- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- विज्ञान
- /
- नई खोज: नासा ने मंगल...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के खगोलविज्ञानियों (Astronomers) ने मंगल ग्रह (Mars) पर पृथ्वी (Earth) के जैसे ही रेत के अरबों साल पुराने धोरों (Sand Dunes) को ढूंढ निकाला है। रेत के ये धोरे मंगल ग्रह पर एक घाटी (Canyon) में किसी खेत की तरह बहुत अंदर मौजूद था। लगभग एक अरब साल (1 Billion Years) साल से सतह के नीचे दबे रहने के कारण रेत के ये टीबे ठोस चट्टानों में बदल गए हैं। बहुत ज्यादा क्षरण होने के बावजूद मैदान की तरह दूर तलक फैले ये ठंडे जमे हुए टीबे और रेत के धोरे समय बीतने के साथ सतह की गहराई में अच्छी तरह से संरक्षित हो गए थे। ये पृथ्वी पर रेत की जीवाश्म तरंगों की तुलना में बहुत अच्छे से संरक्षित हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल ग्रह की सतह की संरचना और वहां के भौगोलिक इतिहास के बारे में इन रेत के टीबों और धोरों से बहुत गहन जानकारी मिल सकती है। समय की कसौटी पर तनकर खड़े ये धोरे हमें मंगल ग्रह की तलछटी प्रक्रियाओं और भूगर्भिक इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दे सकते हैं। प्लैनेट्री साइंस इंस्टीट्यूट के प्लैनेट्री वैज्ञानिक मैथ्यू चोजनाकी का कहना है कि मंगल जैसे दुर्लभ ग्रह पर सतह के नीचे चल रहा रेत का यह कटाव और टेक्टोनिक्स के कारण स्थलीय रेत का टीलों, टीबों और धोरों के रूप में संरक्षण का यह स्तर अत्यंत दुर्लभ है। अन्य भूगर्भिक इकाइयों और आधुनिक क्षरण दर के आधार पर हमारा अनुमान है कि ये धोरे लगभग एक अरब वर्ष पुराने हैं।
बहुत तेजी से बदला होगा मंगल का पर्यावरण
खगोलविज्ञानियों की यह खोज कई मायनों में महत्वपूर्ण है। खगोलविज्ञानियों का कहना है कि आज मंगल पर, तेज हवाओं के बहाव के कारण रेत के टीलों और धोरों का बनना एक सामान्य विशेषता है। वहीं मंगल की वल्से मारिनारिस और मेलस चस्मा घाटी के सबसे चौड़े हिस्से में जगह-जगह बने ये टीले अपने आकार और फैलाव के कारण ऐसी दिखती हैं जैसे हाल ही में बनीं हों। इससे साबित होता है कि मंगल पर जलवायु और वातावरण बहुत कम समय में बहुत तेजी से बदल जाता है। खगोलविदों का कहना है कि मेलास चस्मा पलेओ-ड्यून्स के अभिविन्यास (Orientation), लंबाई, ऊंचाई, आकार और ढलान सभी हाल ही में इस लाल ग्रह के अन्य हिस्सों में बनीं रेत की लहरों से मिलते जुलते हैं।
यह बताता है कि ग्रह पर बहने वाली प्रमुख पवनों की दिशाएं जो इन टीबों के बनने की जिम्मेदार हैं, समय के साथ पूरी तरह से नहीं बदली हैं। यह संकेत है कि यहां वायुमंडलीय दबाव में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया है। खगोलविदों ने पाया कि यहां मिले कुछ टीले तो सैकड़ों मीटर नीचे दफ्न थे जो संभवत: किसी भयावह ज्वालामुखी के फटने के बाद बने होंगे। यह शोध जेजीआर प्लैनेट्स में प्रकाशित हुआ है।