विज्ञान

अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाएगा इसरो का नया प्रक्षेपण यान

Rani Sahu
13 April 2022 12:15 PM GMT
अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाएगा इसरो का नया प्रक्षेपण यान
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अभी तक अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान एक ही बार प्रयोग में लाए जा सकते थे

अभी तक अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान एक ही बार प्रयोग में लाए जा सकते थे. इससे अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण बहुत ज्यादा खर्चीला काम हो जाता था. पर्यटन उद्योग की संभावनाओं के देखते हुए अंतरिक्ष के क्षेत्र में ( Space Tourism) प्रक्षेपण को सस्ता बनाने के प्रयास चल रहे हैं और इसके नतीजे भी मिलने लगे हैं. अब दुनिया के कई अंतरिक्ष कंपनियों सहित कई देश भी पुनर्उपयोगी प्रक्षेपण यान (Reusable Launch Vehicle) पर काम कर रहे हैं और यह अब हकीकत भी बन चुके हैं. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो (Indian Space and Research Organisation) भी इस तकनीक पर काम कर रहा है. अब वह इसके लिए प्रदर्शन उड़ान और कक्षा के लिए प्रक्षेपण की योजना बना रहा है.

व्यवसायिक अंतरिक्ष के क्षेत्र के लिए
इसरो के इस कदम से साफ है वह अब दूसरे देशों और स्पेस एंजेसी से पीछे नहीं रहना चाहता है जिनसे उसकी प्रतिस्पर्धा चल रही है. इस प्रौद्योगिकी प्रदर्शन कार्यक्रम का मकसद व्यवसायिक अंतरिक्ष के क्षेत्र को साधना है. इसरो चीफ एस सोमनाथ ने कहा कि रीयूजेबपल व्हीकल केवल व्यवसायिक क्षेत्र के लिए ही नहीं बल्कि रणनीतिक क्षेत्र के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.
दो प्रदर्शन और भी
सोमनाथ ने बताया कि इससे भारत भी अंतरिक्ष में अपने पेलोड भेजकर वापस सुरक्षित ला सकेगा. जियोस्पेटियल वर्ल्ड से बात करते हुए उन्होंने बताया कि जल्दी ही लैंडिंग के लिए एक प्रदर्शन किया जाएगा. जो एक कक्षा प्रक्षेपण के प्रदर्शन के बाद किया जाएगा. उन्होंने कहा कि इसरो यह भी पड़ताल कर रहा है कि भविष्य में किस तरह के लॉन्च व्हीलकल बन सकते हैं और लॉन्चर की लागत को कैसे कम किया जा सकता है.
उपयोगी
फिलहाल एक प्रक्षेपण की कीम 20 हजार डॉलर प्रति किलोग्राम है. इसे 5 हजार डॉलर तक लाने की जरूरत है. यह तभी संभव है जब हम राकेट में पुनर्उपयोगिता ला सकें. इसरो पंखयुक्त पुनर्उपयोगी प्रक्षेपण यान तकनीक विकसित कर रहा है जो हाइपरसॉनिक उड़ान, स्वायत्त लैंडिंग, संचालित क्रूज उड़ान और हाइपरसोनिक उड़ान वायुश्वसन प्रणोदन जैसी तकनीकों में काम आएगी.
इन प्रयोगों का प्रदर्शन
इसरो अपने तकनीक प्रदर्शन कार्यक्रम में कई तरह की प्रयोगात्मक उड़ानों पर की शृंखला चलाएगा जिसमें हाइपरसॉनिक उड़ान प्रयोग (HEX), लैंडिंग प्रयोग (LEX), वापसी उड़ान प्रयोग (REX) और स्क्रैमजेट प्रणोदन प्रयोग (SPEX) शामिल होंगे. पुनर्उपयोगी प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी प्रदर्शन (RLV-TD) प्रौद्योगिकी प्रदर्शन अभियानों की शृंखला है. इन्हें दो चरण से कक्षा (TSTO) में पूरी तरह से फिर से पुनर्उपयोगी वाहन की दिशा शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है.
अवसरों पर करना होगा काम
सोमनाथ ने कहा, "मान लीजिए कि हमें रीयूजेबल रॉकेट बनाते हैं और उसे साल में केवल एक या दो बार ही प्रक्षेपित करते हैं. ऐसे में यह किफायती नहीं रहेगा. वास्तव में यह और महंगा हो जाएगा. इसलिए हमें पहले इसके लिए पृष्ठभूमि तैयार करनी होगी जिसमें रीयूजेबल रॉकेट की जरूरत होगी. हमें इसके लिए व्यवसायिक और प्रक्षेपण के अवसरों पर काम करना होगा.
अब तक दो तरह के प्रक्षेपण यान
भारत लंबे समय से अपने पृथ्वी की निचली कक्षा में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) पर अपने उपभोक्ता सैटेलाइट प्रक्षेपित करता आ रहा है. पिछले तीन सालों में इसरो ने निजी और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के जरिए इनसे 351 करोड़ यानि 3.5 करोड़ डॉलर की आय अर्जित की है.
अंतरिक्ष में प्रक्षेपण यान का उपयोग अब तक मुख्यतः सैटेलाइट भेजने के लिए ही किए जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अंतरिक्ष पर्यटन एक बड़े उद्योग के रूप में विकसित हो रहा है और भारत अंतरिक्ष प्रक्षेपण पहले से ही एक बड़ा नाम है. पिछले तीन साल में इसरो ने केवल 45 अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट भेजे हैं. ऐसे में वह अंतरिक्ष पर्यटन उद्योग को भुनाने की क्षमता रखता है.
Rani Sahu

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