विज्ञान

Electric Fish के विद्युत अंगों का कैसे हुआ विकास? जानें क्या कहता है शोध

Tulsi Rao
5 Jun 2022 5:42 AM GMT
Electric Fish के विद्युत अंगों का कैसे हुआ विकास? जानें क्या कहता है शोध
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। महासागरों (Oceans) में जानवरों का जीवन ऐसी विचित्रताओं से भरा पड़ा है जिसकी मुकाबले धरती की वन्य जीवन कुछ भी नहीं है, महासागरों के विचित्र जीवों में बिजली के झटके देने वाली मछलियां (Electric Fishes) भी हैं. जिसमें ईल मछली बहुत प्रसिद्ध है. इसके अंगों में बहुत अधिक विद्युत ऊर्जा होती है. कई विशेषताओं वाली ईल और अन्य विद्युतीय मछलियों ने अपने विद्युत अंगों का विकास कैसे किया, नए अध्ययन ने इसकी व्याख्या की है. इस अध्ययन में बताया गया है कि कैसे छोटे अनुवांशकीय बदलावों (Genetic Changes) ने विद्युत मछलियों के विद्युत अंग विकसित हुए.

बिजली के इन मछिलयों के विद्युत अंगों के विकास में मछलियों की अजीब से अनुवांशिकी (Fish Genetics) मददगार साबित हुए. सभी मछिलयों में एक ही जीन के दूसरी प्रतिलिपि होती है जो छोटी प्रेरक मांसपेशी (muscle motors) बनाती है. इन्हें सोडियम चैनल (Sodium Channels) कहते हैं. इन मछलियों ने मांसपेशियों एक सोडियम चैनल जीन की प्रतिलिपि को बंद किया जबकि दूसरी कोशिका में उसी को चालू रखा. इससे मांसपेशियों के सिकुड़ने पर विद्युत संकेत पैदा हो गए और इस तरह एक विचित्र क्षमताओं वाला अंग पैदा हो गया.
ऑस्टिन के टैक्सासयूनिव्रसीट में न्यूरोसाइंस और इटीग्रेटिव बायोलॉजी के प्रोफेस हारोल्ड जाकोन ने बताया कि यह बहुत रोमांचक है क्योंकि हम देख सकते हैं कि कैसे जीन में किया गया छोटा बदालव (Genetic Change) अपनी अभिव्यक्ति के दौरान बिलकुल ही अलग तरह से दिखाई देता है. टेक्सास यूनिवर्सिटी और मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के शोधपत्र में बताया गया है कि खोजा गया सोडियम जीन चैनल (Sodium Gene Channels) का छोटा सा हिस्सा, जो केवल 20 अक्षर बड़ा है, किसी कोशिका में जी की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है.
शोधकर्ताओं ने पुष्टि की कि विद्युत मछलियों में यह नियंत्रण क्षेत्र या तो बदल जाता है या पूरी तरह से गायब ही हो जाता है. और इसीलिए दोनों में से एक सोडियम चैनल जीन्स मछली की मांसपेशियों में बंद हो जाती है लेकिन इसके प्रभाव विद्युत मछलियों (Electric Fishes) के उद्भव से भी बहुत आगे जाते दिख रहे हैं. जाकोन का कहना है कि मानव सहित बहुत रीढदार जानवरों में भी यह नियंत्रण क्षेत्र होता है. इसलिए अगले कदम के रूप में शोधकर्ता मानव स्वास्थ्य (Human Health) के संदर्भ में इस नियंत्रण क्षेत्र का अध्ययन करेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि इंसानों में इस तरह के बदलाव (Genetic Changes) नतीजे में क्या किसी बीमारी को पैदा कर सकते हैं या नहीं.
जाकोन कना कहा है कि सोडियम चैनल जीन (Sodium Channel gene) विद्युत अंग (Electric Organ) के विकास के पहले ही मांसपेशी में बंद किया जाना जरूरी था. उन्होंने बताया कि यदि उन्हें मांसपेशी और विद्युत अंग दोनों में ही चालू किया जाता तो शायद हमें कुछ और ही बात देखने को मिलती. इसलिए विद्युत अंग में जीन की अभिव्यक्ति (Genetic Expression) को अलग करना जरूरी था जहां वह मांसपेशी को नुकसान पहुंचाए बगैर ही विकसित होती.
पूरी दुनिया में दो तरह के विदयुत मछलियों (Eclectic Fish) के समहू हैं एक अफ्रीका में और दूसरा दक्षिणी अमेरिका में है. शोधकर्ताओं ने खोजा है कि अफ्रीका वाली विद्युत मछलियां के नियंत्रण क्षेत्र में म्यूटेशन (Mutations) हुए थे. जबकि दक्षिण अमेरिका की विद्युत मछलियों में यह जीन (Sodium Channel Gene) पूरी तरह से खो गया. दोनों ही समूहों में नतीजा एक ही निकला और उन्होंने एक विद्युत अंग विकसित कर लिया. जबकि दोनों में अलग अलग तरह से मांसपेशी में एक सोडियम चैनल जीन की अभिव्यक्ति खो दी.
अगर यह विकास कालक्रम की प्रक्रिया फिर शुरू होती तो क्या वह इसी तरह से होती? विद्युत मछलियां (Electric Fish) हमें इस सवाल का हल खोजने में मदद कर सकती हैं क्योंकि उन्होंने बार बार बहुत अनोखे गुणों का विकास किया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने यह जानने का प्रयास किया कि विद्युत मछलियों में बार बार सोडियम चैनल जीन (Sodium Channel Gene) कैसे गायब होती रही. इसी तरह से एक और सवाल का जवाब शोधकर्ता तलाश रहे हैं कि विद्युत अंगों (Electric Organs) में सोडियम चैनल चालू करने की स्थिति में कंट्रोल क्षेत्र कैसे विकसित हो गया.
पर्वतों और पहाड़ों (Mountain) का वैज्ञानिकों ने नई पद्धति से वर्गीकरण (Classification) किया है. इस वर्गीकरण की खासियत यह है कि इसमें पर्वतों को एक पैमाने पर विभाजित गया है, जिससे इसकी श्रेणी से ही बहुत सारी जानकारी एक बार में ही पता लग सकी. इसमें इनकी ऊंचाई को नियंत्रित करने वाले कारक भी शामिल हैं. यह वर्गीकरण पर्वतों की ऊंचाई में टेक्टोनिक प्लेट्स (Tectonic Plates), पृथ्वी की पर्पटी और अपक्षय प्रक्रियाओं के योगदान के बारे में भी पता चल सकेगा.
पर्वतों के निर्माण में कई तरह की प्रक्रिया एक साथ काम करती हैं. इनके बनने और खत्म होने में लंबा समय भी लगता है. सामान्यतः पर्वतों और पर्वतमालाओं का वर्गीकरण (Classification of Mountains) उनके स्थान, जलवायु या अन्य विशेषताओं के आधार पर किया जाता है. लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने पर्वतों के लिए नया वर्गीकरण पेश किया है जिसमें केवल एक ही संख्या से यह बताया जा सकेगा कि क्या पर्वत शृंखला की ऊंचाइयां अपक्षय (Weathering) या अपरदन जैसी प्रक्रियाओं से नियंत्रित हो रही हैं या फिर पृथ्वी की पर्पटी के गुणों से नियंत्रित हो रही हैं. इस खास संख्या को बोमोंट संख्या (Beaumont number) कहते हैं.
बोमांट संख्या (Beaumont number) का नाम एक वैज्ञानिक क्रिस बोमोंट के नाम पर दिया गया है. बोमोंट और उनकी टीम ने मिलकर टेक्टोनिक बलों (Tectonic Forces) और सतही प्रक्रियाओं के कुछ प्रतिमानों को तैयार किया था. वैज्ञानिक ने इस संख्या के बारे में नेचर के वर्तमान अंक में विस्तार से जानकारी दी है. इस में पर्वतमाला (Mountains) को शून्य से एक के बीच में अंक दिए जाते हैं. इस अंक के आधार पर यह बताया जा सकता है कि पर्वत माला कर पर किस तरह के बलों या प्रक्रियाओं का ज्यादा प्रभाव है.
अगर किसी पर्वतमाला को 0.4 से 0.5 के बीच की बोमोंट संख्या दी गई है, तब कहा जाता है कि पर्वत प्रवाह स्थिर अवस्था (flux steady state) में हैं, जिसमें उस पर टेक्टोनिक और स्थलमंडल की दोनों की ताकतों के प्रभाव को अपक्षय प्रक्रियाओं का संतुलन बना हुआ है. इस तरह के उदाहरण ताइवान में देखने को मिलता है. वहीं 0.4 Bm से कम बोमोंट संख्या (Beaumont number) वाले पर्वत भी प्रवाह स्थिर अवस्था में होते हैं लेकिन उन पर अपरदन जैसे कारकों का नियंत्रण देखने को मिलता है. न्यूजीलैंड के दक्षिणी आल्प्स (South Alps) इसी श्रेणी में आते हैं.
यदि बोमोंट संख्या (Beaumont number) 0.5 से अधिक हो तो इसका मतलब यह होता है कि पर्वत (Mountain) अभी भी बढ़ रहे हैं. यानि वे स्थिर अवस्था में नहीं हैं और थलमंडल की प्रक्रियाएं उन्हें नियंत्रित कर रही है. इस श्रेणी के सबसे अच्छे उदाहरण हिमालय- तिब्बत (Himalayas) के पर्वत और मध्य एंडीज पर्वत माला हैं. इस वर्गीकरण को एक लंबे समय से उलझाने वाले सवाल का जवाब देने के ले बनाया गया है कि क्या पर्वतों की ऊंचाई को पृथ्वी की पर्पटी के टेक्टोनिक बल आदि नियंत्रित कर रहे हैं या फिर सतह पर चल रह अपक्षय प्रक्रियाएं ज्यादा हावी हैं.
नए अध्ययन का कहना है कि दोनों तरह की शक्तियों में से एक ही पर्वतों (Mountains) और पर्वतमालों की ऊंचाई (Elevations of Mountains) को निर्णायक रूप से निर्धारित कर सकती हैं. यह सब कुछ भौगोलिक स्थिति, जलवायू और जमीन के नीचे की विशेषताओं पर निर्भर करता है. इस अध्ययन को नॉर्वे की बर्जेन यूनिवर्सिटी के सैबेस्टिन जी वोल्फ की अगुआई में किया गया था. शोधकर्ताओं ने ऊष्मीययांत्रिकीय टेक्टोनिक प्रतिमान और भूआकृति विकास प्रतिमान फास्टस्केप को मिला कर अध्ययन किया जिसमें उच्च अपरदन (High Erosion) को करोड़ों सालों से टिके हुई पर्वतमाला के बीच संबंध का पता लगाया.
इस अध्ययन के सह लेखक और जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेस के जीन ब्राउन का कहना है कि बोमोंट संख्या (Beaumont number) के जरिए हम पता लगा सकते हैं कि पर्वतों की ऊंचाई को नियंत्रित करने वाले कारक जैसे टेक्टोनिक (Tectonics), जलवायु, पर्पटी की मजबूती, आदि किस अनुपात में असर डाल रहे हैं. अधिकांश पर्वतमालाओं (Mountains) के लिए इसके लिए बहुत से जटिल मान्यताओं को साथ लेकर गणना करनी होगी.
बहुत सी पर्वतमालाओं (mountain belts) के मामले में यह बिना किसी जटिल मापन या मान्यताओं के साथ किया जा है.इसके लिए केवल आज की प्लेट गति या प्लेट पुनर्निर्माण से मिले अभिसरण की दर (rate of convergence), टोपोग्राफी से पर्वत की ऊंचाई, और भूगर्भीय रिकॉर्ड से चौड़ीकरण की दर का पता होना चाहिए. यानि क्या पर्वत ऊंचा है या छोटा है, यह धीमे या तेज अभिसरण, नम या शुष्क जलवायु या फिर मजबूत या कमजोर पर्पटी का गुणनफल होता है. बोमोंट संख्या (Beaumont number) बताती है कि इनमें से कौन सा कारक हावी है


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