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ब्लैक फफूंद संक्रमण
भारत में कोविड-19 (Covid-19) की दूसरी लहर के दौरान ब्लैक फंगस (Black Fungus) या म्यूकोरमाइकोसिस (Mucormycosis) का संक्रमण ने लोगों को चिंता में डाल दिया है. यह संक्रमण हाल ही में कोविड-19 मरीजों में फैलता दिखाई दे रहा है जबकि पहली लहर में इसका नामोनिशान तक नहीं था. वैसे तो इसे नया संक्रमण बताया जा रहा है, लेकिन इस संक्रमण की जानकारी काफी पहले समाने आ गई थी.
आम और व्यापक है यह फफूंद
ब्लैक फंगस का वैज्ञानिक नाम म्यूकोरमाइकोसिस है. यह एक गंभीर किंतु बहुक कम होने वाला फफूंद संक्रमण है और फिलहाल भारत में कोविड-19 के मरीजों में ही फैल रहा है. यह संक्रमण एक फफूंद के समूह द्वारा फैलता जिसे म्यूकोरमाइसेट्स कहते हैं. ये ऐसे वातावरण में हर जगह मिल सकता है और आमतौर पर खराब खाने में मिलता है. इतना व्यापक होने पर भी यह इंसानों को कम ही संक्रमित करता है क्योंकि इसके रोगाणुओं से हमारा प्रतिरोध तंत्र आसानी से लड़ लेता है.
क्या है इतिहास
हैरानी की बात है कि जहां इसे नया संक्रमण कहा जा रहा है. इसका पहला मामला 1885 में जर्मनी के पाल्टॉफ नाम के एक पैथोलॉजीस्ट ने देखा था. इसके बाद म्यूकोरमाइकोसिस नाम अमेरिकी पैथोलॉजीस्ट आरडी बेकर ने दिया था. 1943 में इससे संबंधित एक शोध छपा था 1955 में इस बीमारी से बचने वाला पहला शख्स हैरिस नाम का व्यक्ति बताया जाता है. तब से अब तक इसके निदान आदि में ज्यादा बदलाव नहीं आया है.
बहुत कम होने वाली पर घातक बीमारी
अभी तक वैज्ञानिक भी यही मानते रहे हैं कि यह बहुत ही कम होने वाली बीमारी है. और संक्रमण नाक, आंख, आंत, दिमाग, फेफड़ों और शरीर के अन्य हिस्सों के अलावा दिमाग में भी फैल सकता है. लेकिन यह मुख्यतः कमजोर प्रतिरोध क्षमता वालों और डायबिटीज के मरीजों को होता है. यदि समय पर इस संक्रण का इलाज ना हुआ तो यह जानलेवा साबित होती है.
तो फिर नया क्यों माना जा रहा है
हैरानी की बात है कि इस संक्रमण के बारे में बहुत पहले से जानकारी है लेकिन फिर इसे काफी नया माना जा रहा है. सबसे बड़ी वजह से यह पहली बार है जो यह संक्रमण इतने बड़े स्तर पर फैला है यानि वर्तमान स्तर ही जो काफी कम है अब तक का सबसे बड़ा संक्रमण है. इसके अलावा इसका कोविड-19 से संबंध होने की वजह से भी ऐसा माना जा रहा है वह भी इसे पहली लहर में नहीं बल्कि दूसरी लहर में ही देखा गया इसलिये इसे नया माना जा रहा है
कोविड-19 के कारण भ्रम
हकीकत यह है कि अभी तक किसी भी जानकार ने नया नहीं कहा है. कोविड-19 , वह भी उसकी दूसरी लहर से संबंध होने के कारण लोग इसे नया मान रहे हैं. यह संक्रमण दरअसल होता ही उस व्यक्ति हो पहले से प्रतिरोध मे कमजोर हो या हो गया हो. ऐसे में उसके बचने की संभावना कम हो जाती है. इसके लक्षण कोविड-19 के लक्षणों से मिल गए हैं इसलिए शुरुआत में लोग इस पर ध्यान नहीं देते लेकिन बाद में देर हो जाती है.
कमजोर प्रतिरोध क्षमता वालों को ज्यादा खतरा
केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों में साफ कहा गया है कि फफूंद संक्रमण प्रमुख तौर पर उन लोगों में होता है जो पहले से दवाइयां ले रहे हैं और जिनमें हवा में मौजूद रोगाणुओं से लड़ने में कम सक्षम हैं. सांस लेने पर फफूंद फेफड़ों को संक्रमित करता है. दिशा निर्देशों के अनुसार यदि माइकोरमाइसिस का सयम पर उपचार नहीं किया गया तो यह जानलेवा साबित हो सकती है. ऐसे लोगों की नाड़ी और फेफड़ों में हवा से सांस के द्वारा फफूंद का संक्रमण पहुंच सकता है.
इस बीमारी के इलाज के तौर पर जरूरी है कि मरीज का प्रतिरोध क्षमता हासिल करने के तमाम उपाय किए जाएं, शरीर में पानी की मौजूदगी कायम रखी जाए, शरीर में नमक पानी का पर्याप्त संतुलन कायम रखा जाए. और जरूरत पड़ने पर छह हफ्तों के लिए एंटी फंगल थेरेपी दी जाए. इसके साथ ही मरीज की स्थिति पर लगातर निगरानी रखना भी जरूरी है.
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