विज्ञान

कोरोना के बाद अब मिला नया खतरनाक HIV वैरिएंट, नुकसान को लेकर ये जानकारी मिली

jantaserishta.com
4 Feb 2022 6:26 AM GMT
कोरोना के बाद अब मिला नया खतरनाक HIV वैरिएंट, नुकसान को लेकर ये जानकारी मिली
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एमस्टर्डम: नीदरलैंड्स (Netherlands) में ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वायरस (HIV) का नया वैरिएंट मिला है. बताया जा रहा है कि यह वैरिएंट मरीज को ज्यादा तेजी से AIDS की तरफ ले जाता है. यह वैरिएंट पुराने HIV वैरिएंट्स की तुलना में ज्यादा संक्रामक और खतरनाक है. HIV शरीर के अंदर मौजूद इम्यून सेल्स (Immune Cells) CD4 को खत्म कर देता है. जिससे इनकी संख्या शरीर में घट जाती है. यही संक्रमण बाद में एड्स में बदल जाता है.

नए एचआईवी वैरिएंट का नाम है वीबी वैरिएंट (VB Variant). इससे संक्रमित लोगों में CD4 इम्यून सेल्स दोगुना तेजी से कम होती हैं. इस वैरिएंट के एचआईवी स्ट्रेन में पुराने वाले स्ट्रेन्स के जेनेटिक सबटाइप (बी) से मिलते हैं. अगर इलाज नहीं होता है तो VB Variant ज्यादा तेजी से एड्स में बदल जाता है. अगर किसी इंसान को इस वैरिएंट का संक्रमण है, तो वह बिना इलाज के दो से तीन साल में एड्स का मरीज बन जाएगा.
यह स्टडी हाल ही में Science जर्नल में प्रकाशित हुई है. VB वैरिएंट के संक्रमण की वजह से एड्स 2 से 3 साल में होता है, जबकि पुराने HIV वैरिएंट्स में यह प्रक्रिया 6 से 7 साल में होती थी. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पैथोजन डायनेमिक्स और स्टेटिस्टिकल जेनेटिक्स के वरिष्ठ शोधकर्ता और इस स्टडी के लेखक क्रिस वीमैंट ने बताया कि इस वैरिएंट से संक्रमित मरीज संक्रमण की पहचान से एडवांस एचआईवी तक सिर्फ 9 महीने में पहुंच जा रहा है.
क्रिस वीमैंट ने बताया इस वैरिएंट से ज्यादातार मरीज 30 की उम्र में संक्रमित हो रहे हैं. अगर सही समय पर बीमारी की पहचान नहीं होती है, तो उनके लिए दिक्कत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे सिर्फ युवाओं को परेशानी होगी. VB Variant का संक्रमण बुजुर्ग लोगों में भी ज्यादा तेजी से फैलता है. और वह ज्यादा खतरनाक हो सकता है. बुजुर्गों के लिए तो यह भयानक स्थिति पैदा कर सकता है.
क्रिस वीमैंट ने बताया कि अच्छी बात ये है कि हमारी स्टडी में यह पता चला है कि HIV के नए VB Variant पर इस बीमारी के इलाज की पुरानी प्रक्रिया कारगर हैं. एंटीरेट्रोवायरल ड्रग्स (Antiretroviral Drugs) इस पर असरदार हैं. जैसे पुराने वैरिएंट्स पर कारगर थीं. एक मरीज पर इलाज करके देखा गया है, उसके इम्यून सिस्टम को गिरने से बचाया गया है, साथ ही उसके एड्स होने की आशंका को भी खत्म कर दिया गया है. इसके अलावा VB Variant के संक्रमण को भी रोक दिया गया है.
एडिनबर्ग मेडिकल स्कूल में चांसलर फेलो और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में एसोसिएट प्रोफेसर केटी एटकिन्स ने कहा कि फिलहाल इस VB Variant के इलाज के तरीके को दुनिया के हर स्थान पर पहुंचाना जरूरी है. क्योंकि दुनियाभर के वैज्ञानिक चाहते हैं कि वैश्विक स्तर पर HIV और एड्स के मरीजों की संख्या कम हो. अगर ऐसे में कोई नया वैरिएंट आकर समस्या बढ़ाता है तो उसकी तैयारी पहले से ही करनी होगी. क्योंकि अगर यह वैरिएंट लगातार फैलता रहा, तो यह म्यूटेशन करके और खतरनाक बन सकता है.
क्रिस वीमैंट और संक्रामक रोग विशेषज्ञ क्रिस्टोफ फ्रेसर दोनों BEEHIVE प्रोजेक्ट का हिस्सा है. यह प्रोजेक्ट HIV की बायोलॉजी, इवोल्यूशन और संक्रामकता को समझने के लिए बनाया गया था. यह प्रोजेक्ट साल 2014 में शुरु हुआ था. ताकि वायरस में हो रहे बदलावों को समझा जा सके. उसके जेनेटिक्स को डिकोड किया जा सके. अलग-अलग वैरिएंट का किस तरह से असर होता है उसे समझा जा सके. इस प्रोजेक्ट के पास युगांडा से लेकर यूरोप समेत पूरी दुनिया के HIV डेटा, जेनेटिक्स आदि डिटेल्स हैं.
स्टडी के दौरान वीमैंट और फ्रेसर को 17 ऐसे लोग मिले जो अलग-अलग HIV वैरिएंट से संक्रमित हैं. इन सबके खून में इस वायरस के वैरिएंट्स की मात्रा बहुत ज्यादा है. ये बीमारी की पहचान के छह महीने बाद से लेकर 2 साल के अंदर तक चलते-फिरते वायरस में तब्दील हो चुके हैं. इनमें से 15 लोग नीदरलैंड्स और स्विट्जरलैंड-बेल्जियम से एक-एक मरीज है. नया वैरिएंट जेनेटिक सबटाइप-बी से संबंध रखता है. यह सबटाइप अमेरिका और यूरोप में बहुतायत में पाया जाता है.
नीदरलैंड्स में और उदाहरणों को खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने ATHENA नेशनल ऑब्जरवेशनल HIV कोहोर्ट के डेटा की स्क्रीनिंग की. एथेना HIV पॉजिटिव लोगों को समूह हैं. जिसमें 1981 से लेकर 2015 तक के मरीजों की पूरी जानकारी है. इनके वायरल जेनेटिक सिक्वेंस डेटा मौजूद हैं. जिनमें से 8000 लोगों के डेटा हैं. इनमें से 6700 लोगों को सबटाइब-बी वैरिएंट का संक्रमण हुआ था. इनमें से 92 लोगों को VB Variant का संक्रमण पाया गया. जो अब तक बढ़कर 109 हो चुके हैं.
मौजूद क्लीनिकल डेटा के आधार पर इन 109 लोगों की जांच की गई. तो पता चला कि इनके शरीर में 3.5 से 5.5 गुना ज्यादा वायरल लोड है. ये किसी भी इंसान को सबटाइप-बी स्ट्रेन यानी VB Variant से संक्रमित कर सकते हैं. क्योंकि जांच के समय ही VB Variant से संक्रमित मरीज की इम्यून CD4 सेल्स कम रहती हैं. धीरे-धीरे यह तेजी से कम होती चली जाती है. यही हालत इन सभी 109 लोगों के शरीर में देखने को मिली.
इतना ज्यादा वायरल लोड होने की वजह जानने के लिए वैज्ञानिकों ने VB Variant के जीनोम की तरफ जाने का सोचा. इस वैरिएंट ने कई तरह के म्यूटेशन (Mutation) किए हैं. यह म्यूटेशन इस वैरिएंट के कई हिस्सों में फैले हुए हैं. यानी वैज्ञानिक किसी एक जेनेटिक कोड को जिम्मेदार नहीं बता सकते. जब म्यूटेशन जेनेटिक स्तर पर कई स्थानों पर हुआ हो. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर जोएल वर्टहीम ने कहा कि जेनेटिक्स की स्टडी से पता चलता है कि कोई वैरिएंट कितना खतरनाक हो सकता है.
इसके बाद वीमैंट और फ्रेसर की टीम ने डायग्राम बनाया. जिसे फाइलोजेनेटिक ट्री (Phylogenetic Tree) कहते हैं. इस ट्री में सभी जेनेटिक डेटा मौजूद रहते हैं. जैसे इंसानों का वंशवृक्ष होता है. जब उन्होंने फाइलोजेनेटिक ट्री को देखा तो पता चला कि VB Variant की उत्पत्ति नीदरलैंड्स में ही साल 1980 के अंत से लेकर 1990 की शुरुआत में किसी समय हुई थी. उस समय ही अमेरिका के FDA ने HIV के पहले एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट के लिए अनुमति दी थी.

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