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पुरातन मंगल के बारे में
मंगल ग्रह (Mars) पिछले लंबे समय से अध्ययन का विषय रहा है. पृथ्वी से इस ग्रह के हुए अवलोकन काफी समय पहले से लाल ग्रह के बारे में कौतूहल पैदा कर रहे हैं. यहां कई रोवर भेजे जा चुके हैं जिनमें से नासा (NASA) का क्यूरोसिटी रोवर यहां पिछले 9 साल से काम कर रहा है. इस दौरान उसने कई सतहों से नमूनों का अवलोकन किया है. अवसादों के इन नमूनों में कार्बन (Carbon) आइसोटोप मिले हैं जिनका ताजा विश्लेषण मंगल, खासतौर पर उसके पुरातन इतिहास के बारे में नई जानकारी दे रहा है. इस विश्लेषण में उन तीन संभावित कारकों की भी विवेचना की गई जो मंगल ग्रह पर कार्बन की मौजूदगी के कारण बताए जाते हैं.
कार्बन की उत्पत्ति के तीन कारण
मंगल पर कार्बन की उत्पत्ति के तीन प्रमुख कारण बताए जाते हैं एक कारण खगोलीय धूल हो सकती है जो मंगल ग्रह पर कार्बन के आने का स्रोत हो सकती है. दूसरा कारण यह हो सकता है कि सूर्य से आने वाला पराबैंगनी विकिरण कार्बन डाइऑक्साइड का विखंडन, तीसका कारण जैविक रूप से पैदा हुई मीथे का पराबैंगनी किरणों द्वारा विखंडन हो सकता है. शोध में बताया गया है कि सभी कारण पृथ्वी की प्रक्रियाओं से बहुत अलग और असामान्य हैं.
कार्बन चक्र की स्थितियां
कार्बन के दो स्थायी आइसोटोप हैं. ये कार्बन 12 और दूसरा कार्बन 13 हैं. किसी पदार्थ में हरएक की मात्रा का अध्ययन करने से शोधकर्ता कार्बन चक्र की विशेष स्थितियों का पता लगा सकते हैं भले ही वह बहुत पहले घटित हुई हों. पेन स्टेट में जियोसाइंस प्रोफेसर क्रिस्टोफर एच हाउस का कहना है कि सौरमंडल में उसके निर्माण के समय जितना कार्बन 12 और 13 मौजूद था उतना ही आज भी है.
कार्बन 12 और 13
हाउस ने बताया कि दोनों तरह के कार्बन सभी चीजों में मौजूद हैं लेकिन चूंकि कार्बन 12 कार्बन 13 के मुकाबले ज्यादा तेजी से प्रतिक्रिया करता है, नमूनों में दोनों की तुलनात्मक मात्रा कार्बन चक्र के बारे में काफी कुछ बत सकती है. 9 साल से नासा का क्यूरोसिटी रोवर मंगल के गाले क्रेटर पर है और उससे पुरातन चट्टानों की जानकारी दी है.
पुरातन अवसादी चट्टानों से
क्योरिसिटी रोवर ने इन पुरातन चट्टानों की परतों में खुदाई की है और कई अवसादों की परतों के नमूने हासिल किए हैं. क्यूरोसिटी ने इन नमूनों को ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में गर्म किया जिससे किसी भी तरह के अतिरिक्त रासायन हट जाएं. इन नमूनों से पायरोलिसिस करने के बाद कार्बन का स्पैक्ट्रोग्राफिक विश्लेषण किया गया.
कार्बन13 विहीन नमूने
इस विश्लेषण से पता चला कि कार्बन 12 और कार्बन 13 की विशाल मात्रा इस पर निर्भर करती है कि मूल नमूना कब और कहां निर्मित हुआ. कुछ नमूनों में अपवाद स्वरूप कार्बन 13 नहीं था जबकि दूसरे नमूने कार्बन 13 समृद्ध थे. जिन नमूनों ने कार्बन 13 नहीं के बराबर थे, वे ऑस्ट्रेलिया के अवासादों में मिले 2.7 अरब साल पुराने नमूनों की तरह थे.
मीथेन और जैविक क्रियाएं
ऑस्ट्रेलिया के वे नमूने पुरातन सूक्ष्म जीवों के कारण उपयोग में लाई गई मीथेन की वजह से जैविक क्रियाओं के कारण बने थे. लेकिन हम यह दावे से नहीं कह सकते कि मंगल पर भी ऐसा ही हुआ होगा क्योंकि मंगल की सामग्री और प्रक्रियाएं पृथ्वी से अलग थीं. शोधकर्ताओं ने तीन संभावनाओं का विश्लेषण किया.
.हाउस के मुताबिक हर 20 करोड़ साल में सौरमंडल एक गैलेक्सीय आणविक बादलों से गुजरता है. उस गैलेक्सीय बादल से मंगल का तापमान कम होने पर ग्लेशियर बने होंगे. पानी बनने केबाद वहां की धूल सतह पर कार्बन सहित जम गई होगी. इस कारण पर और शोध की जरूरत है. वहीं पराबैंगनी किरणों ने CO2 को जैविक पदार्थों में बदला होगा. तीसरे कारण में जैविक प्रक्रियाओं के जरिए निकली मीथेन का विखंडन पराबैंगनी किरणों ने किया होगा. फिर हाल दोनों ही को प्रमाणित नहीं किया जा सकता है. इस विषय पर और गहन अध्ययन की जरूरत है.
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