विज्ञान

आकाशगंगा का तुलनात्मक रूप: 1.15 लाख किलोमीटर की गति से टूट रही आकाशगंगा...वैज्ञानिकों ने किया दावा

Admin2
25 Nov 2020 5:02 PM GMT
आकाशगंगा का तुलनात्मक रूप:  1.15 लाख किलोमीटर की गति से टूट रही आकाशगंगा...वैज्ञानिकों ने किया दावा
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हमारी आकाशगंगा यानी मिल्की वे (Milky Way) हर घंटे 1.15 लाख किलोमीटर की गति से टूट रही है. यानी हर सेकेंड 32 किलोमीटर. हमारी आकाशगंगा (Galaxy) को तोड़ रहे हैं इसके दो छोर पर मौजूद दो अन्य गैलेक्सी. मिल्की वे आकाशगंगा के दो तरफ मौजूद लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से हमारी आकाशगंगा मुड़ भी रही है और टूट भी रही है. एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने ये खुलासा किया है.

इस स्टडी के बाद वैज्ञानिकों की वो मान्यता टूट गई कि मिल्की वे आकाशगंगा तुलनात्मक रूप से स्थिर है. वह मुड़ भी रही है और टूट भी रही है. यानी अब वैज्ञानिकों को आकाशगंगा को लेकर नए मॉडल्स बनाने पड़ेंगे. ताकि मिल्की वे की उत्पत्ति की सही वजह जान सकें. क्योंकि इसका मुड़ना, टूटना और दो लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) की तरफ जाना इसकी उत्पत्ति पर नई दृष्टि दे रहा है.

एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स की ये रिपोर्ट साइंस मैगजीन नेचर एस्ट्रोनॉमी (Nature Astronomy) में हाल ही में प्रकाशित हुई है. दो लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (फोटो में) की तरफ से जो गुरुत्वाकर्षण शक्ति लग रही है, उससे मिल्की वे आकाशगंगा का स्वरूप बदल रहा है. या यूं कह लें कि उसके शरीर का आकार बदल रहा है. जो कि अंतरिक्ष विज्ञान के हिसाब से एक बड़ी पहेली है. इसका असर हमारे सौर मंडल पर क्या होगा, ये अभी कह पाना मुश्किल है.

एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. माइकल पीटरसन ने बताया कि करीब 70 करोड़ साल पहले लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) हमारे मिल्की वे आकाशगंगा की सीमा के बाहर आकर रुक गया. उसके डार्क मैटर और तेज गुरुत्वाकर्षण की वजह से मिल्की वे आकाशगंगा की गति और अंदरूनी हिस्सों पर असर पड़ने लगा. यानी आकाशगंगा का आकार बदलने लगा. अब वह टूटने भी लगी है.

डार्क मैटर एक रहस्यमयी गोंद है जो आकाशगंगाओं को आपस में एक तय दूरी पर जोड़ कर रखती है. ये न तो कभी दिखाई दी है. न चमकती है न ही अपनी ओर कुछ खींचती है. न ही कुछ उत्सर्जित करती है. लेकिन मिल्की वे आकाशगंगा के टूटने और मुड़ने की वजह ये हो सकती है कि डार्क मैटर में किसी तरह की कमी आई हो. या उसकी ताकत कमजोर पड़ी हो. ऐसा भी हो सकता है कि हमारी आकाशगंगा की उत्पत्ति इसी प्रक्रिया को उलटने से पता चले.

लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) हमारी आकाशगंगा का सैटेलाइट बना हुआ है. जैसे धरती के चारों तरफ मानव निर्मित सैटेलाइट होते हैं. या फिर हमारा चांद. मैग्लेनिक क्लाउड को अगर देखना चाहते हैं तो आपको धरती के दक्षिणी गोलार्द्ध यानी भूमध्य रेखा के नीचे वाले देशों से रात को साफ आसमान में देखा जा सकता है. यह रात में एक धुंधले बादल की तरह दिखाई देता है, जिसके अंदर कई तारे चमकते रहते हैं.

लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) का 16वीं शताब्दी के पुर्तगाली खोजी फर्दिनैंड मैग्लेनिक के नाम पर रखा गया था. मैग्लेनिक ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पूरी धरती का चक्कर लगाया था. पुरानी स्टडीज बताती हैं कि लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड एक तरह की आकाशगंगा है, जिसके चारों तरफ डार्क मैटर तश्तरी की तरह फैली हुई है. इसी डार्क मैटर की वजह से मिल्की वे आकाशगंगा टूट रही है.

मिल्की वे आकाशगंगा लगातार मुड़ रही है. यह उत्तर के आसमान में स्थित पीगैसस नक्षत्र (Pegasus Constellation) की ओर घूम रही है. लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) भी 12.87 लाख किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से हमारी आकाशगंगा से दूर जा रहा है, लेकिन मिल्की वे आकाशगंगा को खींच भी रहा है. ऐसा लग रहा है कि हमारी आकाशगंगा मैग्लेनिक क्लाउड को हिट करना चाहती है लेकिन निशाना नहीं लगा पा रही है.

डॉ. पीटरसन कहते हैं कि लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) 3 लाख प्रकाश वर्ष दूर है. वह लगातार अपने गुरुत्वाकर्षण शक्ति की दम पर मिल्की वे को अपनी ओर खींच रहा है. अब हम यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिरकार ये मैग्लेनिक क्लाउड आकाशगंगा के पड़ोस में कैसे और कहां से आया. इससे हमें मिल्की वे और मैग्लेनिक क्लाउड के बीच मौजूद डार्क मैटर की ताकत और मात्रा का भी पता चल सकता है.

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