विज्ञान

अपने ही ग्रहों के निगल जाते हैं कई तारे, शोधकर्ताओं ने बताई ये जानकारी

Gulabi
31 Aug 2021 4:06 PM GMT
अपने ही ग्रहों के निगल जाते हैं कई तारे, शोधकर्ताओं ने बताई ये जानकारी
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शोधकर्ताओं ने बताई ये जानकारी

हमारे ब्रह्माण्ड में कई तरह की अनोखी प्रक्रियाएं देखी जाती है और नई प्रक्रियाएं खोजी भी जा रही हैं. हाल ही में हुए अध्ययन में दावा किया गया है कि हमारे सूर्य (Sun) जैसे तारों में से कम से कम चौथाई तारें कम से कम अपने एक ग्रह को निगल लेते हैं. इससे यह पता चलता है कि बहुत से ग्रह तंत्र गतिक रूप से अस्थिर हैं जिससे हमारा खुद का सौरमंडल अलग ही हो जाता है. बताया जा रहा है कि इस पड़ताल का असर पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज पर खासा असर डाल सकता है.

बहुत ही अलग होते ग्रह तंत्र
नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने लिखा है कि ग्रह तंत्रों के एक दूसरे से बहुत अलग होने वाले अवलोकन प्रमाण बताते हैं कि उनका गतिशील इतिहास बहुत ही विविध हो सकता है. संभवतः इसकी वजह उनके शुरुआती हालातों की बहुत ज्यादा संवेदनशील होना हो सकती है. अधिकांश अव्यवस्थित तंत्रों की गतिशील प्रक्रियाओं में संभवतया ग्रहों की अस्थिर कक्षा हो सकती है जिससे वे अपने तारे में समा जाते होंगे.
बहुत कम होते हैं सूर्य जैसे तारे
शोधकर्ताओं ने बताया कि ग्रहों के निगलने जाने के स्पष्ट प्रमाण और उनका अपने सूर्य जैसे तारों के अंदर पाए जाने की जानकारी इन तंत्र के विकास पर रोशनी डाल सकेगी. इससे उनके बहुत ही गतिशील पुनर्गठन के जटिल चरणों के बारे में भी पता चल सकता है. हमारे सौरमंडल का सूर्य हमारी गैलेक्सी में बहुत ही कम पाए जाना वाला तारा है. हमारी गैलेक्सी के बहुत सारे तारे, करीब 75 प्रतिशत तारे एम प्रकार के तारे हैं या लाल बौने हैं जो छोटे, ठंडे और बहुत लंबा जीवन जीने वाले तारे हैं.
किस प्रकार का तारा है सूर्य
हमारा सूर्य जी प्रकार का तारा है जिसे पीला बौना कहते हैं, हमारी मिल्की वे गैलेक्सी में केवल 7 प्रतिशत जी प्रकार के तारे हैं. इसके अलावा खगोलविदों का मानना है कि बहुत सारे तारे, तारों के तंत्र में पैदा होते हैं जिनका कम से कम एक साथी तारा होता है जो एक दूसरे का चक्कर लगाकर युग्म तारों का तंत्र बनाते हैं. और इसकी प्रबल संभावना है कि सूर्य ने भी अपने साथी को लंबे समय पहले खो दिया होगा.
कैसे बनते हैं तारे
जब आणविक गैसे का घने बादल अंतरिक्ष में अपने ही गुरुत्व में सिमटकर घूमने लगता है, तब तारे के निर्माण की शुरुआत होती है जिसे प्रोटोस्टार कहते हैं. इस प्रोटोस्टार के आसपास की गैसे एक तश्तरी या डिस्क का रूप ले लेती है, जो बढ़ते तारे के लिए भोजन देने का काम करती है. इस प्रक्रिया में तश्तरी बिखर सकती है और एक दूसरे प्रोटोस्टार का निर्माण हो सकता है.
फिर ऐसे बनते हैं ग्रह
एक बार तारों का निर्माण हो जाए तो डिस्क में बचे हुए अवशेष का ग्रहों, क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं का रूप ले लेते है और एक ग्रह तंत्र का निर्माण कर लेते है. डिस्क में शुरुआती बादलों में उनके पादर्थ का क्या अनुपात है इसी के आधार पर यह तय होता है कि ये पिंड कब और कहां बनते हैं. और चूंकि दोनों तारे एक ही सामग्री से बनते हैं, दोनों ही युग्म तारों का रासायनिक संरचना और भार भी एक सा रहता है.
तारे के वायुमंडल की संरचना
लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता है. ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी और इटली की पाडुआ खगोलीय वेधशाला के लोरेन्जों स्पिना की अगुआई में खगोलविदों की टीम ने 107 युग्म तारे खोजे जिनकी तापमान और सतह का गुरुत्व एक सा था., लेकिन उम्मीद के विपरीत उनके रासायनिक गुणों में बहुत अंतर था. जिससे उनके ग्रह को खाने की संभावना 20 से 35 प्रतिशत हो गई थी. ऐसे में तारे में समाने वाला पदार्थ तारे के वायुमंडल की संरचना को बदल देता है और वहां के हालात को और भी अस्थिर कर देता है.
शोध से पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि सूर्य जैसे तारों के ग्रह तंत्र की शुरुआत बहुत ही उथल पुथल वाली होती है. इसके पृथ्वी जैसे ग्रहों के निर्माण में भूमिका हो सकती है. इसके साथ ही इससे हमारी पृथ्वी जैसे बाह्यग्रहों की खोज में मदद मिले सकेगी. इसके नतीजे हमारे सौरमंडल पर भी लागू होते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज का एक और पैमाना मिल गया है.
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