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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पृथ्वी (Earth) पर जीवन का सबसे विविध और विस्तृत रूप हमारे महासागरों (Oceans) में दिखाई देता है. यहां जीवन के कालक्रम में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट महासागरों से कुछ जानवरों का धरती पर आना माना जाता है. इसमें मगरमच्छ (Crocodiles) भी शामिल हैं जो पहले पानी में ही रहा करते थे और बाद में धरती में रहने वाला उभयचर हो गए. दुनिया के सबसे बड़े सरीसृप खारे पानी के मगरमच्छ खराब तैराक होते हुए भी बिखरे हुए प्रशांत महासागरों के द्वीप में कैसे पहुंच गए. नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मगरमच्छ के बारे में कई नई बातों का खुलासा किया है.
नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि खराब तैराक (Bad Swimmer) के तौर पर पहचाने जाने वाले खारे पानी के मगरमच्छ (saltwater or estuarine crocodile) भी खुले महासागर में की धाराओं के साथ लंबी दूरी के सफर कर सकते हैं. खारे पानी की मगरमच्छ 7 मीटर लंबे और एक हजार किलोग्राम जितने भारी हो सकते हैं. इनके बारे में कहा जाता है कि ये शार्क (Sharks) को निगल सकते हैं और उन जीवों पर भी हमला कर देते हैं जिन्हें ये नहीं खाते हैं. ये नावों पर भी उन्हें अपना शुत्रु या शिकार समझ कर हमला कर देते हैं. ये पूर्वी भारत, दक्षिण पूर्व एशिया, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, और इन इलाकों के बीच अनगिनत द्वीपों में पाए जाते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
मगरमच्छ (Crocodiles) अपने जीवन का लंबा समय खारे पानी में बिताते हैं, फिर भी इन्हें समुद्री जीव (Marine Animals) इसलिए नहीं कहा जाता क्योंकि कछुओं की तरह ये भी भोजन और पानी के लिए जमीन पर निर्भर रहते हैं. अब वैज्ञानिकों ने पहली बार सोनार ट्रांसमीटर और सैटेलाइट ट्रैकिंग के जरिए पता लगाया है कि खारे पानी के मगरमच्छ महासागरों (Oceans) की सतहों पर लंबी दूरी की यात्रा करते हैं. जिससे वे एक महासागरी द्वीप से दूसरे तक चले जाते हैं. शोधकर्ताओं ने बताया कि खराब तैराक होने के बाद भी मगरमच्छ खारे पानी में लंबे समय तक बिना खाए पिए रह सकते हैं और ये तभी सफर करते हैं सब समद्री धाराएं इन सफर के अनुकूल हों और तब लंबी समुद्री यात्राएं कर लेते हैं.
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उत्तरपूर्वी ऑस्ट्रेलिया में 27 समुद्री पानी में रहने वाले व्यस्क मगरमच्छों (Crocodiles) में सोनार ट्रांसमीटर लगाए और 63 किलोमीटर लंबी नदी में पानी के नीचे 20 रिसीवर्स लगाए जिससे इन मगरमच्छ की गतिविधियों की हर 12 महीने में ट्रैक करने संभव हो सका. उन्होंने पाया कि नर और मादा दोनों ही लंबी दूरी का सफर करते पाए गए. शोधकर्ताओं ने पाया कि खारे पानी की मगरमच्छ ज्वार भाटा (Tides) के दबाव के एक घंटे में ही अपना लंबा सफर शुरू करते थे. धारा के विपरीत होने की स्थिति में वे किनारे रुक जाते थे या फिर नदी (Rivers) में गहराई तक उतर जाते थे.
शोधकर्ताओं ने शुरुआत में अपना लक्ष्य मगरमच्छों (Crocodiles) की केवल कुछ आदतों का अध्ययन ही रखा था. वे यह जानना चाहते थे कि मगरमच्छ जमीन (Land Creature) पर कैसे रहने लगे. यह खोजने के बाद कि मगरमच्छ नदी में लंबी यात्रा करते हैं. शोधकर्ताओं ने कुछ मगरमच्छों के पुराने आंकड़ों का अध्ययन किया जिसमें उनके महासागरी यात्रा (Sea Journey) को सैटेलाइट ने ट्रैक किया था. उन्होंने पाया कि महासागर में तैरने वाले मगरमच्छ भी नदी में तैरने वाले मगरमच्छों की तरह थे. एक 3.8मीटर लंबे मगरमच्छ केनेडी नदी को छोड़ कर 590 किलोमीटर का सफर 25 दिन में किया जिसका समय कार्पेंटैरिया की खाड़ी के मौसमी धारा तंत्र के साथ मेल खाता था.
इसी तरह एक अन्य 4.8 मीटर लंबा मगरमच्छ (Crocodiles) 411 किलीमीटर के 20 दिन में टोरेस जलडमरूमध्य की यात्रा की जो अपनी तेज पानी की धाराओं (Strong Currents) के मशहूर है. जब यहां मगरमच्छ आया तो धाराएं यात्रा की विपरीत दिशा में बह रही थीं इसके बाद इस मगरमच्छ ने चार दिन तक इंतजार किया और उसके बाद धाराएं की दिशा पलटने के बाद अपना सफर शुरू किया. इस तरह की पड़ताल बताती है कि क्यों मगरमच्छ की यह प्रजातियां दूसरी प्रजातियों से अलग क्यों नहीं हुईं जबकि ये अलग अलग और बहुत दूर स्थित द्वीपों में रह रही थीं.
देखा जाता है कि जब कोई प्रजाति (Species) अपने संबंधियों से अलग रहने लगती है, तो समय के साथ उसमें विविधता देखने को मिलने लगती है. पिछले कई समय से मगरमच्छ (Crocodiles) की प्रजातियां लंबी दूरी की समुद्री बाधाओं को पार करती रही हैं. लेकिन शोधकर्ता यह नहीं जान सके के मगरमच्छ इतना लंबा सफर क्यों करते हैं. इसका संबंध मछिलयों (Fishes) की विस्थापन यात्रा से भी हो सकता है
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