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विज्ञान
प्लास्टिक खाने वाला मशरूम, दुनिया को है इसकी जरूरत, खत्म होगा प्लास्टिक कचरा, आइए जाने इसके बारे में
jantaserishta.com
18 April 2021 9:44 AM GMT
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1950 के बाद से अब तक धरती पर इंसानों ने 9 बिलियन टन यानी 816 करोड़ किलोग्राम प्लास्टिक बनाया है. इसमें सिर्फ 9 फीसदी ही रिसाइकिल किए गए. 12 फीसदी जलकर राख हो गए. लेकिन बचे हुए 79 फीसदी प्लास्टिक न तो जले न ही रिसाइकिल हो सके. ये प्रकृति के लिए खतरा है. अब वैज्ञानिकों ने ऐसा मशरूम खोजा है जो प्लास्टिक खाता है. ये प्लास्टिक खाकर जैविक पदार्थ बनाता है. यानी भविष्य में प्लास्टिक के कचरे से निजात मिल सकती है.
इस मशरूम का नाम है पेस्टालोटियोप्सिस माइक्रोस्पोरा (Pestalotiopsis microspora). ये मशरूम प्लास्टिक बनाने वाले पदार्थ पॉलीयूरीथेन (Polyurethane) को खाकर जैविक पदार्थ में बदल देता है. वह भी प्राकृतिक तरीके से. यानी भविष्य में प्लास्टिक के कचरे से मुक्ति पाने के लिए इस मशरूम का उपयोग ज्यादा से ज्यादा किया जा सकता है.
पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर इस मशरूम को प्लास्टिक के कचरे के ऊपर पैदा किए जाए तो कुछ ही समय में वहां पर ढेर सारा जैविक पदार्थ जमा हो जाएगा, जिसका उपयोग खाद के तौर पर किया जा सकता है. क्योंकि यह मशरूम एक प्राकृतिक कंपोस्ट की तरह काम कर रहा है. यह हमारी धरती की सफाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
मशरूम में एक खास प्रकार का कवक (Fungi) होता है जो जमीन के अंदर से या पेड़ों की छालों से पनपता है. ये आमतौर पर मृत पौधों और पेड़ों को कंपोस्ट बनाने का काम करते हैं. मशरूम की खासियत ये है कि ये कंस्ट्रक्शन मटेरियल से लेकर बायोफ्यूल तक में उपयोग होता है. इसलिए वर्षों से वैज्ञानिक मशरूम पर रिसर्च कर रहे हैं.
धरती पर 20 से 40 लाख के बीच कवकों की प्रजातियां मौजूद हैं. इसलिए भविष्य में इनकी मदद से पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई संभावनाएं हैं. येल यूनिवर्सिटी (Yale University) के वैज्ञानिकों ने ऐसा दुर्लभ मशरूम खोजा है जो प्लास्टिक के ऊपर उग सकता है. वैसे ये मशरूम फिलहाल सिर्फ इक्वाडोर के अमेजन के जंगलों में मिलता है.
येल यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट के मुताबिक यह भूरे रंग का मशरूम ऐसे वायुमंडल में भी रह सकता है जहां पर ऑक्सीजन कम हो या न हो. क्योंकि ये प्लास्टिक में मौजूद पॉलीयूरीथेन (Polyurethane) को खाकर उसे जैविक पदार्थ में बदल देता है. यानी इसे इसके जरूरत की ऑक्सीजन गैस जैविक पदार्थ के जरिए मिल जाता है.
पेस्टालोटियोप्सिस माइक्रोस्पोरा (Pestalotiopsis microspora) सिर्फ दो हफ्ते में प्लास्टिक को जैविक पदार्थ में बदलने की क्षमता रखता है. यह प्लास्टिक को ब्लैड मोल्ड में बदलने वाले दूसरे मशरूम एस्परजिलस नाइजर (Aspergillus Niger) की तुलना में काफी तेज है. वैसे आपको बता दें इससे पहले भी नीदरलैंड्स के यूट्रेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दो मशरूम से प्लास्टिक को गलाकर इंसानों के खाने लायक खाद्य पदार्थ में बदला था.
मजेदार बात ये हैं कि आप प्लास्टिक खाने वाले मशरूम पेस्टालोटियोप्सिस माइक्रोस्पोरा (Pestalotiopsis microspora) खा भी सकते हैं. यूट्रेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चर कैथरीना उंगर ने कहा कि अब भी कई ऐसे मशरूम्स हैं जो प्लास्टिक को नष्ट करते हैं. आप उन्हें खा भी सकते हैं. ऐसे मशरूम्स को खाते समय या पकाते समय एनीस या लिक्वोराइस की खुशबू आती है.
नीदरलैंड्स के वैज्ञानिकों ने प्लूरोटस ऑस्ट्रीटस (Pleurotus Ostreatus) जिसे ओइस्टर मशरूम भी कहते हैं और सिजोफाइलम कम्यून (Schizophyllum Commune) जिसे स्प्लिट गिल मशरूम भी कहते हैं को मिलाकर एक मशरूम बनाया था. यह मशरूम प्लास्टिक को गलाकर इंसानों के खाने लायक पदार्थ में बदल देता है. लेकिन ये सारे प्रयोग लैब में किए गए थे. जबकि पेस्टालोटियोप्सिस माइक्रोस्पोरा (Pestalotiopsis microspora) प्लास्टिक को प्राकृतिक तरीके से गला देता है.
साल 2017 में वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाकिस्तान के जनरल सिटी वेस्ट डिस्पोजल साइट में प्लास्टिक के कचरे पर उगा हुआ एक मशरूम देखा था. इसका नाम है एस्परजिलस ट्यूबिनजेनसिस (Aspergillus tubingensis). यह मशरूम भी दो महीने में प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों को तोड़कर छोटे-छोटे हिस्सों में बांट देता है.
सवाल ये उठता है कि आखिरकार मशरूम प्लास्टिक को खाते कैसे हैं? मशरूम आमतौर पर माइकोरमेडिएशन (Mycoremediation) नाम का एंजाइम निकालते हैं. यह एंजाइम प्राकृतिक और अप्राकृतिक कचरे को नष्ट कर देता है. यह एक तरीके की प्राकृतिक प्रक्रिया है जो संतुलन बनाने का काम करती है. माइकोरमेडिशन की प्रक्रिया सिर्फ फंगस यानी कवक ही करते हैं. इसे कोई बैक्टीरिया भी नहीं कर सकता.
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