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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दक्षिण-पश्चिम प्रशांत महासागर (South-West Pacific Ocean) में सबसे सक्रिय सबमरीन ज्वालामुखियों (Submarine Volcanoes) में से एक है कवाची (Kavachi). कवाची, सोलोमन आइलैंड (Solomon Islands) में वांगुनु द्वीप (Vangunu Island) से करीब 24 KM दक्षिण में स्थित है.
पहले जान लेते हैं कि सबमरीन ज्वालामुखी क्या होता है. ये पानी के अंदर पृथ्वी की सतह पर पड़ी दरारें होती हैं जिनसे मैग्मा (Magma) फूट सकता है. कई सबमरीन ज्वालामुखी टेक्टोनिक प्लेट्स के पास स्थित हैं, जिन्हें मिड ओशियन रिज (Mid-ocean Ridges) कहा जाता है.
पानी के अंदर होते हैं सबमरीन ज्वालामुखी2015 में सोलोमन आइलैंड में समुद्र की जांच के लिए एक अभियान शुरू किया गया था. तब ज्वालामुखी में कम हलचल दिखी थी. जिससे इसके अंदर के सक्रिय क्रेटर का पता आसानी से लग सकता था. सक्रिय ज्वालामुखी के ऊपरी हिस्से पर सल्फर से भरा हुआ एसिडिक पानी होता है. जिससे वैज्ञानिकों को उम्मीद थी कि यहां जीवन की संभावना ज्यादा हो सकती है. उन्हें सल्फर में पनपने वाली माइक्रोबियल प्रजातियां मिलीं, साथ ही उन्होंने शार्क की दो प्रजातियों हैमरहेड (Hammerheads) और सिल्की शार्क (Silky Shark) की खोज भी की. ये शार्क ज्वालामुखी के क्रेटर में रहती हैं. इनके नतीजे 2016 में ओशनोग्राफी जर्नल (Oceanography) में प्रकाशित हुए थे.
कवाची, वांगुनु आइलैंड से करीब 24 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है
पेपर में लिखा गया था कि सक्रिय क्रेटर के अंदर पारदर्शी जानवरों, छोटी मछलियों और शार्क की आबादी देखी गई है, जो एक्टिव सबमरीन वॉलकैनो की इकोलॉजी और विषम परिस्थितियों पर सवाल खड़े करती हैं. यहां बड़े समुद्री जीव भी मौजूद हो सकते हैं. यहां के गर्म और एसिडिक पानी में रहने वाली शार्क की बड़ी संख्या को देखते हुए, शोधकर्ताओं ने इस ज्वालामुखी को 'शार्ककैनो' (Sharkcano) का नाम दिया.
अब नासा की सैटेलाइट से पता चला है कि कवाची सबमरीन वॉलकैनो एक बार फिर फूट रहा है. सैटेलाइट लैंडसैट 9 (Satellite Landsat 9) पर ऑपरेशनल लैंड इमेजर-2 ( Operational Land Imager-2) से 14 मई 2022 को ली गई इमेज में, यहां बदरंग पानी का एक हिस्सा देखा गया.
स्मिथसोनियन ग्लोबल वॉल्कैनिज़्म प्रोग्राम (Smithsonian Global Volcanism Program) के मुताबिक, ज्वालामुखी में हाल ही में ज्यादा गतिविधि देखी गई है. हालांकि बदरंग पानी का निकलना अक्टूबर 2021 से शुरू हो गया था. 1939 में इसमें पहली बार विस्फोट का पता लगा था, जिसके बाद से ये कम से कम आठ बार फूट चुका है. 2014 में यहां आखिरी बड़ा विस्फोट देखा गया था.
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