विज्ञान

नई जानकारियां आई सामने, जानें मंगल ग्रह पर 30 दिन कैसे रहेंगे एस्ट्रोनॉट्स

Tulsi Rao
12 Jun 2022 6:42 AM GMT
नई जानकारियां आई सामने, जानें मंगल ग्रह पर 30 दिन कैसे रहेंगे एस्ट्रोनॉट्स
x

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नासा मंगल पर इंसानों को एक महीना या उससे ज्यादा रोकने की तैयारी में लगा है. ताकि एस्ट्रोनॉट्स लाल ग्रह की सतह पर समय बिताकर रिसर्च कर सकें. नई जानकारियां जमा कर सकें. पर इससे पहले कई काम करने हैं. वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के बीच चर्चा का बड़ा मुद्दा ये है कि एक महीना एस्ट्रोनॉट्स करेंगे क्या? मंगल पर गए खोजकर्ता क्या वहां पर झंडा लगाएंगे. जिंदा रहने के लिए किस तरह की मशक्कत करनी होगी. किस जगह लैंडिंग की जाएगी. कई तरह के सवालों के जवाब खोजने हैं. लेकिन मंगल पर बनने वाले बेस का नाम तय हो गया है.

मंगल पर बनने वाले पहले इंसानी बेस का नाम है मार्स बेस 101 (Mars Base 101). पिछले महीने नासा ने एक मीटिंग बुलाई. जिसमें यह तय किया गया कि मंगल ग्रह पर बनने वाले पहले बेस पर मौजूद एस्ट्रोनॉट्स क्या करेंगे. कैसे इंसानी मिशन मंगल तक जाएगा. पूरे मिशन के दौरान किस-किस तरह के ऑपरेशन होंगे. किस तरह के साइंटिफिक जांच किए जाएंगे.

मीटिंग में एक मजेदार बात ये निकल कर आई कि एस्ट्रोनॉट्स को भेजने से पहले एक रोबोटिक मिशन भेजा जाएगा. ताकि किस तरह के उपकरणों की जरूरत मंगल पर पड़ेगी वो उसकी जांच करें. फिर ऐसे उपकरणों को भेजा जाएगा. जो इंसानों को लाल ग्रह पर जिंदा रखने के लिए जरूरी हों. क्योंकि मंगल ग्रह पर एस्ट्रोनॉट्स को ज्यादातर समय तक काम करना होगा, ताकि वो जीवित और स्वस्थ रह सके

ह्यूस्टन स्थित नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर के एस्ट्रोमटेरियल्स रिसर्च एंड एक्स्प्लोरेशन साइंस डिविजन के प्लैनेटरी साइंटिस्ट पॉल नाइल्स ने कहा कि 30 दिन मंगल पर रहने वाले एस्ट्रोनॉट्स को आराम से ज्यादा काम करना होगा. उनका शेड्यूल बेहद टाइट होगा. ताकि हम ज्यादा से ज्यादा जानकारी जमा कर सकें. पहले मिशन के बाद मंगल पर कई और तरह के रिसर्च होंगे. साथ ही इंसानों की बस्ती बसाने में मदद मिलेगी.

नाइल्स ने कहा कि हमें मंगल ग्रह को समझने के लिए कई तरह के रिसर्च की जरूरत है. जो लाल ग्रह पर पहुंचने के बाद ही पूरी होगी. डेनेवर में 4 और 6 मई को हुई बैठक में हमने दुनिया भर के बेस्ट वैज्ञानिकों को बुलाया था. इस मीटिंग के बाद एक मार्स इंटीग्रेशन ग्रुप बनाया गया था. जिसकी प्रमुख मिशेल रकर हैं. मिशेल ने कहा कि हमने पूरी दुनिया से मंगल ग्रह पर इंसानी बस्ती बसाने के लिए एकसाथ काम करने वाले लोगों को बुला लिया है.

मिशेल रकर ने कहा कि मंगल मिशन की सबसे बड़ी कठिनाई है, धरती से उसकी दूरी. मंगल पर इंसानों को भेजने के लिए और उन्हें वापस बुलाने के लिए दो साल या उससे ज्यादा का समय लगेगा. हमने आजतक किसी को भी इतने समय के लिए अंतरिक्ष में नहीं भेजा है. इतनी लंबी यात्रा के लिए मजबूत यान, पूरा खाना-पीना, ईंधन आदि सब देना होगा. क्योंकि यंत्रों को भेजना आसान होता है, इंसानों को भेजना मुश्किल होगा.

मिशेल रकर ने कहा कि मंगल ग्रह पर एक महीना बिताना बहुत समय नहीं है. लेकिन फिलहाल हम इतना ही सोच सकते हैं. इससे ज्यादा की उम्मीद नहीं लगा सकते. हमें इंसानों के मंगल पर पहुंचने से पहले कुछ रोबोटिक यंत्र और कार्गो भेजने होंगे. मंगल से लौटते समय इंसान वहां पर बहुत सारी चीजों को छोड़कर आएंगे. सबसे ज्यादा जरूरी है पावर स्टेशन, कम्यूनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना. ताकि धरती से संपर्क में रहा जा सके

नासा ने ऐसे मिशन पहले चांद पर किए हैं. अपोलो मिशन ने नासा के वैज्ञानिकों को बहुत कुछ सिखाया है. मंगल ग्रह पर पहला इंसानी बेस बनाने और वहां पर एक महीना रहना, पूरी दुनिया के लिए एक नई बात होगी. इसमें बहुत ज्यादा खर्च आने वाला है. सुपरसूट्स बनाने होंगे. प्रेशराइज्ड रोवर बनाने होंगे, जिसमें इंसान बैठकर चल फिर सकें. प्रेशराइज्ड केबिन्स बनाने होंगे. जिसमें एस्ट्रोनॉट्स रह सके

मंगल ग्रह पर धरती की तुलना में 40 फीसदी कम गुरुत्वाकर्षण है. यानी ऐसी स्थिति में सभी वस्तुओं और इंसानों को संभलकर चलना-फिरना होगा. या फिर ग्रैविटी के मुताबिक यंत्रों की डिजाइनिंग करनी होगी. एस्ट्रोनॉट्स को हर दिन खाना-पीना, सोना, धरती पर अपने डॉक्टर से बात, गाना सुनना होगा. ताकि वो रिलैक्स कर सकें.

Next Story