विज्ञान

जानिए क्यों एक्सपर्ट ने कहा- प्लाज्मा और रेमडेसिविर का आंख मूंदकर इस्तेमाल ठीक नहीं

Gulabi
14 May 2021 7:06 AM GMT
जानिए क्यों एक्सपर्ट ने कहा- प्लाज्मा और रेमडेसिविर का आंख मूंदकर इस्तेमाल ठीक नहीं
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प्लाज्मा और रेमडेसिविर का आंख मूंदकर इस्तेमाल

पिछले साल कोरोना की पहली लहर में वायरस के खिलाफ जंग में अहम योगदान दे चुके इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के पूर्व वैज्ञानिक डॉक्टर रमण गंगाखेडकर ने प्लाज्मा और रेमडेसिविर के धड़ल्ले से इस्तेमाल को लेकर आगाह किया है। उन्होंने कहा है कि इसकी वजह से वायरस का म्यूटेशन होगा और वह और ताकतवर होता चला जाएगा। उन्होंने यह भी कहा है कि प्लाज्मा का इस्तेमाल तो आमतौर पर तब उपयोगी है, जब वायरस नया हो और हमें उसके बारे में ज्यादा कुछ भी पता नहीं हो। उन्होंने सरकार को भी सलाह दी है कि वह डॉक्टरों और अस्पतालों को इलाज के इन विकल्पों को बहुत ही सोच-समझकर अपनाने के लिए कहे।

प्लाज्मा और रेमडेसिविर का आंख मूंदकर इस्तेमाल ठीक नहीं-एक्सपर्ट
डॉक्टर रमण गंगाखेडकर महामारी विशेषज्ञ हैं और पिछले साल कोविड के खिलाफ जारी लड़ाई में सरकारी प्रेस ब्रीफिंग में आईसीएमआर के मुख्य चेहरे के तौर पर देश के सामने आते थे। उन्होंने न्यूज पोर्टल से बातचीत में साफ कहा है कि कोविड के उपचार में अंधाधुंध तरीकों का उपयोग ठीक नहीं है, जो कि विभिन्न स्तरों पर प्रभावी साबित होने में नाकाम रहा है। उनके मुताबिक ' (यह तरीका) एसएआरएस सीओवी2 वायरस को आगे फिर से म्यूटेट करने में मदद कर सकता है और वह ताकतवर बन सकता है।' उनका कहना है कि 'एक तरफ जहां शरीर का अपना इम्यून सिस्टम वायरस को म्यूटेट करने का दबाव बनाता है, ऐसे में इलाज के बेतरतीब विकल्पों के इस्तेमाल, जैसे कि हल्के लक्षणों में रेमडेसिविर और मध्यम से गंभीर मामलों में प्लाज्मा, वायरस को और ताकतवर बनने में मदद कर सकता है।'
'वैक्सीन के बेअसर होने का भी खतरा'
गंगाखेडकर ने साफ कहा है कि सरकार को इसको लेकर डॉक्टरों और अस्पतालों को आगाह करना चाहिए। उन्होंने कहा है, 'सरकार को डॉक्टरों और अस्पतालों से साफ कहना चाहिए कि ठीक होने वालों के प्लाज्मा और एंटीवायरल दवा रेमडेसिविर का इस्तेमाल रोक दें या उनका युक्तिसंगत उपयोग करें।' उन्होंने यह भी कहा है कि भारत में कई तरह के म्यूटेशन की आशंकाओं के चलते दूसरे देशों के लिए भी यह चिंता का कारण बन सकता है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है, 'बड़ी तादाद में भारतीय इस वायरस से संक्रमित हुए हैं, उसके बाद उनपर इस तरह के इलाज के विकल्पों का इस्तेमाल हो रहा है, इसलिए म्यूटेशन होने की आशंका है, जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है और वैक्सीन से होने वाली इम्यून सुरक्षा बेअसर होने के भी चांस बढ़ गए हैं।
'सातवें दिन के बाद प्लाज्मान नहीं दी जानी चाहिए'
गंगाखेडकर अकेले नहीं हैं, देशभर के कई वैज्ञानिक, हेल्थ प्रोफेशनल 'स्वस्थ होने वाले मरीजों (कोरोना से) के प्लाज्मा के तर्कहीन और गैर-वैज्ञानिक इस्तेमाल' पर चिंता जाहिर कर रहे हैं। 11 मई को इन विशेषज्ञों ने भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन और आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर बलराम भार्गव को चिट्ठी लिखकर कहा था कि प्लाज्मा ट्रीटमेंट को लेकर आईसीएमआर की गाइडलाइंस मौजूदा तथ्यों पर आधारित नहीं है। डॉक्टर रमण गंगाखेडकर के मुताबिक 'स्वस्थ होने वाले मरीजों के प्लाज्मा का इस्तेमाल बहुत पुराना तरीका है, जब कोई नई बीमारी आती है और आपको उस जानलेवा संक्रामक बीमारी के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है तो उसके खिलाफ यह पहले हथियार के तौर पर उपयोग किया जाता है।.....यही नहीं भारत में हम बिना सोचे प्लाज्मा दे रहे हैं, जो कि कोविड-19 में बीमार होने के सातवें दिन के बाद नहीं दी जानी चाहिए।'
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