विज्ञान

अंतरिक्ष से दिखी धरती पर कड़कती बिजली, कैमरे में कैद हुए दुर्लभ नजारे

Gulabi
24 Jan 2021 4:16 PM GMT
अंतरिक्ष से दिखी धरती पर कड़कती बिजली, कैमरे में कैद हुए दुर्लभ नजारे
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धरती से देखे जाने पर कड़कती बिजली जितनी खतरनाक दिखती है उतनी ही रोमांचक भी।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। धरती से देखे जाने पर कड़कती बिजली जितनी खतरनाक दिखती है उतनी ही रोमांचक भी। हालांकि, अंतरिक्ष से इसका नजारा कुछ अलग ही होता है। इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन से नीले रंग का बोल्ट देखा गया जो तूफानी बादलों के ऊपर जा रहा था। जमीन से इसे ऐसे देखना करीब-करीब नामुमकिन होता है। 26 फरवरी, 2019 को ISS पर लगे उपकरणों ने इस नजारे को कैमरे में कैद दिया। प्रशांत महासागर में नॉरू टापू के ऊपर इसे देखा गया। इस बारे में हाल ही में नेचर पत्रिका में रिपोर्ट छपी है।

ISS से क्या दिखा?
वैज्ञानिकों ने पहले नीली रोशनी के 10-20 मिलिसेकंड के 5 फ्लैश देखे। इसके बाद यह कोन जैसे आकार में फैल गया। जब पॉजिटिव चार्ज वाला बादलों का ऊपरी हिस्सा बादलों और हवा के बीच वाले निगेटिव चार्ज से मिलता है, तब ब्लू जेट बनते हैं। ये चार्ज बादल में अपनी जगह बदलते हैं और एक समान हो जाते हैं जिसे इलेक्ट्रिक ब्रेकडाउन कहते हैं। इस दौरान स्थैतिक बिजली (Static Electricity) पैदा होती है। ब्लू जेट के बारे में ज्यादा सटीक डीटेल नहीं हैं, इसलिए इस घटना का कैद किया जाना अहम है।




कैसे पैदा होते हैं?

वैज्ञानिकों के मुताबिक ब्लू जेट से पहले चार फ्लैश में अल्ट्रावॉइलट रोशनी भी थी। इन्हें Elves बताया गया है जो ऊपरी वायुमंडल में देखा जाता है। ये रोशनी के ऐसे उत्सर्जन होते हैं जो तेजी से बढ़ते हुए रिंग्स की तरह दिखते हैं। ये आइनोस्फीयर (ionosphere) में पाए जाते हैं जो धरती से 35-620 मील ऊपर तक चार्ज्ड पार्टिकल्स की लेयर होती है। Elves तब पैदा होते हैं जब रेडियो किरणें आइनोस्फीयर में इलेक्ट्रॉन्स को पुश करते हैं जिससे उनकी गति तेज हो जाती है और वे दूसरे चार्ज्ड पार्टिकल्स से टकराते हैं। इससे ऊर्जा रोशनी बनकर उत्सर्जित होती है।




क्या हो सकता है असर?

ये फ्लैश, Elves और ब्लू जेट यूरोपियन स्पेस एजेंसी के अटमॉस्फीयर स्पेस इंटरैक्शन मॉनिटर (ASIM) की मदद से देखे गए। इसमें कैमरे, फोटोमीटर, एक्स-रे डिटेक्टर और गामा-रे डिटेक्टर होते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऊपरी वायुमंडल में होने वाले ब्लू जेट का असर ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा पर भी हो सकता है। जहां, स्ट्रेटोस्फीयर की परत में, ये ब्लू जेट होते हैं, वहीं ओजोन भी होती है।


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