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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ताकत के खेल में टॉप 5 देश पिछले साल की तुलना में अपनी जगह पर कायम हैं, अलबत्ता उनकी ताकत में कुछ कमी ज़रूर दर्ज हुई है. एशिया, खास तौर पर एशिया पैसिफिक का जो पूरा क्षेत्र है, वहां दबदबे की लड़ाई में सिडनी बेस्ड एक इंस्टिट्यूट की रैंकिंग ऐसे समय में आई है, जब भारत और चीन सीमा पर हालात बहुत नाज़ुक स्थिति में हैं, समुद्र में चीन के खिलाफ भारत और अमेरिका मुस्तैद हैं और कारोबार के मोर्चे पर भी एक युद्ध से कम स्थिति नहीं है.
इस स्टडी में एशिया पैसिफिक में सबसे ताकतवर देश अमेरिका बना हुआ है. चीन उसके बहुत करीब पहुंचकर टक्कर की सुपरपावर बन चुका है, लेकिन भारत अभी पीछे है, काफी पीछे. लोवी इंस्टिट्यूट की एशिया पावर इंडेक्स 2020 में टॉप टेन ताकतों के तौर पर अमेरिका और चीन के बाद जापान, भारत, रूस, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, थाईलैंड और मलेशिया के नाम हैं.
इस रैंकिंग से ही पूरी बात ज़ाहिर नहीं होती. कौन किससे कितना पीछे है और किस क्षेत्र में? साथ ही, इस रैंकिंग का पूरा मतलब क्या है, ये सब जानना ज़रूरी हो जाता है.
अमेरिका की बादशाहत पर चीन का चैलेंज
26 देशों की इस रैंकिंग में दो साल पहले तक अमेरिका चीन से 10 पॉइंट आगे था, लेकिन अब 5 से 6 पॉइंट का ही फासला बाकी है. ऐसा क्यों हुआ? रिसर्च के प्रमुख के हवाले से कहा गया कि कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ जिस तरह अमेरिका ने ढील का रवैया दिखाया, व्यापार को लेकर जिस तरह विवाद खड़े किए और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह अंतर्राष्ट्रीय सौदों में गैर प्रोफेशनल एटिट्यूड दिखाया, उन सबकी वजह से अमेरिका की साख पर बट्टा लगा.
कोरोना का दूसरा झटका अमेरिका को इस तरह लगा कि अर्थव्यवस्था चौपट हो गई. इंस्टिट्यूट का दावा है कि अमेरिका को महामारी से पहले की स्थिति में आने के लिए 2024 तक का वक्त लग जाएगा, जबकि अर्थव्यवस्था के मामले में चीन को लेकर भविष्यवाणी यह है कि इसी साल 2020 में वह झटके से उबर सकता है. अपनी तमाम जुर्रतों के बावजूद लगातार तीसरे साल इस रेंकिंग में दूसरे नंबर पर ताकत के साथ बना हुआ है.
भारत की ताकत चीन से कैसे और कितनी कम?
इस साल इस रैंकिंग में कोविड महामारी गेमचेंजर मानी गई. भारत चौथे नंबर का सबसे ताकतवर देश रहा यानी चीन और जापान के बाद. लोवी इंस्टिट्यूट ने कहा कि 2030 तक चीन की अर्थव्यवस्था के आउटपुट के 50 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान पिछले साल था, लेकिन अब भारत 40 फीसदी तक ही पहुंच सकेगा. दोनों देशों की रैंकिंग में पॉइंट्स का बड़ा फर्क है जिससे अमेरिका के साथ चीन एशिया में सुपरपावर है, जबकि भारत मिडिल पावर है. आइए इसे समझें.
चीन 76 पॉइंट्स के साथ इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर है, जबकि भारत करीब 40 पॉइंट्स के साथ चौथे नंबर पर. पॉइंट्स के लिहाज़ से यह फर्क करीब दोगुने का है. यानी भारत की ताकत को हम चीन के मुकाबले आधा मान सकते हैं. अब सवाल ये खड़ा होता है कि चीन से इस तरह भारत पीछे कैसे रह गया? इसके लिए हमें इस स्टडी के पैमानों को समझना होगा. यह स्टडी कई पैमानों पर की गई, जिसके आधार पर फाइनल रैंकिंग तय हुई. जिन्हें स्टडी में सबसे ज़्यादा तवज्जो दी गई, उन 8 कसौटियों को देखते हैं :
आर्थिक क्षमता : इस मोर्चे पर चीन का बड़ा स्कोर 92.5 रहा, जबकि भारत का स्कोर सिर्फ 25.3.
मिलिट्री क्षमता : यहां चीन को 66.8 पॉइंट मिले, जबकि भारत को 44.3.
लचीलापन : इस कसौटी पर चीन का स्कोर 70.6 रहा जबकि भारत का स्कोर 54.5.
भविष्य के संसाधन : यहां चीन ने बाज़ी मारते हुए 85.7 पॉइंट कमाए तो भारत ने 49.2.
आर्थिक संबंध : इस मामले में चीन बढ़त बनाते हुए 98.9 पॉइंट्स ले गया तो भारत को महज़ 23.7 पॉइंट मिले.
डिफेंस नेटवर्क : यहां भारत थोड़ा आगे रहा और 26.3 अंक ले सका जबकि चीन को 24.1 अंक मिले.
कूटनीतिक प्रभाव : चीन 91.1 पॉइंट्स के साथ यहां बाज़ी मार गया क्योंकि भारत के पास यहां 65.9 पॉइंट्स रहे.
सांस्कृतिक प्रभाव : चीन ने यहां 61.9 का स्कोर हासिल किया, जबकि भारत ने 43.7.
तो, यह स्टडी कहती है कि आर्थिक मोर्चे पर भारत बहुत पीछे है और महामारी के चलते भारत की 'अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा है, गरीबी जिस ढंग से फिर बढ़ी है, इस सबसे उबरकर एशिया की बड़ी शक्ति बनने में भारत को अब और ज़्यादा वक्त लगेगा.'