विज्ञान

रिसर्च : 8000 साल पहले रेगिस्तानी के चट्टानों पर उकेरा गया था ऊंटों का काफिला, जानिए पूरा मामला

Rani Sahu
18 Sep 2021 10:18 AM GMT
रिसर्च  : 8000 साल पहले रेगिस्तानी के चट्टानों पर उकेरा गया था ऊंटों का काफिला, जानिए पूरा मामला
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पत्थरों पर कलाकृतियां बनाने की पंरपरा तो सदियों से रही है लेकिन सऊदी अरब के रेगिस्तान में असली ऊंटों के बराबर आकृतियां मिलने के बाद से रिसर्चर हैरान हैं

पत्थरों पर कलाकृतियां बनाने की पंरपरा तो सदियों से रही है लेकिन सऊदी अरब के रेगिस्तान में असली ऊंटों के बराबर आकृतियां मिलने के बाद से रिसर्चर हैरान हैं। माना जा रहा है कि ऊंटों के काफिले की ये आकृतियां पाषाण काल (Stone Age) की हैं। इनमें 21 ऊंट और घोड़े जैसे जानवर दिखाई दे रहे हैं। इसकी खोज 2018 में अल जॉफ प्रांत में की गई थी। पहले माना जा रहा था कि ये 2000 साल पुराने हैं लेकिन डेटिंग की नई तकनीकों से पता चला है कि ये 8000 साल पुराने हैं।

कैसा था प्राचीन रेगिस्तानी इलाका?
नई रिसर्च में पाया गया है कि ये 6000 से 5000 ईसा पूर्व के हो सकते हैं। उस वक्त यह इलाका गीला और ठंडा हुआ करता था। यहां घास के मैदान थे और बीच में झीलें भी हुआ करती थीं। यहां घोड़े, ऊंट और दूसरे जानवर घूमा करते थे। इंसान मवेशी, बकरियां और भेड़ चराता था और ऐसी खूबसूरत कलाकारियां भी दिखाता था। ये आकृतकियां प्राकृतिक चट्टानों पर उकेरी गई तीं। माना जा रहा है कि इन्हें बनाने के लिए जिस chert नाम के औजार का इस्तेमाल किया गया होगा वह 15 किलोमीटर दूर से आया होगा।
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रिसर्च के मुताबिक ये ढांचे ऐसे समुदाय के रहे होंगे जो जानवरों का जश्न मनाते हों। इन पर मवेशियों के झुंड की तस्वीरें मिली हैं। माना जा रहा है कि क्षेत्र के लोगों के लिए ये मवेशी अहम रहे होंगे। स्टडी की रिसर्चर और यूनिवर्सिटी ऑफ ऑस्ट्रेलिया की पुरातत्वविद मेलिसा केनेडी ने बताया है कि ये हजारों ढांचे दो लाख स्क्वेयर किलोमीटर के क्षेत्र में मिले हैं और ये सभी एक से आकार में हैं। इसलिए हो सकता है कि ये सभी एक सी मान्यता के तहत बनाए गए हों।
इन ढांचों में दो मोटे सिरे होते हैं जो दो या ज्यादा दीवारों से जुड़े होते हैं जो आंगन जैसे लगते हैं। इनकी लंबाई 20 से लेकर 600 मीटर तक की है। लीड रिसर्चर ह्यू थॉमस का कहना है कि जितने क्षेत्र में ये फैले हैं, इन्हें बनाने के लिए बड़े स्तर पर संपर्क किया गया होगा। रिसर्च के मुताबिक चट्टानों को दीवारों पर कुछ मीटर की ऊंचाई पर रखकर छोटे ढांचे बनाए गए जिनके सिर मोटे थे। हो सकता है कि जुलूस जैसा कुछ इनके एक तरफ से निकलता हो।
इनके बेस गोलाकार, अर्धगोलाकार दिखे जो मुख्य द्वार के बाहर थे। कुछ ढांचों में पिलर, खड़े पत्थर भी थे। अभी यह साफ नहीं है कि आखिर इतने जटिल ढांचे बनाए क्यों गए। इनमें से एक में जंगली और पालतू जानवरों के सींग और हड्डियां मिलीं। इनमें भेड़ से लेकर मवेशी भी थे। ये 5000 ईसापूर्व के आसपास के रहे होंगे।
बनाने में लगे होंगे हफ्तों
सऊदी के संस्कृति मंत्रालय, मैक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर द साइंस ऑफ ह्यूमन हिस्ट्री, फ्रांस के साइंटिफिक नैशनल रिसर्च इंस्टिट्यूट और किंद सऊद यूनिवर्सिटी के मुताबिक इसे बनाने में कुछ हफ्ते लगे होंगे। रिसर्च में शामिल पुरातत्वविद मारिया गुआगनिन का कहना है कि नवपाषाण समुदाय यहां लौट-लौटकर आते थे। इसलिए यह कहा जा सकता है कि इसकी अहमियत और जरूरत कई पीढ़ियों तक रही होगी।
कैसे लगाया गया पता?
इनकी छाप काफी हद तक मिट चुकी है, इसलिए ये कब के हैं यह पता लगाना मुश्किल रहा है। कई तरीकों से कोशिश करने के बाद इसके टुकड़ों की Luminescence डेटिंग करके यह पता लगाया गया कि ये चट्टानी दीवार से कब अलग हुए थे। इस तरीके की मदद से चट्टान में होने वाले रेडिएशन को स्टडी किया जाता है। इससेपता चलता है कि पहली बार चट्टान पर सूरज की रोशनी कब पड़ी या तेज गर्मी कब लगी और उसके बाद से कब तक रेडिएशन मिलता रहा।


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