विज्ञान

NOAA ने जताई है चिंता,गर्मी बढ़ाने में बूस्टर का काम कर रही मिथेन गैस

Kajal Dubey
11 April 2022 3:22 AM GMT
NOAA ने जताई है चिंता,गर्मी बढ़ाने में बूस्टर का काम कर रही मिथेन गैस
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पृथ्वी पर मिथेन की मात्रा में बढ़ोतरी गर्मी बढ़ाने में बूस्टर का काम कर रही है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पृथ्वी पर मिथेन की मात्रा में बढ़ोतरी गर्मी बढ़ाने में बूस्टर का काम कर रही है। अमेरिका के नेशनल ओसेनिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अनुसार पृथ्वी पर शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस मिथेन में लगातार दूसरे साल रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो बढ़ते तापमान का बड़ा कारक है।

एनओएए की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1983 में जब से मिथेन गैस के मापने की आधुनिक तकनीक आई है तब से दूसरी बार सर्वाधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वर्ष 2020 में पृथ्वी पर मिथेन की मात्रा 15.3 पीपीबी थी, जो वर्ष 2021 में बढ़कर 17 पीपीबी हो गई है।
पृथ्वी पर मिथेन की मात्रा में वर्ष 2020 की तुलना में 2021 में 1.7 पीपीबी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। एनओएए के अनुसार मिथेन गैस दुनियाभर में करीब पांच लाख अकाल मौतों का भी कारण है। पीपीबी को पार्टस पर बिलियन कहते हैं, जिससे हवा में मौजूद कणों के वजन या उनकी मात्रा की गणना होती है। पीपीबी का अधिकतर इस्तेमाल उत्तरी अमेरिका में होता है।
गर्मी को कैद कर रखती है मिथेन
वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बनडाईऑक्साइड (सीओ2) की तुलना में मिथेन शक्तिशाली गैस होती है। ये गर्मी को कैद रखने के मामले में 25 गुना अधिक ताकतवर होती है, जिसकी जलवायु परिवर्तन में भी अहम भूमिका है। जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि मिथेन जलता हुआ टॉर्च हैं वहीं सीओ2 उबलती हुई चीज जैसी है। वातावरण में मिथेन की बढ़ती मात्रा जीवन के लिए नया उभरता हुआ खतरा हो सकती है।
गैस में तेजी से कटौती की जरूरत
एनओएए के एडमिनिस्ट्रेटर और जलवायु विज्ञान विशेषज्ञ प्रोफेसर रिक स्पिनार्ड के अनुसार वातावरण में मिथेन की तेजी से कटौती से ही वैश्विक स्तर पर भयावह गर्मी को बढ़ने से रोका जा सकता है। पृथ्वी पर गैस की मात्रा में तेजी से लगातार बढ़ोतरी चिंताजनक है। किसी हाल में इसे नाकारा नहीं जा सकता है। हालात इसी तरह रहे तो पृथ्वी का हर कोना गर्मी और बढ़ते तापमान से बेहाल हो जाएगा।
मिथेन कार्बनडाई ऑक्साइड के पीछे
जीवाश्म ईंधनों के जलने से होने वाले हानिकारक गैसों के उत्सर्जन की मात्रा पर्यावरण में अधिक होती है। सीओ2 लंबे समय तक पर्यावरण में बनी रहती है। यही कारण है कि पिछले कई दशकों से दुनिया के तापमान में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। सीओ2 की तुलना में मिथेन पर्यावरण में कम समय तक रहती है, लेकिन पृथ्वी के वातावरण को पर्याप्त क्षति पहुंचा रही है।
मिथेन की चपेट में पृथ्वी कैसे
आद्रभूमि (वेटलैंड) में कार्बनिक पदार्थों के सड़ने, एनओएए के अनुसार, मिथेन गैस का एक तिहाई उत्सर्जन जीवाश्म ईंधनों के उद्योगों से होता है। तेल और गैस के उत्पादन के लिए चलने वाली औद्योगिक इकाईयां भी इस गैस के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। इसके अलावा अन्य उद्योगों और निर्माण क्षेत्रों से भी धरती को तपाने वाली इस गैस का उत्सर्जन हो रहा है।
मंगल ग्रह तक मिथेन का जाल
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया को भीषण गर्मी से बचाना है, तो मिथेन गैस के उत्सर्जन में एक तिहाई कटौती करनी होगी। मिथेन गैस का उत्सर्जन कम करने में सफलता मिलती है तो वैश्विक स्तर पर तापमान में 0.3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी को रोका जा सकता है। चिंताजनक बात ये है कि इंसान मंगल ग्रह पर अपना नया ठिकाना तलाश रहा है और वहां भी इस गैस की मौजूदगी का पता चल चुका है।
भारी पड़ेगी लापरवाही और मनमानी
क्लाइमेट लॉ इंस्टीट्यूट की निदेशक केसी सेजल का कहना है कि मिथेन का उत्सर्जन करने वाले सिर्फ लाभ पर ध्यान दे रहे हैं। अब उन्हें इस ओर भी ध्यान देना होगा कि कैसे वे अपने उद्योगों में इस गैस के उत्सर्जन और लीकेज को रोक सकते हैं। लापरवाही और मनामनी का ही नतीजा है कि वर्ष 1750 के बाद से अब तक पृथ्वी पर मिथेन की मौजूदगी में 150 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है।


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