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21वीं सदी से पहले हमें पता भी नहीं था कि चंद्रमा पर पानी (Water on Moon) है
21वीं सदी से पहले हमें पता भी नहीं था कि चंद्रमा पर पानी (Water on Moon) है भी या नहीं हैं. भारत के चंद्रयान अभियान ने चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति की सबसे पहले जानकारी साल 2008 में दी थी. इसे बात से चंद्रमा पर कई तरह के गहन अध्ययन हुए, लेकिन यह पता नहीं लग रहा था कि आखिर चंद्रमा पर पानी आया कहां से (Source of Water) था. लेकिन नए अध्ययन में इसका उत्तर मिल गया है. इसके अनुसार चंद्रमा पर पानी पृथ्वी (Earth) से ही आया है. इतना ही नहीं इस अध्ययन में यह भी पता चला है कि पृथ्वी से चंद्रमा पर पानी अब भी जा रहा है.
अलास्का फेयरबैंक्स जियोफिजिकल इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की अगुआई में हुए अध्ययन में ऐसे संकेत मिले हैं कि चंद्रमा पर पानी (Water on Moon) पृथ्वी से उच्च वायुमंडल में से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के आयानों (Hydrogen and oxygen ions)के निकल कर और चंद्रमा पर पहुंच कर जुड़ने की पूरी प्रक्रिया से होकर पहुंचा है. अलास्का युनिवर्सिटी के गुंटर कोचेश्का की अगुआई में हुआ यह अध्ययन उन बहुत सारे शोधों में अहम जानकारी जोड़ने वाला साबित होगा जो चंद्रमा के दक्षिण और उत्तर ध्रुवों (North and South poles of Moons) के पानी के मूल स्रोत को जानने के लिए किए जा रहे हैं.
चंद्रमा पर पानी पानी (Water on Moon) की खोज दुनिया की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों के लिए उत्साहजनक उपलब्धि मानी गई थी. चंद्रमा पर अमेरिका, यूरोप और चीन अपनी यात्री भेजने की तैयारी कर रहे हैं. इन यात्रियों के ले यह पानी बहुत उपयोगी साबित होगा. ये एजेंसियां चंद्रमा पर अपने मंगल अभियानों (Mars Missions) के लिए बेस बनाने का इरादा रखती हैं. नासा (NASA) का आर्टिमिस अभियान भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना बेस कैंप बनाएगा. कोचेश्का बताते हैं कि युगों पहले पृथ्वी पर पैदा हुए पानी के आयन अब चंद्रमा पर चंद्रयात्रियों के लिए जीवन समर्थन तंत्र के लिए उपयोगी हो सकते हैं.
नए अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि चंद्रमा के पास 3500 क्यूबिक किलोमीटर का पानी पानी (Water on Moon) या तो सतह पर बर्फ के रूप में या फिर सतह के नीचे के जल के रूप में मौजूद है. जो उन आयन से बना है जो पृथ्वी (Earth) के वायुमंडल (Atmosphere) से आए थे. साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित इस अध्ययन में सुझाया गया है कि इन खास जगहों का उपयोग भविष्य में लैंडिंग और अन्य आवासीय निर्माण एवं अन्वेशण के लिए किया जा सकता है.
शोध में बताया गया है कि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन आयन (Hydrogen and oxygen ions) पृथ्वी (Earth) से चंद्रमा पर पृथ्वी की मैग्नेटोस्पियर (Magnetosphere) की 'पूंछ' के जरिए गए थे, जो चंद्रमा के एक महीने पृथ्वी का चक्कर लगाते समय के पांच दिन में बनती है. मैग्नेटोस्फियर पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड से बनता है जो पृथ्वी की रक्षा अंतरिक्ष से आने वाले हानिकारक आवेशित कणों के विकिरण से करती है.
नासा (NASA) और यूरोपीय स्पेस एजेंसी के अध्ययनों ने पहले ही खुलासा किया हुआ है कि मैग्नेटोस्फियर (Magnetosphere) के इस हिस्से से चंद्रमा के गुजरने के दौरान काफी मात्रा में पानी के आयन मौजूद रहते हैं. चंद्रमा की मेग्नेटोस्फियर के इस हिस्से में उपस्थिति को मैग्नेटोटेल (magnetotail) कहते हैं. यह पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड रेखाओं को कुछ देर के लिए प्रभावित करती है. जब चंद्रमा इस क्षेत्र में होता है तब ये टूटी फील्ड लाइन जुड़ जाती हैं और ऐसे में हाइड्रोजन ऑक्सीजन आयन पृथ्वी पर वापस आने लगते हैं जहां वे चंद्रमा से टकराते हैं और वहां स्थायी तुषार (lunar permafrost) की स्थिति बन जाती है.
कोचेश्का का कहना है कि यह एक तरह से चंद्रमा (Moon) पर बारिश की स्थिति होती है. लेकिन यह बारिश पानी के उन आयनों (Water Ions) की होती है जो पृथ्वी पर वापस आ रहे होते हैं और रास्ते में चंद्रमा की सतह पर गिर जाते हैं. इस अध्ययन से भविष्य में इन स्थायी रूप से बर्फ की तरह जमे इलाकों पर शोध में मदद मिलेगी. इन अध्ययनों से बिना हवा वाले चंद्रमा की सतह पर जीवन को पोषण देने वाले पानी पानी (Water on Moon) के विशाल भंडारों का खुलासा हो सकता है.
Rani Sahu
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