विज्ञान

उल्कापिडों पर नई तकनीक का उपयोग कर शुरुआती सौरमंडल के बारे में निकाली जानकारी

Triveni
13 Aug 2021 5:50 AM GMT
उल्कापिडों पर नई तकनीक का उपयोग कर शुरुआती सौरमंडल के बारे में  निकाली जानकारी
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ब्रह्माण्ड और उसके पिंडों की उत्पत्ति हमारे खगोलविदों और वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण विषय है.

ब्रह्माण्ड और उसके पिंडों की उत्पत्ति हमारे खगोलविदों और वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण विषय है. इसमें ना केवल हमारे पृथ्वी (Earth) जैसे ग्रह के बनने की प्रक्रिया समझने पर ज्यादा ध्यान होता है, बल्कि हमारे सौरमंडल (Solar System) के जन्म और उस समय की स्थितियों के बारे में जानना चाहते हैं जिससे उन्हें पता चल सके कि किन हालात में पृथ्वी जैसे ग्रह बनते हैं. इस बारे में वैज्ञानिकों को उल्कापिंडों (Meteorites) से काफी उम्मीदें रहती है क्योंकि ये सौरमंडल के निर्माण के समय बने होते हैं और तबसे इनमें बिलकुल भी बदलाव नहीं होता है. ताज अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक का उपयोग कर उल्कापिंडों का अध्ययन कर उस दौर की नई जानकारीयां निकाली हैं.

मैग्नेटाइट का विश्लेषण
हमारा ब्रह्माण्ड करीब 12 से 13 अरब साल पुराना और पृथ्वी का निर्माण 4.55 अरब साल पहले हुआ था. लेकिन यह लंबी अवधि में ग्रहों की विकास की प्रक्रिया के हालात भी धीरे धीरे बनते जा रहे थे. शोधकर्ताओं ने उल्कापिंडों में मैग्नेटाइट का विश्लेषण करने सौरमंडल के निर्माण के समय के गतिकी या डायनामिक्स जानने का प्रयास किया.
किस तकनीक का उपयोग
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने बिलकुल नई तकनीक के जरिए इलेक्ट्रॉन की तरंग विशेषताओं का उपयोग किया. उन्होंने उल्कापिंड में कणों के चुंबकीयकरण का अध्ययन करने के लिए इस नई तकनीक का अध्ययन किया जिसे नैनोमीटर-स्केल पेलियोमैग्नेटिक इलेक्ट्रॉन होलोग्राफी कहते हैं.
हालोग्राम से ऐतिहासिक जानकारी
इस तकनीक में इलेक्ट्रॉन के तरंग विशेषता का उपयोग किया जाता है जिससे तरंगों के इंटरफ्रेंस पैटर्न, जिन्हें होलोग्राम कहते हैं पता लगाए जाते हैं इन होलोग्राम से ही उल्कापिंडों की संरचना की उच्च विभेदन जानकारी निकाली जाती है. जिससे इन उल्कापिंडों में छिपी पुरातन जानकारी मिलती है और उस समय के हालात के बारे पता चलता है.
इस तकनीक का उपयोग क्यों
उल्कापिंडों में कणों की मैग्नेटिक फील्ड होती है जो वस्तु में एक ऐतिहासिक जानकारी वाले दस्तावेज के रूप में देखा जा सकता है. ऐसी मैग्नेटिक फील्ट का अवलोकन और अध्ययन कर वैज्ञानिक उन घटनाओं की जानकारी निकाल सकते हैं जिनकी वजह से यह उल्कापिंड बने होते हैं और ये उल्कापिंड प्रभावित हुए होते हैं.
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टाइम कैप्सूल की तरह होते हैं उल्कापिंड
इस तरह से वैज्ञानिक उस समय की घटानाओं का पता लगा सकते हैं जो तब घटित हुई थीं जब सौरमंडल का निर्माण हो रहा था और उन्होंने उल्कापिंडों के प्रभावित किया था. जापान की होकाइदो यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ लो टेम्परेचर साइंस की ऐसोसिएट प्रोफेसर यूकी किमूरा ने बताया कि पुरातन उल्कापिंड हमारे सौरमंडल के निर्माण के समय के टाइम कैप्सूल की तरह हैं.
उल्कापिंडों की अहमियत
किमूरा का कहना है कि सौरमंडल के भौतिक और रासायनिक इतिहास को समझने के लिए अलग अलग उत्पत्ति वाले उल्कापिंडों का अध्ययन बहुत जरूरी है. उल्कापिंड पृथ्वी पर ही गिरे हैं, लेकिन अधिकांश मंगल और गुरू ग्रह के बीच क्षुद्रग्रह की पट्टी पर बने हैं इनका अध्ययन शुरुआती सौरमंडल के बारे में काफी कुछ बता सकता है. उस समय की घटनाओं की पूरी जानकारी हासिल करना बहुत मुश्किल होता है और इनसे क्षुद्रग्रह की पट्टी के आगे की जानकारी नहीं मिल सकती है.
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इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने तागिश झील के उल्कापिंड का विश्लेषण किया. उन्होने न्यूमेरिकल सिम्यूलेशन के साथ नई तकनी का उपयोग कर पता लगा है कि यह उल्कापिंड नेप्च्यून ग्रह से आगे स्थित कूपियर बेल्ट के पिंड से आया था. यह पिंड गुरू ग्रह के निर्माण के बाद उस पट्टी से बाहर निकल गया था. जिसकी वजह से इसका तापमान 250 डिग्री पार कर गया था. शोधकर्ता अपने नतीजों की पुष्टि के लिए और उल्कापिंड़ों का विश्लेषण कर रहे हैं इसमें ड्यूगू क्षुद्रग्रह से आए नमूने भी शामिल हैं.


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