बर्फीली सतह के नीचे महासागर होने और उनमें जीवन होने की उम्मीद थी. लेकिन ताजा अध्ययन में सतह पर कुछ उत्साहजनक संकेत दिखे हैं.
इस मॉडल से केवल गुरु ग्रह (Jupiter) के चंद्रमा पर ही टकराव की तस्वीर नहीं दिखती, बल्कि हमारे सौरमंडल के सभी बिना हवा के पिंडों की स्थिति का पता चलता है. शोधकर्ताओं ने हाल ही में पाया है कि यूरोपा (Europa) की सतह के नीचे की पथरीली परत इतनी गर्म होगी किउससे महासागर के नीचे के ज्वालामुखी पिघल जाएंगे. नासा का कहना है कि हो सकता है कि हाल ही में यूरोपा कीसतह के नीचे ज्वालामुखी गतिविधि हुई हो और शायद अब भी हो रही हो.
गुरु ग्रह (Jupiter) के इस बर्फीले चंद्रमा के नीचे के महासागर जीवन की अनुकूलता की बहुत संभावना जगाते हैं. लेकिन इसकी सतह को बहुत सी टकराव की घटनाओं का सामना करना पड़ा है. ताजा अध्ययन से वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यूरोपा (Europa) की सतह कितनी गहराई तक विकिरण और अन्य टकराव की घटनाओं से प्रभावित हुई है. उन्होंने गणना की है कि एक करोड़ सालों में सतह पर 12 इंच या 30 सेमी तक ही प्रभाव पड़ा है.
नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन का कहना है कि यूरोपा उपग्रह (Europa) की सतह पर मौजूद वे अणु जो सक्षम जैविक संकेत (Biosignatures) हो सकते थे, जिसमें जीवन के रासायनिक संकेत होते है. इस गहराई पर प्रभावित हुए होंगे. शोधपत्र में शोधकर्ताओं ने कहा कि यूरोपा पर मध्य और उच्च अक्षांशों के क्रेटर और इलाकों में विकिरण और अन्य टकराव का कम प्रभाव पड़ा होगा, इसलिए यहां जीवन की संभावनाएं
नासा के मुताबिक यूरोपा (Europa) में वैज्ञानिकों की खास तौर से दिलचस्पी है क्योंकि उसकी मोटी बर्फ की परत के नीच नमकीन महासागर (Salty Oceans) मौजूद हैं. उनमें ऐसे हालात होने की बहुत संभावना है जिससे वहां जीवन पनप सकता है. हो सकता है कि वहां जीवन अभी मौजूद हो और वह बर्फीली पर्पटी को पार कर गुरु (Jupiter) के इस चंद्रमा की सतह तक आ गया हो.
इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका और मनोआ स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई में रिसर्स साइंटिस्ट एमिली कोस्टेलो का कहना है कि अगर हम यूरोपा (Europa) पुरातन रासायनिक जैविकसंकेतकों को खोजने की उम्मीद करें, तो हमें टकराव के इलाकों की सतह के नीचे देखना होगा. उन इलाकों के अलावा दूसरे सतही इलाकों में रासायनिक जैविक संकेतक विनाशकारी विकिरण (Destructive Radiation, ) के सामने आ गए होंगे. शोधकर्ताओं ने इसके लिए एक खास तरह का मॉडल विकसित किया जो टकराव के प्रभावों की विस्तृत तस्वीर दिखाता है.
नया शोध यूरोपा (Europa) क्लिपर अभियान के लिए बहुत मददगार होने वाला है जिसे गुरु (Jupiter) के इस चंद्रमा पर प्रक्षेपित किया जाएगा अगर वहां जीवन का समर्थन (Life Supporting conditions) करने वाले हालात होने की पुष्टि होती है. इस अभियान का उद्देशय यूरोपा के अन्वेषण करना होगा जिससे वहां की आवासीयता का पता लग सके. यूरोपा का पहला विस्तृत अवलोन 1950 के दशक में हुआ था जिससे पता चला था कि वहां की सतह पर भरपूर पानी की बर्फ है.
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