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विज्ञान
भारतीय वैज्ञानिकों ने संगम के नीचे प्राचीन नदी को खोजा, ऐसे मिले पुख्ता सबूत
jantaserishta.com
12 Dec 2021 3:40 AM GMT
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हैदराबाद: भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रयागराज में संगम (Prayagraj Sangam) के नीचे एक प्राचीन नदी को खोजा है. इसके लिए हेलिकॉप्टर से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे किया गया, जिसमें इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं, संगम के नीचे 45 किलोमीटर लंबी प्राचीन नदी मौजूद है. यहां संभवतः पानी का बड़ा खजाना भी हो सकता है. यानी संगम में मिल रही गंगा (Ganga) और यमुना (Yamuna) की तलहटी के नीचे जमीन के अंदर एक प्राचीन नदी बह रही है. ऐसा माना जा रहा है कि इसका संबंध हिमालय से है. यानी संगम में मिलने वाली तीसरी नदी सरस्वती (Saraswati) हो सकती है.
गंगा और यमुना के बीच तलहटी के नीचे जमीन के अंदर इस प्राचीन नदी के मिलने से उस मान्यता को बल मिलता है कि संगम में तीन नदियों का मिलन होता है. गंगा, यमुना और सरस्वती... हालांकि सरस्वती नदी दिखाई नहीं देती. वैज्ञानिक तौर पर वह सूख चुकी है. लेकिन ठीक इसी नदी के बहाव क्षेत्र के नीचे एक पुरातन नदी (Paleoriver) का मिलना हैरान करने वाला है. यह स्टडी CSIR-NGRI के वैज्ञानिकों ने मिलकर की है. जिनकी स्टडी हाल ही में एडवांस्ड अर्थ एंड स्पेस साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है.
अब मुद्दा ये उठता है कि आखिर नदी खोजने की जरूरत क्यों पड़ी? असल में दुनियाभर की नदियों से पानी का स्तर गिरता जा रहा है. यही हाल गंगा बेसिन का भी है. उसके नीचे कई स्तरों में एक्वीफर सिस्टम (Acquifer System) है, जो बड़े पैमाने पर भारत के उत्तरी मैदानी इलाके में रह रहे लोगों के पानी और कृषि की जरूरतों को पूरा करती है. लेकिन पिछले कुछ दशकों से गंगा नदी के ऊपर भी भारी खपत का दबाव है. पानी का स्तर कम हो रहा है. ऊपर से नहीं नीचे के एक्वीफर सिस्टम का. जिसका असर पर्यावरण, आर्थिक और सेहत संबंधी विषयों पर पड़ रहा है.
यह जानने के लिए कि क्या सच में गंगा और यमुना के दोआब (Doab) इलाके में यह समस्या है. जांच में पता चला है कि ये बात तो सही है, इस इलाके में नदियों पर खपत का दबाव काफी ज्यादा है. इसके बाद CSIR-NGRI के वैज्ञानिक सुभाष चंद्रा, वीरेंद्र एम तिवारी, मुलावाडा विद्यासागर, काटुला बी राजू, जॉय चौधरी, के. लोहितकुमार, एरुगु नागइया, सतीश चंद्रापुरी, शकील अहमद और सौरभ आर. कुमार ने गंगा-यमुना दोआब के थ्रीडी मैपिंग करने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे करने की ठानी. ताकि यह पता चल सके कि दोआब पर पड़ रहे दबाव का असर गंगा और यमुना के एक्वीफर सिस्टम पर किस तरह से पड़ रहा है. क्योंकि सिर्फ यही एक्वीफर सिस्टम ही भूजल को रीचार्ज नहीं करते, बल्कि जमीन के भीतर पुरातन नहरें होती हैं, जो नदियों को रीचार्ज करती रहती हैं.
एक्वीफर सिस्टम और जमीन में मौजूद पुरातन नहरों की स्थित को समझना जरूरी था. क्योंकि नदियां सिर्फ हिमालय या किसी स्रोत से नहीं निकलती, उन्हें जमीन के भीतर से भी जल मिलता है. इसलिए गंगा-यमुना दोआब के एक्वीफर सिस्टम और जमीन में मौजूद पुरातन नहरों की सिस्टम की जांच करना जरूरी था. इन वैज्ञानिकों ने हेलिकॉप्टर पर ड्यूल मोमेंट ट्रांजिएंट इलेक्ट्रोमैग्नेटिक (TEM) तकनीक को फिट किया गया. ताकि गंगा-यमुना के दोआब का इलेक्ट्रोमैग्नेटिक मैपिंग किया जा सके. हेलिकॉप्टर में लगी तकनीक के साथ कई उड़ानें भरी गईं. 100 मीटर की ऊंचाई से लेकर 2 किलोमीटर की ऊंचाई तक.
हेलिकॉप्टर ने 1 किलोमीटर उड़ान चौड़ाई की सीमा में रहते हुए 1200 वर्ग किलोमीटर का इलाका छान मारा. फिर उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर नदियों को क्रॉस करते हुए 5 किलोमीटर के इलाके में उड़ान भरी. ताकि चारों दिशाओं में मैप बनाया जा सके. इसके अलावा जिस इलाके में वैज्ञानिकों की रुचि ज्यादा थी और जहां संभावनाएं ज्यादा थीं, वहां कुछ अलग से उड़ानें भरी गईं. गंगा के रिवरबेड को मापने के लिए तीन उड़ानें हुई और यमुना के लिए एक. इतनी उड़ानों के बाद वैज्ञानिकों के पास गंगा-यमुना दोआब का नक्शा (फोटो में) बन चुका था. जब नक्शे का विश्लेषण किया गया तो हैरान कर देने वाली खबर सामने आई.
गंगा और यमुना की तलहटी के बीच जमीन के अंदर एक पुरातन नदी (Paleoriver) मौजूद है. यह विंध्यन फॉर्मेशन (Vindhyan Formation) में आती है. गंगा-यमुना दोआब के नीचे में मिली इस प्राचीन नदी का एक्वीफर सिस्टम और प्राचीन नहरें आपस में जुड़ी हुई है. जो एकदूसरे की पानी की जरूरत को पूरा करती रहती हैं. किसी को कम हुआ तो दूसरी से पानी आ गया. यही सिस्टम है जमीन के भीतर नदियों द्वारा फैलाई गई पतली नहरों के जाल का.
गंगा तो उत्तराखंड के गोमुख से निकली हैं. यमुना यमुनोत्री से लेकिन जो प्राचीन नदी मिली हैं, वह करीब 45 किलोमीटर लंबी है. चार किलोमीटर चौड़ी है और 15 मीटर गहरी है. इसमें 2700 MCM रेत हैं. जब यह नदी पूरी तरह से पानी से भरी रहती है तो यह जमीन के ऊपर 1300 से 2000 वर्ग किलोमीटर के इलाके को सिंचाई के लिए भूजल देती है. इस नदी के पास 1000 MCM स्टोरेज की क्षमता है यानी यह नदी किसी भी समय भूजल स्तर को बढ़ाने की अद्भुत क्षमता रखती है. यह नदी किसी भी समय गंगा या यमुना में कम होते पानी के स्तर को संतुलित करने का काम कर सकती है.
गंगा (Ganga) और यमुना (Yamuna) नदियों के बीच मिली इस प्राचीन नदी की वजह से उस मान्यता को बल मिलता है, जिसमें पौराणिक नदी सरस्वती (Saraswati) का जिक्र आता है. पौराणिक हिंदू मान्यताओं के अनुसार ये तीनों नदियां हिमालय से निकली थीं. गंगा और यमुना तो जमीन की सतह पर बहती हैं, लेकिन सरस्वती अदृश्य हैं. या वैज्ञानिक भाषा में कहें तो सूख चुकी हैं. या फिर जमीन के भीतर बह रही हैं. सतह पर तो नहीं दिखती.
इस स्टडी से यह बात तो स्पष्ट हो चुकी है कि गंगा और यमुना नदी का पानी उनके एक्वीफर सिस्टम की वजह से कई जगहों पर आपस में जुड़ा हुआ है. जिसकी वजह से वो एक दूसरे का प्रदूषण भी लेती और देती हैं. यानी अगर कहीं से कोई भी प्रदूषित पानी गंगा या यमुना में आता है तो वह सिर्फ उसी नदी को प्रदूषित नहीं करता. वह दोनों नदियों को गंदा करता है. साथ ही उनके एक्वीफर सिस्टम को प्रदूषित करता है. ये पहली बार हुआ है कि वैज्ञानिकों ने किसी पुरातन नदी का थ्रीडी नक्शा वर्तमान में बह रही नदियों के साथ बनाया है.
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