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पांच महाविनाश जैसे हालात
महाविनाश (Mass Extinction) की आशंका हमेशा से ही इंसानों के मन में रही है. लेकिन वैज्ञानिक इस घटना को बहुत अलग ही तरह से देखते हैं. जलवायु वैज्ञानिक (Climate Scientists) भी समय समय पर चेतावनी देते हैं कि अगर हम पर्यावरण के प्रति सही तरह से सक्रिय नहीं हुए तो पृथ्वी (Earth) को महाविनाश का सामना जल्दी ही करना पड़ सकता है. जब भी इससे संबंधित कोई अध्ययन होता है तो वह उत्सुकता का विषय हो जाता है. जापान के जलवायु वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि आज अगर महाविनाश होता है तो वह पिछले पांच महाविनाशों की तरह नहीं और ऐसा कम से कम कई शताब्दियों तक तो नहीं होगा.
कब देखने को मिले थे महाविनाश
जापान के तोहोकू यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है. पिछले 54 करोड़ सालों में एक से ज्यादा बार पृथ्वी ने बहुत ही कम भूगर्भीय समय में अपनी सारी प्रजातियां गंवा दी हैं, इन्हीं को महाविनाश की घटनाएं कहा जाता है और उसके पृथ्वी पर क्षुद्रग्रह या ज्वालामुखी सक्रियता के कारण चरम गर्मी या फिर चरम ठंड जैसे बड़े जलवायु परिवर्तन भी देखने को मिलते हैं.
तापमान में बदलाव एक बड़ा कारक
नए अध्ययन कूनियो काइहोने पृथ्वी की सतह के औसत तापमान और उसकी जैवविविधता का मापन करने का प्रयास किया तो उन्होंने एक रैखीय प्रभाव पाया. उन्होंने देखा कि जब तापमान में बदलाव ज्यादा होता है और महाविनाश का प्रभाव भी ज्यादा होता है. वैश्विक ठंडक की घटनाओं में सबसे बड़े महाविनाश तब हुए जब तापमान 7 डिग्री सेल्सियस नीचे तक गया. वहीं ग्लोबल वार्मिंग में ऐसा करीब 9 डिग्री ज्यादा गर्म होने पर हुआ.
कब बनेगे पिछले पांच महाविनाश जैसे हालात
यह पिछले अनुमानों की तुलना में काफी ज्यादा है. इससे पता चलता है कि 5.2 डिग्री की तापमान एक बड़ा महासागरीय महाविनाश ला देगा या फिर पिछले पांच बड़े महाविनाश के समान हालात पैदा कर देगा. इस परिदृश्य को वर्तमान सदी के अंत में रख कर देखा जाए तो आधुनिक ग्लोबल वार्मिंग सतह की तापमान करीब 4.4 डिग्री सेंटीग्रेड ज्यादा कर सकती है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी (Earth) पिछले महाविनाशों के जैसे हालात अभी नहीं आएंगे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
पहले की तरह विनाशकारी नहीं
काइहो का अनुमान है कि बदतर हालात में एंथ्रोपोसीन युग में कम से कम साल 2500 तक तो 9 डिग्री सेल्सियस वाली ग्लोबल वार्मिंग तो नहीं आ रही है. काइहो इस बात से इनकार नहीं करते हैं कि जमीन और महासागरों में आए बहुत सारे महाविनाश जलवायु परिवर्तन के कारण आए हैं. लेकिन वे यह उम्मीद नहीं करते हैं कि इस बार अगर ऐसा होता है कि तो विनाश पिछले विनाशों के अनुपातों में ही होगा.
गति ज्यादा अहम
इसके बाद भी जलवायु परिवर्तन की सीमा प्रजातियों के लिए जोखिम नहीं हैं. जिस गति से ये बदलाव होंगे वह ज्यादा अहम है. पृथ्वी पर आए सबसे बड़े महाविनाश ने 25 करोड़ साल पहले 95 प्रतिशत प्रजातियों को विलुप्त कर दिया था और यह प्रक्रिया 60 हजार सालों तक चली थी. लेकिन अभी की जो ग्लोबल वार्मिंग हो रही है वह बहुत ही कम अंतराल में हो रही है.
शोधकर्ताओं का कहना कहना है कि इस बार ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण महाविनाश आएगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
फिर भी ज्यादा प्रजातियां हो सकती हैं विलुप्त
अजीब बात यह है कि इसके लिए मानवीय गतिविधियों के कारण जीवाश्म ईंधन से हुए उत्सर्जन जिम्मेदार है. छठे महाविनाश में शायद ज्यादा प्रजातियां विलुप्त हो जाएं. इसकी वजह ज्यादा गर्मी नहीं बल्कि यह होगी की ये बदलाव इतने तेजी से होंगे की बहुत सी प्रजातियों को इसके अनुकूल ढलने का मौका नहीं मिलेगा.
बायोजियोसाइंसेस में प्रकाशित इस अध्ययन में काइहो का कहना है कि केवल सतही तापमान के आधार पर भावी मानवजनित महाविनाश की मात्रा का अनुमान लगाना कठिन है क्योंकि इसके कारण भौगोलिक समय में होने वाले महाविनाश के कारणों से अलग है. चाहे जो भी हो अगर हमने जलवायु परिवर्तन को नहीं रोका यह तय है कि बहुत सारी प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी.

Gulabi Jagat
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