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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सोशल मीडिया पर लगातार ये बात चल रही है कि संस्कृत भाषा कंप्यूटर के लिए सबसे बेहतर है. इस खबर के साथ नेशनल एरोनॉटिक्स और स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) का भी हवाला दिया जा रहा है. हालांकि सोशल मीडिया पर हुए इस दावे में ये जिक्र नहीं है कि किस तरह से संस्कृत कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में काम आने वाली भाषा बन सकती है. जानिए, क्या वास्तव में संस्कृत कंप्यूटर के लिए सबसे बढ़िया भाषा है.
कहां से हुई दावे की शुरुआत
इस खबर को समझने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा. साल 1985 में नासा के एक रिसर्चर रिक ब्रिग्स ने एक पेपर लिखा था, जो विज्ञान पत्रिका AI में छपा था. इसमें नॉलेज रिप्रेजेंटेशन इन संस्कृत एंड आर्टिर्फिशियल लैंग्वेज नाम से शीर्षक के साथ रिक ने कई बातें लिखी थीं, जो कंप्यूटर से बात करने के लिए प्राकृतिक भाषाओं के उपयोग से जुड़ी हुई थीं. इसमें सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक होने और लिपि के तौर पर काफी समृद्ध होने के कारण संस्कृत भाषा का भी जिक्र था.
रिक ने पेपर में लिखा था कि लोग मानते हैं कि प्राकृतिक भाषाएं ट्रांसमिशन के लिए सही नहीं हैं और आर्टिफिशियल लैंग्वेज कंप्यूटर कमांड के लिए ज्यादा सही है. हालांकि ऐसा नहीं है. संस्कृत ऐसी भाषा है, जो 1000 सालों से जीवित है और जिसका साहित्य भी अच्छा-खासा है. शोधकर्ता ने आगे बताया था कि कैसे प्राकृतिक भाषा को आर्टिफिशियल लैंग्वेज की जगह लाया जा सकता है.
भ्रामक ढंग से हुआ प्रचार
लेकिन गौर करें कि ये पेपर साल 1985 में लिखा गया था. तब इंसानी भाषा में इनपुट लेकर उसका नतीजा देने वाले सर्च इंजनों की भी खोज नहीं हुई थी. न ही तब एआई से युक्त रोबोट बन सके थे. ऐसे में शोधकर्ता ने केवल अनुमानों के आधार पर लेख लिखा था. साथ ही उसने संस्कृत का जिक्र करते हुए कहा था कि 'कम से कम' संस्कृत ऐसी भाषा है, उसने ये नहीं कहा था फिलहाल 'यही एक' भाषा है, जो आर्टिफिशियल लैंग्वेज की जगह ले सकती है. लेकिन रिक के पेपर को सोशल मीडिया पर भ्रामक तरीके से फैलाया गया.
क्या है प्राकृतिक और आर्टिफिशियल लैंग्वेज में फर्क
इंसान और कंप्यूटर दोनों अलग-अलग भाषाएं समझते हैं. प्राकृतिक भाषाएं वे हैं, जो हम आपस में बोलते-समझते हैं, जैसे अंग्रेजी, हिंदी, या फिर संस्कृत. वहीं आर्टिफिशियल लैंग्वेज, जिसे मशीन लैंग्वेज भी कहते हैं- ये कंप्यूटर या मशीनों से संवाद करने के लिये प्रयोग में आती है. मशीनी भाषा बायनरी कोड में लिखी जाती है जिसके केवल दो अंक होते हैं 0 और 1. कंप्यूटर का सर्किट बायनरी कोड को पहचान लेता है और कमांड समझ पाता है.
नासा की मुहर नहीं लगी
नासा ने इस तरह का कोई क्लेम आधिकारिक या गैर-आधिकारिक तौर पर भी नहीं किया. इस बारे में यूरेशियन टाइम्स में एक रिपोर्ट में बताया गया है. अगर नासा इस बारे में 90 के शुरुआती दशक में जान चुका था, तो अब तक संस्कृत में कोई एआई तैयार हो चुकी होती. यानी कुल मिलाकर ये माना जा सकता है कि सोशल मीडिया पर नासा के हवाले से चल रहे ये दावे सरासर गलत हैं.
केंद्रीय मंत्री ने क्या कहा था
केंद्र के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी कई बार संस्कृत को सबसे अच्छी भाषा बता चुके हैं. इसी साल मार्च में उन्होंने एक ट्वीट भी किया था, जो वायरल हो गया था. ट्वीट में उन्होंने कहा था कि अंग्रेजी को हटाते हुए अगले 50 सालों में संस्कृत वैश्विक भाषा बन जाएगी.
भारत में संस्कृत कहां है
ग्लोबल भाषा बनने के बारे में तो पता नहीं, लेकिन फिलहाल भारत में ही इस भाषा के हाल खास अच्छे नहीं. ये लुप्त होती भाषा के तहत आ चुकी है, जिसके नेटिव स्पीकर सिर्फ 14135 लोग हैं. हालांकि संस्कृत अब भी भारतीय आधिकारिक भाषाओं में से एक है. कई सदियों पुरानी इस भाषा का पहला उदाहरण उत्तरप्रदेश के अयोध्या से माना जाता है. वैसे गुजरात में भी प्राचीन संस्कृत के कई प्रमाण मिल चुके हैं.
क्यों मानी जाती है वैज्ञानिक भाषा
संस्कृत काफी समय से वैज्ञानिक भाषा मानी जाने लगी है. इसकी वजह ये है कि इसका व्याकरण ध्वनि पर आधारित है. इसमें (शब्द की) आकृति से ज्यादा ध्वनि जरूरी है और हरेक आकृति के लिए एक ही ध्वनि है. यही इसे ज्यादा वैज्ञानिक और आसान भी बना देता है. क्लेफ्ट पैलेट या कटी हुई जीभ वाले लोगों की जबान साफ करने के लिए संस्कृत बोलना भी काफी काम आता है.