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विज्ञान
नई स्टडी में खुलासा, बाहरी ग्रह पर मिली जीवन के लिए बेहद जरूरी ये चीज
jantaserishta.com
18 Jan 2022 9:53 AM GMT
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बीजिंग: Oxygen जीवन के लिए बेहद जरूरी है. अगर इस गैस की स्टडी की जाए तो किसी भी ग्रह के बारे में बहुत कुछ पता चल सकता है. लेकिन अगर यह किसी ग्रह पर कम है तो वहां पर पत्थर भी पिघल सकते हैं. वजह है नमक और पिघलती हुई बर्फ. ये बर्फ और नमक पत्थरों को पिघला देते हैं. एक नई स्टडी में यह खुलासा हुआ है कि हमारे सौर मंडल से बाहर एक ग्रह (Exoplanet) पर ऑक्सीजन है लेकिन उससे क्या असर हो रहा है, वो हैरान करने वाला है.
प्रयोगशाला में यह बात पुख्ता हो चुकी है कि जहां पर ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होती है, वहां पर पत्थर ज्यादा तेजी से पिघलते हैं. बजाय कम ऑक्सीजन की मात्रा वाली जगहों पर. इस स्टडी से पता चलता है कि ऑक्सीजन से भरे पथरीले एक्जोप्लैनेट का मैंटल एक सूप की तरह घना होता है. इसका मतलब ये है कि यह बाहरी ग्रह भूगर्भीय स्तर पर सक्रिय है. यह स्टडी हाल ही में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में प्रकाशित हुई है.
ऐसे चिपचिपे आंतरिक संरचना वाले पथरीले ग्रहों पर भूगर्भीय गतिविधियों की संभावना ज्यादा होती है. ग्रह के अंदरूनी हिस्से में मौजूद मैग्मा में बहते हुए पिघले पत्थर उसे जियोलॉजिकल एक्टिविटी के लिए सक्रिय करते हैं. जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है, तब पानी के भाप के साथ कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलता है. जिससे ज्वालामुखी के बाहर ऐसा वातावरण बनता है जो जीवन की उत्पत्ति का कारण बन सकते हैं.
धरती के मैंटल के पिघलने की प्रक्रिया तो ज्यादातर वैज्ञानिकों को पता है लेकिन वैज्ञानिक इनके पिघलने की प्रक्रिया के दौरान लोहे जैसे धातुओं का योगदान समझना चाहते हैं. बीजिंग स्थित सेंटर फॉर हाई प्रेशर साइंस एंड टेक्नोलॉजी एडवांस्ड रिसर्च के प्लैनेटरी साइंटिस्ट यानाहो लिन ने कहा कि हमने पत्थरों के पिघलने में ऑक्सीजन के किरदार को अनदेखा किया है.
यानाओ लिन ने कहा कि धरती पर ऑक्सीजन की मात्रा सबसे ज्यादा पाए जाने वाली गैसों में से एक है. पथरीले बाहरी ग्रहों पर भी ऐसा ही होता होगा. लेकिन किसी भी वैज्ञानिक ने पथरीले ग्रहों पर ऑक्सीजन के किरदार को समझने की कोशिश नहीं की. यानाहो और उनकी टीम ने पिघला देने वाले तापमान के अंदर ऐसे ग्रहों पर क्या होता है, उसकी स्टडी की. स्टडी करने के लिए दो परिस्थितियों की जांच की...पहला जहां ऑक्सीजन बहुत ज्यादा है. दूसरा जहां ऑक्सीजन बहुत कम है.
यानाहो ने फॉक्स रॉक को चुना ताकि पिघलने की प्रक्रिया के समय ऑक्सीजन के प्रभावों को समझ सकें. साथ ही लोहे की मौजूदगी और उसके प्रभावों को भी दरकिनार करने की कोशिश की, क्योंकि इससे भी पत्थर पिघलते हैं. जब पिघले हुए पत्थर 1000 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर ठंडे होने शुरु होते हैं, तब ज्यादा ऑक्सीजन वाले इलाके में पिघले हुए धातु ज्यादा समय तक टिके रहते हैं. जबकि कम ऑक्सीजन वाले इलाके में ऐसा नहीं होता.
ऑक्सीजेनेटेड पत्थर 100 डिग्री सेल्सियस पर ठोस होने लगते हैं. जबकि बाकियों को 1000 डिग्री सेल्सियस चाहिए होता है. जैसे ही नमक बर्फ के पिघलने वाले तापमान को कम करता है, ऑक्सीजन की मौजूदगी से पत्थर पिघलने लगते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि नमक कहां से आया. हर पत्थर में नमक होता है. यानाओ लिन का मानना है कि ऑक्सीजन की वजह से पत्थरों में मौजूद सिलिकॉन और ऑक्सीजन कणों को लंबी चेन टूटने लगती है. ये पत्थर छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटने लगते हैं. ये टुकड़े आसानी से मैग्मा या मैंटल में बह सकते हैं.
ऑक्सीडेशन की प्रक्रिया का स्तर यह बताता है कि युवा एक्जोप्लैनेट का सूप जैसी आंतरिक संरचना कितनी देर में उसकी परतों में जमा होगी. ज्यादा ऑक्सीडाइज्ड और पिघलने लायक पत्थर कम तापमान में ग्रह के कोर को सॉलिड बना देते हैं. उसके ऊपर सूप जैसा मैंटल होता है. इनके ऊपर बिना धातुओं की भुरभुरी परत होती है.
यानाहो लिन और उनकी टीम अब इस एक्जोप्लैनेट की स्टडी के जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (James Webb Space Telescope) के पूरी तरह से तैनात होने का इंतजार कर रहे हैं. उसके बाद इस टेलिस्कोप से इस ग्रह का अध्ययन करेंगे. इस काम में यानाहो की मदद करने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट भी सामने आने वाले हैं.
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