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भविष्य में हो सकता है कि आपकी वनीला आइसक्रीम प्लास्टिक के कचरे से बने. वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक के कचरे को वनीला फ्लेवर में बदलने का तरीका खोज लिया है. प्लास्टिक कचरे को वनीला फ्लेवर में बदलने के लिए जेनेटिकली इंजीनियर्ड बैक्टीरिया की मदद ली गई है. यह जानकारी एक नई स्टडी में पता चली है. द गार्जियन अखबार के मुताबिक वैनीलिन (Vanillin) नाम का एक कंपाउंड होता है जो वनीला की तरह महकता है और स्वाद पैदा करता है. प्राकृतिक तौर पर यह वनीला बीन्स से निकाला जाता है. लेकिन 85 फीसदी वैनीलिन जीवाश्म ईंधन से प्राप्त रसायनों से निकाला जाता है. वैनीलिन का उपयोग खाने में, कॉस्मेटिक्स में, दवाओं में, सफाई के लिए और हर्बिसाइड प्रोडक्ट्स में होता है.
स्टडी के मुताबिक वैनीलिन की मांग पूरी दुनिया में बहुत ज्यादा है. यह लगातार बढ़ भी रही है. साल 2018 में वैनीलिन की मांग 37 हजार मीट्रिक टन था. जो 2025 तक बढ़कर 59 हजार मीट्रिक टन होने की उम्मीद है. यह स्टडी 10 जून को ग्रीन केमिस्ट्री नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है. फिलहाल जितने वनीला बीन्स की पैदावार है, उससे कई गुना ज्यादा वैनीलिन की मांग है. वैनीलिन की बढ़ती मांग को देखते हुए वैज्ञानिकों ने इसे सिंथेटिकली विकसित करने का तरीका निकाला है. वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक के कचरे को जेनेटिकली मॉडिफाइड बैक्टीरिया से मिलाकर वैनीलिन बनाया है. इससे वैनीलिन का उत्पादन भी ज्यादा होगा और प्लास्टिक का कचरा भी दुनिया से कम होगा।
वैज्ञानिक इससे पहले प्लास्टिक की बोतलों को तोड़ने में सफल हुए थे. ये बोतलें पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (polyethylene terephthalate) से बनी होती हैं. इसे टेरेफ्थेलिक एसिड (Terephthalic Acid) भी कहते हैं. स्कॉटलैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के दो शोधकर्ताओं नें जेनेटिकली इंजीनियर्ड एशरेकिया कोलाई बैक्टीरिया की मदद से टेरेफ्थेलिक एसिड को वैनीलिन में बदल दिया है.
टेरेफ्थेलिक एसिड और वैनीलिन का रसायनिक कंपोजिशन समान होता है. बैक्टीरिया की मदद से इनके हाइड्रोजन और ऑक्सीजन बॉन्ड्स में मामूली परिवर्तन किया गया है. वैज्ञानिकों ने जेनेटिकली इंजीनियर्ड बैक्टीरिया को टेरेफ्थेलिक एसिड के साथ 37 डिग्री सेल्सियस पर एक दिन के लिए रखा. उसके बाद टेरेफ्थेलिक एसिड का 79 फीसदी हिस्सा वैनीलिन में बदल गया. इस स्टडी के मुताबिक धरती पर प्लास्टिक कचरा एक बहुत बड़ी पर्यावरणीय समस्या है. करीब 10 लाख प्लास्टिक बोतलें प्रति मिनट के हिसाब से हर साल पूरी दुनिया में बेंची जाती हैं. इनमें से सिर्फ 14 प्रतिशत बोतलों को ही रिसाइकिल किया जाता है. रिसाइकिल की जाने वाली बोतलों का उपयोग फिलहाल कपड़े, कारपेट और फाइबर बनाने में किया जा रहा है.
यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सीनियर लेक्चरर और यह स्टडी करने वाले साइंटिस्ट स्टीफन वॉलेस ने कहा कि हमारी स्टडी का मकसद था प्लास्टिक कचरे की इमेज को बदलना. क्योंकि प्लास्टिक कचरे को बड़ी समस्या माना जाता है. हमनें इसका ऐसा उपयोग किया है जो इसे उच्च-गुणवत्ता वाला व्यवसायिक पदार्थ बना देगा। स्टीफन वॉलेस और उनकी टीम का मानना है कि इस स्टडी के बाद हमें बैक्टीरिया में ज्यादा सकारात्मक बदलाव करने हैं ताकि हम टेरेफ्थेलिक एसिड से निकलने वाले 79 फीसदी वैनीलिन की मात्रा को और ज्यादा बढ़ा सकें. स्टीफन ने कहा कि हमारे पास अत्याधुनिक रोबोटिक DNA एसेंबली फैसिलिटी है. जिससे हम बड़े पैमाने पर यह काम कर सकते हैं. फिर वैनीलिन का उपयोग कॉस्मेटिक्स के लिए वनीला खुशबू बनाने का काम भी किया जा सकता है. (फोटोःगेटी)
रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री की एलिस क्रॉफर्ड ने कहा कि यह अद्भुत तरीका है प्लास्टिक के कचरे को रिसाइकिल करके उपयोगी बनाने का. यह माइक्रोबियल साइंस का बेहतरीन प्रयोग है. माइक्रोब्स की मदद से प्लास्टिक को रिसाइकिल करना और वह भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना, ये कमाल की बात है. यह दिखाता है कि हम ग्रीन केमिस्ट्री की दुनिया की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं.