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NASA साइंटिस्ट ने चेताया, कहा- आग उगलते शुक्र ग्रह पर जीवन खोजेगा भारत, और कितनी कठिन होगी ISRO की राह

Neha Dani
1 Dec 2020 11:01 AM GMT
NASA साइंटिस्ट ने चेताया, कहा- आग उगलते शुक्र ग्रह पर जीवन खोजेगा भारत, और कितनी कठिन होगी ISRO की राह
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डियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने शुक्र ग्रह (Venus) पर शुक्रयान मिशन भेजने का फैसला किया है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| डियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने शुक्र ग्रह (Venus) पर शुक्रयान मिशन भेजने का फैसला किया है। सितंबर में वीनस के वायुमंडल में फॉस्फीन पाई गई थी जिसे जीवन की मौजूदगी का संकेत यानी Biosignature माना जाता है। वीनस की सतह पर तापमान 450 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा होता है और दबाव धरती की तुलना में 90 गुना ज्यादा। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या वीनस पर जीवन है? अगर हां तो किस रूप में और क्या इसे स्टडी करना मुमकिन है? ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब खोजने के लिए नवभारत टाइम्स ऑनलाइन ने बात की भारतीय मूल के इंटरनैशनल साइंटिस्ट डॉ. राम करन से। सऊदी अरब की किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस ऐंड टेक्नॉलजी के युवा एंजायमॉलजी रिसर्च साइंटिस्ट डॉ. करन अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA के साथ इससे जुड़ी स्टडीज का हिस्सा रह चुके हैं। उनका कहना है कि इस खोज से आगे के लिए बहुत सी संभावनाएं खुली हैं। यहां जानें, वीनस पर जीवन की संभावना से जुड़े अहम सवाल और उनके जवाब-

क्या शुक्र ग्रह पर मुमकिन है जीवन?
डॉ. राम करन का कहना है कि हम दूसरे ग्रहों पर जीवन खोज रहे हैं। ऐसे में फॉस्फीन जैसे बायोसिग्नेचर मिलना नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सैकड़ों-हजारों लाइट इयर दूर स्थित एग्जोप्लैनेट्स से उलट वीनस के बारे में स्टडी किया जाना मुमकिन है। डॉ. राम करन खुद ऐसे सूक्ष्मजीवियों पर काम कर रहे हैं जो इन हालात में रह सकते हैं। इसके लिए उन्हें जापान में यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड मिल चुका है। कठिन परिस्थितियों में भी पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवियों पर NASA के साथ काम कर चुके डॉ. करन कहते हैं कि Extremophiles पर की गई रिसर्च के दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज और उत्पत्ति की स्टडी में काफी अहमियत है। हाल ही में एक स्टडी में डॉ. करन और उनकी टीम ने अंटार्कटिका डीप लेक में बेहद ठंडे तापमान में पाए जाने वाले extremophiles की खोज की थी। ऐसी ही परिस्थितियां मंगल पर पाई जाती हैं जिससे यह संभावना पैदा हुई है कि वहां भी ऐसे जीव मौजूद हो सकते हैं।

क्या ऐसे हालात में शुक्र पर जीवन की संभावना है?
डॉ. करन का कहना है कि वीनस धरती से दिखने वाले सबसे खूबसूरत ग्रहों में से एक है लेकिन इसे NASA समेत लगभग सभी स्पेस एजेंसियों ने नजरअंदाज किया है। डॉ. करन का कहना है कि यह बेहतरीन खोज है जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। इससे वीनस पर जीवन की संभावना पर और ज्यादा रिसर्च को बल मिलेगा। उन्होंने बताया है कि फॉस्फीन की मौजूदगी ऐसी वायुमंडल और भूगर्भीय प्रक्रियाओं से हुई होगी जिनके कारण अभी हमें नहीं पता हैं। हालांकि, इससे हम यह सवाल कर सकते हैं कि क्या मानवता ने ऐसे ग्रह को नजरअंदाज किया है जिसकी समानता धरती से सबसे ज्यादा थी।

450 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा तापमान और धरती की तुलना में 90 गुना दबाव के कारण वीनस पर इस तरह का जीवन मुमकिन नहीं है जैसा धरती पर पानी पर आधारित है लेकिन डॉ. करन का कहना है कि वह लंबे वक्त से इस बात की वकालत करते आए हैं कि घने बादलों में thermoacidophilic extremophiles (बेहद गर्म और एसिड वाली स्थितियों में रहने वाले सूक्ष्मजीवी) के रूप में जीवन हो सकता है जहां वीनस पर फॉस्फीन पाई गई है। वीनस पर extremophiles के ऐसे प्रकार हो सकते हैं जो बादलों की निचली परतों पर रहते हों। ऐसे जीव भी हो सकते हैं जो सतह के 10 मीटर नीचे 100-200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रहते हों। धरती पर ऐसे Hyperthermophiles पाए जाते हैं।

क्या ऐसी परिस्थितियां धरती पर पाई जाती हैं और क्या वहां जीवन मौजूद है?
डॉ. राम करन बताते हैं कि वीनस का आकार करीब-करीब धरती जैसा ही है और इसे धरती का 'सिस्टर-प्लैनेट' कहते हैं। माना जाता है कि यहां अरबों साल पहले महासागर हुआ करते थे लेकिन आज इसे जीवन के लिए प्रतिकूल माना जाता है। बादलों से भरा ग्रह सोलर सिस्टम में सबसे गर्म है। कार्बन डायऑक्साइड से भरे वायुमंडल का तापमान इतना ज्यादा है कि यहां सीसा (lead) पिघल सकता है।

Extremophiles ऐसे जीव होते हैं जिन्हें धरती पर खोजा जा चुका है। ये ऐसे पर्यावरण में पाए जाते हैं जहां जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती जैसे बेहद तेज गर्मी, एसिड, दबाव और ठंड। मंगल, जूपिटर का चांद यूरोपा और वीनस ऐसे ही माने जाते हैं। ऐसे में धरती पर acidophiles पर काम कर रहे वैज्ञानिकों के लिए दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज रोचक हो जाती है। सबसे ज्यादा एसिड में रहने वाले acidophiles Picrophilus जीनस के सूक्ष्मजीवी होते हैं। ये 0.7 pH तक पर पनपते हैं और 0 pH तक पर रह सकते हैं।

धरती पर पाई जाने वाली काई और Cyanidium caldarium 100% कार्बन डायऑक्साइड के पर्यावरण में भी रह सकते हैं। वहीं, 9.5MPA जैसे दबाव में समुद्र के 950 मीटर नीचे elephant seals और Sperm whales रहती हैं जबकि धरती के सबसे गहरे पॉइंट मारियाना ट्रेंच में 10,898 मीटर नीचे 108 MPa पर obligate barophiles और shewanella जैसे सूक्ष्मजीवी रह सकते हैं।
धरती पर जीवन की उत्पत्ति के करीब 3.8 अरब साल बाद उद्भव (evolution) की वजह से कई जटिल जीव विकसित हुए। हालांकि, साथ में कम विकसित जीव जैसे काई, बैक्टीरिया, ईस्ट और फंगस भी पाए जाते हैं जो अरबों साल पहले पाए जाते थे। ये न सिर्फ पाए जाते हैं बल्कि खूब पनपते भी हैं। आज भी एक कोशिका वाले जीवों (single celled organisms) का जटिल जीवों के साथ पाया जाना इस बात का सबूत है कि ऐसा जरूरी नहीं है कि ये जीव ज्यादा जटिल जीवों में विकसित हों। जब जटिल अंगों की जरूरत होती है तो वे बनने लगते हैं। एक कोशिका वाले जीवों में ज्यादातर काम ज्यादा कोशिकाओं वाले जीवों जितना या बेहतर होता है। इसलिए वह अपनी मौजूदा स्थिति में स्थिर हैं।

तापमान के अलावा वीनस पर और क्या फैक्टर्स जीवन के लिए अहम हो सकते हैं?
वीनस की जमीन पर तापमान 465 डिग्री सेल्सियस, अटमॉस्फीरिक तापमान 9.5MPa। यहां कुछ पानी और भाप है जबकि 96.5% कार्बनडायऑक्साइड, 3.5% नाइट्रोजन और ज्वालामुखियों की वजह से सल्फर साइकल पाए जाते हैं।
नेचर ऐस्ट्रोनॉमी में छपी रिसर्च में दावा किया गया है कि वीनस पर फॉस्फीन (PH3) की भारी मात्रा मिली है। फॉस्फोरस और हाइड्रोजन से बने इस कंपाउंड को जीवन से जोड़ा जाता है। धरती पर फॉस्फीन या तो ऐसे जीव बनाते हैं जिन्हें ऑक्सिजन की जरूरत नहीं होती या लैब में बनाई जाती है। इसलिए जीवन के संभावित निशानों से ऐस्ट्रोनॉमर्स और स्पेस साइंटिस्ट्स के बीच वीनस के बारे में और ज्यादा जानने की जिज्ञासा बढ़ गई।

सवाल यह है कि क्या अब इसरो के शुक्रयान और दूसरी स्पेस एजेंसियों के मिशन धरती के बाहर जीवन है या नहीं, इस सवाल का जवाब खोज सकते हैं? सोलर सिस्टम के सबसे अंदर के ग्रह को स्टडी करना चुनौतीपूर्ण काम है। NASA का आखिरी शुक्र मिशन Magellan 10 अगस्त, 1990 को वीनस की कक्षा में दाखिल हुआ था। यह पहला ऐसा स्पेसक्राफ्ट था जिसने अपने रेडार-मैपिंग ऑर्बिटर की मदद से पूरे ग्रह की इमेजिंग की थी और वीनस के वायुमंडल में सिर्फ 10 घंटे बिताने के बाद यह जलकर राख हो गया था।

शुक्रयान वीनस की ओर भारत का पहला मिशन होगा और चार साल तक ग्रह को स्टडी किया जाएगा। मिशन का प्राइमरी साइंस ऑब्जेक्टिव वीनस की सतह और उसके नीचे के हिस्से को मैप करना है। इसके साथ ही वायुमंडल की केमिस्ट्री और सोलर विंड के साथ उसके इंटरैक्शन को भी स्टडी किया जाएगा। पिछले 30 साल में सिर्फ 3 स्पेसक्राफ्ट ने वीनस का चक्कर लगाया है लेकिन दुनियाभर की स्पेस एजेंसियां नए सिरे से इसमें दिलचस्पी दिखा रही हैं। NASA ने इस साल दो वीनस मिशन भेजने के बारे में विचार किया है- 2025 और 2028 में। यूरोपियन स्पेस एजेंसी EnVision को 2030 के दशक में भेजने का प्लान बना रही है और रूस वीनस ऑर्बिटर-लैंडर VeneraD पर काम कर रहा है जिसे 2023 के बाद भेजा जाएगा।

बुझती जा रही वीनस पर जीवन की उम्मीद?
सितंबर में जब वीनस के वायुमंडल में फॉस्फीन मिलने की खबर आई तो उत्साह का ठिकाना नहीं रहा। हालांकि, दूसरे ऐस्ट्रोनॉमर्स ने इस रिसर्च पर सवाल भी उठाए। अपने डेटा का विश्लेषण करने के बाद कार्डिफ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी माना है कि फॉस्फीन की जितनी मात्रा पहली बार में पाई गई थी, अब उससे सात गुना कम हो चुकी है। ये नतीजे 17 नवंबर को प्रीप्रिंट में बताए गए। रिसर्च की लीड जेन ग्रीव्स ने बताया कि फॉस्फीन मौजूद है। वहीं, डॉ. राम करन का कहना है कि वीनस से जीवन के संकेत कम होते जा रहे हैं। उनका कहना है कि असाधारण दावों को असाधारण सबूत भी चाहिए होते हैं। हालांकि, अगर वीनस पर extremophiles के रूप में जीवन मिलता है तो हैरानी नहीं होगी।


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