विज्ञान

NASA ने बताया पृथ्वी पर कैसे कयामत ला सकते हैं ज्वालामुखी प्रस्फोट

Tulsi Rao
4 May 2022 11:37 AM GMT
NASA ने बताया पृथ्वी पर कैसे कयामत ला सकते हैं ज्वालामुखी प्रस्फोट
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पिछले साल दिसंबर में प्रशांत महासागर के द्वीपसमूह के हुंगा टोंग- हुंगा हा अपाई में ज्वालामुखी विस्फोट (Hunga Tonga-Hunga Ha'apai volcano) हुआ था. यह विस्फोट इतना बड़ा था कि इसके झटके पूरी दुनिया में महसूस किए गए थे. इस ज्वालामुखी से प्रशांत महासागर में सुनामी आई और स्थानीय इलाकों की हवा में राख भर गई. ज्वालामुखी विस्फोट पूरे दुनिया के लिए विनाशकारी साबित हो सकते हैं यहां तक कि महाविनाश के हालात बना सकते हैं. नासा (NASA) के नए जलवायु सिम्यूलेशन ने खुलासा किया है कि चरम ज्वालामुखी प्रस्फोट कैसे पृथ्वी पर कयामत (Doom to Earth) लाने वाले साबित हो सकते हैं.

ओजोन परत
चरम ज्वालामुखी प्रस्फोट पृथ्वी की ओजोन परत का नाश कर सकते हैं. ओजोन परत पृथ्वी के लिए एक ढाल की तरह काम करती है जिससे सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणें धरती तक नहीं पहुंच पाती हैं और पृथ्वी की जलवायु को गर्म रखने में भी सहायक होती हैं. यही वजह है कि पृथ्वी पर आज जीवन इतना समृद्ध हो सका है जबकि पृथ्वी जैसे दूसरे ग्रहों में ऐसा नहीं हो पाया.
चरम ज्वालामुखी प्रस्फोट
चरम ज्वालामुखी विस्फोटों को फ्लड बेसाल्ट प्रस्फुटन भी कहा जाता है और माना जाता है कि इन्हीं की वजह से शुक्र और मंगल आज की स्थितियों में पहुंचे हैं. रोचक बात यह है कि इन नए जलवायु सिम्यूलेशन और इसके नतीजे पिछले अध्ययनों के उलट हैं जो यह बताते थे कि प्रस्फुटन जलवायु को ठंडा करने में सहायक होते हैं.
क्या होते हैं ये फ्लड बेसाल्ट प्रस्फुटन
फ्लड बेसाल्ट प्रस्फुटन चरम ज्वालामुखी प्रस्फोट ही होते हैं जिनमें एक के बाद एक विस्फोटों की शृंखला चलती है जो लाखों सालों में होते हैं और कभी कभी सदियों तक चलते हैं. नासा का कहना है कि इन्हीं घटनाओं के आसपास ही महाविनाश भी देखने को मिले है और ये प्रस्फोट पृथ्वी के इतिहास के सबसे गर्म दौर से भी संबंध रखते हैं.
किसका किया सिम्यूलेशन
फ्लड बेसाल्ट प्रस्फुटन पृथ्वी से बाहर सौरमंडल के मंगल और शुक्र जैसे ग्रहों में सामान्यतया पाए जाते हैं. नासा के गोडार्ड अर्थ ऑबजर्विंग सिस्टम कैमेस्ट्री- क्लामेट मॉडल के शोधकर्ताओं ने अमेरिका के उत्तररश्चिम प्रशांत में 1.5 से 1.7 करोड़ साल पहले आए कोलंबिया रिवर बेसाल्टप प्रस्फोटों का चार साल लंबे सिम्युलेशन बनाया. उन्होंने उम्मीद की थी कि उनके सिम्यूलेसन के नतीजों में उन्हें बहुत ज्यादा ठंडक देखने को मिलेगी, लेकिन छोटे ठंडे दौर पर गर्मी का प्रभाव ज्यादा हावी दिखाई दिया.
पहले ओजोन परत पर असर
इस अध्ययन की पड़ताल जियोफिजिलक रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुई है. इसके सिम्यूलेशन ने दर्शाया कि कैसे प्रस्फोट पहले ओजोन परत को नष्ट कर देंगे जो हमारे ग्रह की सतह को हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है. पिछले कुछ दशकों से इस परत पर बना छेद वैज्ञानिकों की चिंता का कारण बना हुआ है.
कैसे होगा असर
इस सिम्यूलेशन ने दिखाया कि कैसे ज्वालामुखी विस्फोट ओजोन परत को खत्म कर देंगे. पूरी दुनिया में इस परत की ओजोन का दो तिहाई नष्ट हो जाएगा, जिससे यह परत बहुत ज्यादा पतली हो जाएगी. विस्फोटों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड वायुमंडल में ऐरोसॉल बन जाएगी. ये ऐरोसॉल सूरज की रोशनी को प्रतिबिंबित कर शुरू में ठंडक का असर देंगे, लेकिन इसके साथ ही इंफ्रारेड विकिरण भी अवशोषत कर वायुमंडल को गर्म कर देंगे.
नासा का कहना है कि इलाकों में गर्मी के कारण भाप करीब दस हजार प्रतिशत बढ़ जाएगी. इससे ओजोन परत नष्ट होगी. फ्लड बेसाल्ट से कार्बन डाइऑक्साइड का भी उत्सर्जन होगी, लेकिन इसकी मात्रा इतनी ज्यादा नहीं होगी की उससे चरम गर्मी के हालात बन जाएं. शोधकर्ताओं का कहना है कि शुक्र और मंगल के आज के सूखे हालातों के लिए भी फ्लड बेसाल्ट प्रस्फोट ही जिम्मेदार हैं.


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