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पृथ्वी के प्राणियों की प्रजातियों का उद्भव (Evolution) एक सतत प्रक्रिया है. दुनिया में प्रजातियां विलुप्त होती रहती है
पृथ्वी के प्राणियों की प्रजातियों का उद्भव (Evolution) एक सतत प्रक्रिया है. दुनिया में प्रजातियां विलुप्त होती रहती है और नई प्रजातियां बनती रहती है. लेकिन मानवीय गतिविधियों के कारण प्रजातियों के विलुप्त होने की दर बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है जो चिंता का विषय है, लेकिन नई प्रजातियों के बनने का कारकों पर भी हमारे वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं. नए अध्ययन के मुताबिक कीड़ों (Insects) और मछलियों (Fishes) में असामान्य विविधता के पीछे जहर का भी योगदान है.
सबसे समृद्ध प्रजाति समूह
पशु जगत में कशेरुकीय (Vertiberate) और अकशेरुकीय समूह में कीट और मछलियों की जातियां सबसे समृद्ध हैं. इस शोध के नतीजे बीएमसी इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित हुआ है. अध्ययन में पाया गया है कि जहरीली मछलियां और कीटों की विविधता बिना जहर की प्रजातियों की तुलना में दोगुनी दर से फैल रही हैं.
और ज्यादा आएगी विविधता
इस अध्ययन के प्रमुख नतीजों में से एक यह भी है कि जहरीली मछलियों और कीटों की प्रजातियां वातावरण का ज्यादा फायदा उठाने में सक्षम हो सकती है. जिससे और ज्यादा नई प्रजातियों का उद्गम होगा और उनकी पारिस्थितिकी और विविध हो जाएगी. यह जल्दी ही इन जीवों के साथ पूरी पृथ्वी तक के पर्यावरण को प्रभावित कर देगा.
कितनी संख्या है इन प्रजातियों की
अब तक पृथ्वी के पर्यावरण में वैज्ञानिकों ने जितने भी अकशेरुकीय जीवोंम में से तीन चौथाई कीटों की प्रजातियां है जिनकी संख्या करीब 10 लाख है. वहीं मछलियां करीब आथी कशेरुकीय जीवों की प्रजातियों का हिस्सा हैं, उनकी संख्या 31269 है. आज मछलियों के कुल की 10 प्रतिशत और कीटों के कुल की 16 प्रतिशत प्रजातियां जहरीली हैं.
अभी तक नहीं हुआ था इनकी विविधता पर अध्ययन
मछलियों में जहर का उद्भव स्वतंत्र रूप से कम से कम 19-20 बार हुआ है तो वहीं कीटों में जहर का उद्भव कम से कम 28 बार हुआ है. वैसे तो जीवविज्ञानियों ने जैवविविधता को प्रभावित करने वाले कारकों पर लंबा अध्ययन किया है, लेकिन कीटों और मछलियों के विविध समूहों पर विस्तार से विश्लेषण अब तक नहीं हुआ था.
कई बार पैदा हो चुका है इनमें जहर
इस बात को ध्यान में रखते हुए स्वानसी की अगुआई में नई शोध परियोजना की शुरुआत हुई. कीटों और मछलियों की प्रजातियों की विविधता बायोसाइंसेस विभाग के डॉ केवल आर्बकल की अगुआई में वैज्ञानिकों की एक टीम ने बड़े पैमाने पर पहली बार जांची. दोनों जीवों की प्रजातियों में जहर का लगातार कई बार उद्भव हो चुका है.
जहर की भूमिका
स्वानसी यूनिवर्सिटी के अर्बकल ने कहा, "उनके नतीजे बताते हैं कि इसका संबंध विविधता की तेज होती दर से भी है जो इन प्रजातियों के उद्भव में जहर की के योगदान को दर्शाता है. ये नतीजे इस बात का प्रमाण है कि इन प्रजातियों के विकास में जगह की भूमिका है, जो सबसे विशाल विविधताओं भरी प्रजातियों में से हैं.
पैदा होने के बाद बहुत जल्दी उड़ने लगते थे ये डायनासोर
शोधकर्ताओं ने माना कि जहर इन प्रजातियों के विकास का इकलौता कारक नहीं है. लेकिन फिर भी यह सबसे बड़ा कारक है. जहां कीटों में जहर लगातार ही हर युग में उनके विकास का कारक रहा, वहीं मछलियों में क्रिटेशियस और ईयोसीन काल में प्रमुख रूप से विद्यमान था.
Rani Sahu
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