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IIT Research: डिस्पोजेबल पेपर कप में चाय व काफी पीना स्वास्थ्य के लिए है खतरनाक

Nilmani Pal
6 Nov 2020 2:29 PM GMT
IIT Research: डिस्पोजेबल पेपर कप में चाय व काफी पीना स्वास्थ्य के लिए है खतरनाक
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रिसर्च में बताया गया है कि पेपर के भीतर इस्तेमाल होने वाली सामग्री में सूक्ष्म-प्लास्टिक और अन्य खतरनाक घटकों की उपस्थिति होती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई आई टी) खड़गपुर के शोधकतार्ओं ने हाल में किए गए एक शोध में इस बात की पुष्टि की है कि डिस्पोजेबल पेपर कप में चाय और काफी पीना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक है। रिसर्च में बताया गया है कि पेपर के भीतर इस्तेमाल होने वाली सामग्री में सूक्ष्म-प्लास्टिक और अन्य खतरनाक घटकों की उपस्थिति होती है।

देश में पहली बार किए गए अपनी तरह के इस शोध में सिविल इंजीनियरिंग विभाग की शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुधा गोयल तथा पयार्वरण इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन में अध्ययन कर रहे शोधकर्ता वेद प्रकाश रंजन और अनुजा जोसेफ ने बताया कि 15 मिनट के भीतर यह सूक्ष्म प्लास्टिक की परत गर्म पानी या अन्य पेय की प्रतिक्रिया में पिघल जाती है।

प्रोफेसर सुधा गोयल ने कहा कि हमारे अध्ययन के अनुसार एक पेपर कप में रखा 100 मिलीलीटर गर्म तरल पदार्थ 25000 माइक्रोन-आकार (10 माइक्रोन से 1000 माइक्रोन) के सूक्ष्म प्लास्टिक के कण छोड़ता है और यह प्रक्रिया कुल 15 मिनट में पूरी हो जाती है। इस प्रकार यदि एक औसत व्यक्ति प्रतिदिन तीन कप चाय या कॉफी पीता है, तो वह मानव आंखों के लिए अदृश्य 75000 छोटे सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों को निगलता है।'

प्रो. गोयल ने 15 मिनट का समय तय किए जाने के बारे में बताते हुए कहा कि एक सवेर्क्षण में उत्तरदाताओं ने बताया कि चाय या कॉफी को कप में डाले जाने के 15 मिनट के भीतर उन्होंने इसे पी लिया था। इसी बात को आधार बनाकर यह शोध समय तय किया गया। सवेर्क्षण के परिणाम के अलावा, यह भी देखा गया कि इस अवधि में पेय अपने परिवेश के तापमान के अनुरूप हो गया।

ये सूक्ष्म प्लास्टिक आयन जहरीली भारी धातुओं जैसे पैलेडियम, क्रोमियम और कैडमियम जैसे कार्बनिक यौगिकों और ऐसे कार्बनिक यौगिकों, जो प्राकृतिक रूप से जल में घुलनशील नहीं हैं में, समान रूप से, वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं। जब यह मानव शरीर में पहुंच जाते हैं, तो स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकते हैं।

आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो. वीरेंद्र के तिवारी ने कहा कि"इस शोध से यह साबित होता है कि किसी भी अन्य उत्पाद के इस्तेमाल को बढ़ावा देने से पहले यह देखना जरूरी है कि वह उत्पाद पयार्वरण के लिए प्रदूषक और जैविक दृष्टि से खतरनाक न हों। हमने प्लास्टिक और शीशे से बने उत्पादों को डिस्पोजेबल पेपर उत्पादों से बदलने में जल्दबाजी की थी, जबकि जरूरत इस बात की थी कि हम पयार्वरण अनुकूल उत्पादों की तलाश करते। भारत पारंपरिक रूप से एक स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देने वाला देश रहा है और शायद अब समय आ गया है, जब हमें स्थिति में सुधार लाने के लिए अपने पिछले अनुभवों से सीखना होगा।

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