विज्ञान

शरीर के भीतर प्रकृति ने फिट कर रखी है एक घड़ी, जानिए क्या खोजा था फ्रेंच वैज्ञानिक ने?

Gulabi
29 Nov 2021 2:44 PM GMT
शरीर के भीतर प्रकृति ने फिट कर रखी है एक घड़ी, जानिए क्या खोजा था फ्रेंच वैज्ञानिक ने?
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पृथ्‍वी सूय के चारों ओर ओर चक्‍कर लगाती है और उसकी वजह से धरती पर दिन-रात होते हैं
अभी सुबह हो गई, अभी शाम है, अभी रात और अभी दोपहर. एक हफ्ता गुजर गया, एक महीना और एक साल. दिन के चौबीस घंटे और 30 दिनों का महीना. साल में पूरे 365 दिन.
पृथ्‍वी सूय के चारों ओर ओर चक्‍कर लगाती है और उसकी वजह से धरती पर दिन-रात होते हैं, मौसम बदलता है, गर्मी, सर्दी, बारिश होती है, ये सब तो प्रकृति का नियम है. धरती किस गति से घूमेगी, ये भी प्रकृति का नियम है. अपनी धुरी पर एक पूरा चक्‍कर लगाने में धरती को कितना वक्‍त लगेगा, चंद्रमा कितने समय में धरती का एक चक्‍कर पूरा करेगा, ये सबकुछ प्रकृति ने पहले से तय कर रखा था.
लेकिन उस समय को मापने और उसकी गणना करने की घड़ी मनुष्‍य ने बनाई. 30 दिन का महीना, 365 दिनों का साल और 24 घंटे का दिन. एक घंटे के 60 मिनट और 60 मिनट में 60 से‍केंड. गणना के ये सारे टूल मनुष्‍य की खोज हैं.
लेकिन मनुष्‍य ने इस घड़ी की खोज नहीं की था, उसका निर्माण किया था. उसने उसके आंकलन का एक पैरामीटर तय किया, जिससे काल की गणना आसान हो गई.
लेकिन कभी सोचा है कि जैसे एक घड़ी इंसान ने बनाई, वैसी ही एक घड़ी प्रकृति ने मनुष्‍य के शरीर में भी फिट कर रखी है.
उस घड़ी का नाम है सर्काडियन रिद्म. उसे दूसरे शब्‍दों में नैचुरल बॉडी साइकल भी कहते हैं, जिसका सर्कल भी 24 घंटों का होता है. उस 24 घंटे के भीतर मनुष्‍य के शरीर में मानसिक, शारीरिक और व्‍यवहारात्‍मक बदलाव होते हैं.
हम सूरज उठने पर जागते हैं और सूरज डूबने पर सोते हैं, इसकी वजह सिर्फ इतनी नहीं है कि स्‍कूल, दफ्तर और जीवन के सारे काम दिन में होते हैं. इसकी वजह है हमारे शरीर का सर्काडियन रिद्म, जो उसी 24 घंटे के साइकल में काम करता है.
चौथी शताब्‍दी ईसापूर्व से सर्काडियम रिद्म का जिक्र किताबों में मिलने लगता है. चौथी शताब्‍दी में सिकंदर की सेना में एक जहाज के कप्‍तान ने पहली बार इमली के पेड़ में इस सर्काडियन रिद्म को ऑब्‍जर्व किया. सर्काडियन रिद्म या नैचुरल बॉडी साइकिल एक जीवों और वनस्‍पतियों में भी होता है. 13वीं शताब्‍दी की चीन में लिखी गई मेडिसिन की किताबों में सर्काडियन रिद्म का जिक्र मिलता है.
1729 में एक फ्रेंच वैज्ञानिक ज्‍यां जाक ने वनस्‍पतियों में इस सर्काडियन रिद्म को खोजने की कोशिश की और उसने पाया कि उन पौधों के रौशनी और अंधेरे में होने से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. उन पौधों का सर्काडियन रिद्म 24 घंटे के साइकल में ही काम कर रहा था, जबकि उनको लगातार लंबे समय तक अंधेरे में रखा गया.
धरती के जिन हिस्‍सों में छह महीने दिन और छह महीने रात होती है या जहां दिन दो से चार घंटे के और रातें 20-22 घंटे की होती हैं या जहां रात दो सो चार घंटे और दिन 20-22 घंटे का होता है, जैसेकि अलास्‍का, वहां भी मनुष्‍य के शरीर का सर्काडियन रिद्म 24 घंटे की साइकल में ही चलता है.
हम भले घड़ी और कैलेंडर देखकर काम करते हों, लेकिन यकीन मानिए, अगर ये घड़ी और कैलेंडर न भी हों तो भी सर्काडियन रिद्म चलता रहेगा और आदमी 17 घंटे के बाद स्‍लीप मोड में चला जाएगा, चाहे बाहर तेज सूरज ही क्‍यों न निकला हो.
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