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![नासा जल्द लॉन्च करेगा Water Fueled Satellite, सैटेलाइट्स में ईंधन का काम पानी करेंगे नासा जल्द लॉन्च करेगा Water Fueled Satellite, सैटेलाइट्स में ईंधन का काम पानी करेंगे](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/01/27/923957--water-fueled-satellite-.webp)
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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) अब बहुत जल्द पानी से उड़ने वाला सैटेलाइट (Water Fueled Satellite) छोड़ने की तैयारी में है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) अब बहुत जल्द पानी से उड़ने वाला सैटेलाइट (Water Fueled Satellite) छोड़ने की तैयारी में है. इन सैटेलाइट्स में ईंधन का काम पानी (Water Fueled CubeSat) करेंगे. ये सैटेलाइट्स धरती की लो-अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit) यानी धरती से करीब 160 किलोमीटर की ऊंचाई से छोड़ा जाएगा.
अगर यह मिशन सफल होता है तो सैटेलाइट्स में ईंधन में लगने वाले पैसों की बचत की जा सकती है. नासा के मुताबिक, भविष्य यही है. जानिए, नासा (NASA) ने इसके लिए क्या तैयारी की है.
पानी से उड़ेंगे सैटेलाइट्स
नासा (NASA) इस महीने के अंत तक पाथफाइंडर टेक्नोलॉजी डिमॉन्सट्रेटर (Pathfinder Technology Demonstrator-PTD) के तहत पानी से उड़ने वाले क्यूबसैट (Water Fueled CubeSat) सैटेलाइट्स लॉन्च करेगा. इन सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग स्पेस एक्स (Space X) के फॉल्कन-9 रॉकेट से फ्लोरिडा स्थित केप केनवेरल स्पेस स्टेशन से की जाएगी. इस क्यूबसैट (CubeSat) को नासा ने V-R3x नाम दिया है
किफायती है प्रोपल्शन सिस्टम
V-R3x ऑटोनॉमस रेडियो नेटवर्किंग और नैविगेशन में मदद करेंगे. PTD के प्रोजेक्ट मैनेजर डेविड मेयर के मुताबिक, हमें ऐसे छोटे सैटेलाइट्स के लिए बेहद नया और किफायती प्रोपल्शन सिस्टम (Propulsion System) चाहिए था. इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इससे अंतरिक्ष में प्रदूषण भी नहीं होगा. अगर यह मिशन सफल हुआ तो भविष्य में यह टेक्नोलॉजी बड़े सैटेलाइट्स में भी उपयोग की जा सकती है.
डेविड के अनुसार, जब भी सैटेलाइट्स में ईंधन डालने की बात की जाती है तो पहले उसके खतरों की जांच की जाती है, जैसे- उसकी विषाक्तता, ज्वलनशीलता आदि. लेकिन पानी से उड़ने वाले सैटेलाइट्स से ऐसे खतरे नहीं रहेंगे. अगर सैटेलाइट्स आपस में टकराते हैं तो विस्फोट भी नहीं होगा.
बेहद सुरक्षित ऊर्जा प्रणाली
क्यूबसैट (CubeSat) के प्रोपल्शन सिस्टम (Propulsion System) में ऐसी टेक्नॉलजी का उपयोग किया गया है, जिससे उसके अंदर मौजूद पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के कण टूटकर उसे आगे बढ़ने के लिए ऊर्जा देंगे. वहीं, क्यूबसैट (CubeSat) के सोलर पैनल्स (Solar Panels) सूरज की किरणों की एनर्जी से प्रोपल्शन सिस्टम को ऊर्जा देंगे ताकि पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के कण अलग हो जाएं.
डेविड के अनुसार, जब हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैस फॉर्म में आती हैं, तब उनकी ऊर्जा बहुत ज्यादा हो जाती है. इसकी वजह से हमें सैटेलाइट्स की सुरक्षा, दिशा निर्धारण और मैन्यूवरिंग (Maneuvering) करना आसान होगा. यह बेहद सुरक्षित ऊर्जा प्रणाली है.
सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग भी किफायती
पानी में कोई विषाक्तता नहीं होती है. यह ज्वलनशील भी नहीं होता और यह बाकी ईंधनों की तुलना में ज्यादा स्थिर होता है. इसलिए ऐसे ईंधन की मदद से सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग भी किफायती हो जाएगी. पानी के मुफ्त मिलने की वजह से इसके उपयोग में किसी तरह के नुकसान की कोई समस्या नहीं रह जाएगी. इससे भविष्य में कई सैटेलाइट्स उड़ सकेंगे और इससे ईंधन में लगने वाला एक बड़ा खर्च भी बचेगा.
पहली बार 6 क्यूबसैट सैटेलाइट्स लॉन्च
फॉल्कन-9 रॉकेट में पहली बार 6 क्यूबसैट (CubeSat) सैटेलाइट्स लॉन्च किए जाएंगे. ये चार से छह महीने तक अंतरिक्ष (Space) में काम करेंगे. इस दौरान नासा (NASA) लगातार इनकी परफॉर्मेंस की जांच करता रहेगा. साथ ही इनके साथ आने वाली समस्याओं को सुधारने की तैयारी करेगा ताकि इन्हें बेहतर बनाया जा सके.
कुछ सालों के बाद जब डीप स्पेस मिशन (Deep Space Mission) यानी चांद या मंगल पर यान या इंसानों को भेजने की बात आएगी, तब इसी ईंधन का उपयोग किया जाएगा ताकि स्पेस जर्नी किफायती हो सके.
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