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वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता: Mount Everest में पहली बार चोटी के बेहद करीब मिली माइक्रोप्लास्टिक

Gulabi
24 Nov 2020 4:01 AM GMT
वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता: Mount Everest में पहली बार चोटी के बेहद करीब मिली माइक्रोप्लास्टिक
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एवरेस्ट के अलावा Swiss Alps और French Pyrenees में भी माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण मिला है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लंदन: माउंट एवरेस्ट फतह करना आज भी कई लोगों का सपना होता है लेकिन उसकी चोटी पर भी लोग कचरा फैलाने से बाज नहीं आते हैं। दुनिया के सबसे गहरे पॉइंट मारियाना ट्रेंच पर प्लास्टिक का मलबा मिलने के बाद अब एवरेस्ट पर माइक्रोप्लास्टिक से प्रदूषण भी सामने आया है। यह चोटी पर मौजूद बर्फ के बेहद करीब है।

प्लास्टिक के छोटे-छोटे फाइबर 8850 मीटर की चोटी से कुछ सौ मीटर की दूरी पर ही पाए गए हैं। इस स्थान को बालकनी (Balcony) कहा जाता है। एवरेस्ट पर 11 जगहों से सैंपल लिए गए थे जिनमें से सभी में माइक्रोप्लास्टिक मिली है। सबसे ज्यादा प्रदूषण बेस कैंप के आसपास मिला जहां पर्वतारोही और ट्रेकर सबसे ज्यादा समय बिताते हैं।

स्टडी में मिले नतीजे

वैज्ञानिकों का कहना है कि सबसे ज्यादा फाइबर कपड़ों, तंबू और रस्सियों से आता है जिनका पर्वतारोही इस्तेमाल करते हैं। साल 2019 में 880 लोगों ने एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी लेकिन पहली बार माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण पर स्टडी की गई है जो 5 मिलीमीटर से कम हते हैं। इसमें बर्फ के सैंपल्स में औसतन हर लीटर पानी में 30 माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल मिले जबकि सबसे ज्यादा मिले पार्टिकल्स की संख्या 119 मिले। इनके अलावा आठ जगहों पर पानी के स्ट्रीम से भी सैंपल लिए गए लेकिन सिर्फ तीन में माइक्रोप्लास्टिक मिले।

दूर तक जाते हैं पार्टिकल

एवरेस्ट के अलावा Swiss Alps और French Pyrenees में भी माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण मिला है। इससे पता चलता है कि ये पार्टिकल हवा के साथ दूर तक जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ प्लाईमाउथ की लीड रिसर्चर इमोजन नैपर का कहना है, 'हमें यह देखकर हैरानी हुई है कि माइक्रोप्लास्टिक हर एक सैंपल में मिली है।' उनका कहना है कि माउंट एवरेस्ट को हमेशा दूरस्थ और साफ-सुथरा माना जाता रहा है। अब यहां प्रदूषण मिलना आंखें खोलने जैसा है।

समाधान है जरूरी

नैपर का कहना है कि प्लास्टिक वेस्ट के बड़े सामान को कम करना, दोबारा इस्तेमाल करना और रीसाइकल करना जरूरी है क्योंकि उनसे माइक्रोप्लास्टिक पैदा होती है। ये सिंथेटिक फाइबर से बने कपड़ों से भी निकलते हैं, इसलिए इनकी जगह कॉटन के ज्यादा इस्तेमाल की भी जरूरत है। हर साल लाखों टन प्लास्टिक पर्यावरण को दूषित करती है। इसमें जहरीले पदार्थ और जीवाणु होते हैं जिनसे जीवों को नुकसान पहुंचता है। जानवर गलती से इन्हें खाना समझ लेते हैं और लोगों के अंदर खाने, पानी या सांस लेने से भी पहुंचता है।

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